जवाबदेही कानून जैसी व्यवस्थाओं की आवश्यकता
यह पाया गया है की एक स्वस्थ शासन के लिए नागरिकों की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण होती है। अगर शासन में नागरिक भागीदारी की बात करें तो उसके लिए सामाजिक जवाबदेही दृष्टिकोण प्रचलित है जो कि शासन में नागरिकों की अलग-अलग तरह से भागीदारी पर ज़ोर देता है। भारत में सामाजिक जवाबदेही के स्वरुप में समय के साथ बदलाव भी देखने को मिला है, जैसे शुरूआत में नागरिकों को वोट के माध्यम से सरकार को चुनने का अधिकार मिला और धीरे-धीरे जन-सुनवाई, सामाजिक अंकेषण एवं सूचना का अधिकार जैसे माध्यमों से भागीदारी बढ़ी। इस बदलाव की प्रमुख वजह नागरिकों का सशक्त होना है।
इसी क्रम में राजस्थान में 2011 से सुचना एवं रोजगार अभियान, राजस्थान बैनर तले विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, नागरिकों एवं मिडिया संगठनों के माध्यम से ‘जवाबदेही कानून’ को लेकर मांग उठाई जा रही है।
इस अभियान के तहत प्रमुख मांगें हैं कि शिकायत की अपील के लिए स्वतंत्र मंच का निर्माण हो, नागरिकों को शिकायत निवारण प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार हो, शिकायत निवारण हेतु एक तय समय-सीमा हो, नागरिकों के प्रति सरकारी अधिकारीयों की जवाबदेही निर्धारित हो एवं नागरिकों को शिकायत दर्ज करने का अधिकार हो।
दिसम्बर 2015 में सूचना एवं रोज़गार अधिकार अभियान (एस.आर.अभियान), राजस्थान इस मांग को लेकर राजस्थान के 33 जिलों में ‘जवाबदेही यात्रा’ के माध्यम से पहुंचा। इस यात्रा का लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों तक कानून का सन्देश देने के साथ ज़मीनी स्तर पर मौजूद शिकायतों की पहचान कर इक्कठा करना भी था। यह यात्रा करीब 101 दिनों तक चली। सभी जिलों से लगभग 10 हजार शिकायतें मिली जिनको राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर एस.आर.अभियान द्वारा रजिस्टर किया गया।
यात्रा के तहत अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी समस्याएँ प्राप्त हुईं, जैसे किसी को पेंशन नहीं मिल रही थी तो किसी को राशन नहीं मिल रहा था, किसी की मनरेगा से सम्बंधित समस्या थी और कहीं लोगों के पास आवास की समस्या थी।
जवाबदेही यात्रा के अलावा एस.आर.अभियान ने निरंतर धरना-प्रदर्शन से भी अपनी मांग रखी, हालांकि राज्य सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं लिया । 2018 के विधानसभा चुनावों में जवाबदेही कानून एक प्रमुख मुद्दा बना और वर्तमान सत्ताधारी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में इसे शामिल करते हुए इसे लागू करने का वादा किया। जवाबदेही कानून लाने के लिए राज्य सरकार ने 2019 के बजट में भी घोषणा की | ‘जवाबदेही कानून’ के मसौदे को तैयार करने के लिए रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर राम लुभया के नेतृत्व में एक कमेठी का गठन किया गया | फ़रवरी 2020 में कमेठी ने अपनी रिपोर्ट एवं कानून का मसौदा सत्तारुढ सरकार को सौंप दिया | लेकिन इसके बाद सरकार ने रिपोर्ट पर कोई कदम नहीं उठाया।
दिसम्बर 2021 में एस.आर.अभियान मंच ने दुबारा यह तय किया कि ‘जवाबदेही यात्रा’ को फिर से शुरू किया जाए। 22 दिसम्बर 2021 को दूसरी ‘जवाबदेही यात्रा’ का सञ्चालन किया गया लेकिन कोविड के चलते 6 जनवरी 2022 को इसे स्थगित करना पड़ा। एस.आर.अभियान द्वारा अभी इस मुहीम को ऑनलाइन माध्यमों के द्वारा संचालित किया जा रहा है।
वैसे तो राजस्थान में जनसुनवाई अधिकार अधिनियम 2012 बनाया गया है जिससे आम जनता को उसके निवास स्थान के नज़दीक सुनवाई का अवसर प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। इस अधिनियम के तहत जन शिकायत या परिवाद पर 15 दिवस में सुनवाई की अनिवार्यता है तथा साथ ही शिकायत/परिवाद पर लिये गये निर्णय की संसुचना 7 दिवस में देने की अनिवार्यता भी सुनिश्चित की गई है। इसमें अधिकारियों/कर्मचारियों के दोषी पाए जाने पर 500 से 5000 हजार रूपये तक दंड का प्रावधान भी रखा गया है लेकिन यह वास्तव में ज़मीनी स्तर पर उतना प्रभावी नहीं है।
जवाबदेही यात्रा के माध्यम से देखने को मिला की आज भी सार्वजनिक सेवाओं को लेकर लोगों की काफी सारी शिकायतें रहती हैं, जिनका समाधान उन्हें समय पर नहीं मिल पाता। लोग, सरकारी दफ्तरों में अपनी शिकायतों को लेकर तो जाते हैं, लेकिन वहां कभी उन्हें नियमों का हवाला दिया जाता है तो कभी किसी अन्य अधिकारी/विभाग के पास जाने को कहा जाता है। यही नहीं, अगर शिकायतें ले भी ली जाती हैं तो वे फाइलों के गट्ठर में ही दबकर रह जाती हैं।
अधिनियम के अनुसार देखें, तो विभाग के अधिकारीयों द्वारा ही जन-सुनवाई की जाती है। तो ऐसे में शिकायतों को न्यायसंगत तरीके से निपटारे की उम्मीद न के बराबर ही रह जाती है तथा इनमें दंड की बात की जाए तो वो भी व्यवहारिक तौर पर देखने को नहीं मिलता।
‘जवाबदेही कानून’ की मांग में स्वतंत्र इकाई के निर्माण की बात की गयी है ताकि न्यायसंगत तरीके से शिकायतों का निवारण हो सके। इससे प्रशासन की जवाबदेहिता तो तय होगी ही, साथ ही शिकायत निवारण प्रक्रिया में नागरिक भागीदारी को भी मजबूती प्रदान होगी।
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