हमें संगठित होकर बेहतर समाज का निर्माण करना होगा!

मेरा नाम नसरुद्दीन है और मैं इब्तिदा संस्था, अलवर राजस्थान से जुड़ा हूँ। फिलहाल एचडीएफसी बैंक के एक प्रोजेक्ट के तहत समग्र ग्राम विकास पर काम कर रहा हूँ। इसके तहत विभिन्न गतिविधियों पर काम किया जा रहा है जैसे बागवानी, नई तकनीक से खेती करना, मुर्गीपालन, महिला उद्यमी, बकरी पालन, सोलर लाईट आदि सेवाएं मुहैया कराना आदि चल रहा है। इसके अलावा हम ग्राम स्तर पर महिलाओं के समूह बनाकर उन्हें छोटी-बड़ी बचत कराने जैसी गतिविधियाँ करा रहे हैं ताकि महिलाएं स्वयं सशक्त हों तथा साथ ही अपने परिवार को भी आगे बढ़ाये।

अगर देखा जाए तो कोविड का यह दौर आम जनता के साथ-साथ सरकार के लिए भी ये समय काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। ये ऐसी महामारी है जिससे ये अंदाजा कोई नहीं लगा सकता कि वास्तव में इसका अंत कब और कैसे संभव होगा। संस्था के तौर पर हमने अलग-अलग तरीके से लोगों को राहत पहुंचाने का प्रयास किया है लेकिन व्यक्तिगत अथवा संस्था के तौर पर काम करते हुए ये सब कई बारी इतना आसान भी नहीं रहता। 

कोविड-19 ने हमें यह सीखने पर मज़बूर किया है कि हमें एक ख़ास रणनीति के तहत खुद को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोगों ने मिलकर इस संकट का सामना किया है तथा एक दुसरे की मदद के लिए भी आगे आये हैं। लेकिन अब ज़रूरी हो जाता है कि हम अपने गाँव/पंचायत से जुड़े मुद्दों पर भी साथ आयें तथा अलग-अलग न होकर समूहों में मिलकर किसी भी समस्या का समाधान खोजें।

मेरा मानना है कि ग्राम एवं पंचायत स्तर पर समूहों के गठन को बढ़ाने के निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये जो केवल संस्थाओं का ही काम न हो बल्कि सरकार को भी इसमें पुरज़ोर पहल भी करनी चाहिये तथा साथ ही उनका समय-समय पर निरिक्षण भी करना चाहिए। जब लोग संगठित होकर किसी भी चुनौती के लिए काम करते हैं तो उससे समस्या का काफी हद तक निदान संभव है। इससे न केवल लोगों में भाईचारा बढ़ता है बल्कि आपस में चर्चा तथा विचारों का आदान-प्रदान भी होता है।

ये संगठन/समूह अलग-अलग मुद्दों पर काम कर सकते हैं, चाहे वह बेहतर शिक्षा की बात हो, अच्छे स्वास्थ्य की बात हो, पंचायत स्तर पर विकास की गतिविधियों को बढ़ाने की बात हो या फिर लोगों को बचत सम्बन्धी क्रिया-कलापों से जोड़ने का काम हो। मुझे लगता है की हम सभी समूहों में काफ़ी कुछ हासिल कर सकते हैं।

मेरा मानना है कि अगर समूहों अथवा संगठनों के प्रति महिलाओं को विशेष रूप से जोड़ा जाना चाहिये बल्कि इसके लिए सरकार को एक रोडमैप बनाना चाहिये कि आखिर कैसे महिलाएं छोटे-छोटे समूहों में जुड़ते हुए न केवल खुद को आगे कर सकती हैं बल्कि समाज में भी अपनी और बेहतर भागीदारी निभा सकती हैं। ऐसा प्रत्यक्ष रूप से देखा गया है कि जहाँ महिलाओं ने किसी कार्य को अंजाम देने का बीड़ा उठाया है वहां निश्चित तौर पर सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला है।  

शायद ऐसे छोटे-छोटे प्रयास हमें करते रहने होंगे ताकि इनका परिणाम भले ही धीरे-धीरे मिले। वह दिन दूर नहीं जब हम ऐसा माहौल तैयार कर पाएं, जहाँ एक दुसरे के साथ मिलकर एक दुसरे की गलतियों व् उपलब्धियों से सीखते हुए आगे बढ़ पायेंगे, और एक बेहतर समाज का निर्माण करने में अपनी भूमिका निभा पाएंगे।