‘प्रशासन के सितारे’- आशाराम मीना

‘प्रशासन के सितारे’ सेक्शन में आज राजस्थान के आशाराम मीना जी से मिलते हैं आईये जानते हैं कि स्कूल प्रधानाचार्य के पद पर कर्तव्यनिष्ठा,आत्मसमर्पण और सामाजिक व्यवहार से इन्होने किस तरह से स्कूल समुदाय और ग्राम पंचायत की तरफ से बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए खेल-मैदान और अन्य सुविधाओं से स्कूल को सुविधायुक्त बनाने में अलग आयाम स्थापित किये

सवाल: आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर काम कर रहे हैं? आपका मुख्य कार्य क्या है? 

जवाब: वर्तमान में, मैं शिक्षा विभाग के अंतर्गत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, ईसरदा में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हूँ अगर प्रधानाचार्य के तौर पर कार्यो की बात करें तो शिक्षकों के बीच विषय वितरण करना, शिक्षण सामग्री आदि का वितरण एवं नियोजन, विद्यालय के भौतिक संसाधनों जैसे भवन, फर्नीचर, पुस्तकालय,खेल मैदान, प्रयोगशाला आदि की व्यवस्था तथा देखरेख करना। 

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए निरीक्षण कार्य जैसे सत्र प्रारम्भ होने पर विद्यालय की समय सारिणी के अनुसार सभी से अनुशासनात्मक विधि के साथ उत्तरदायित्व का निर्वहन करवाना। अधीनस्थ विद्यालयों को समय-समय पर जांचना, सामाजिक उत्तरदायित्व के लिए विभिन्न लोगों के साथ सम्पर्क बनाए रखना, ख़ास तौर से प्रबन्धन समितियों के सदस्य एवं सरकारी अधिकारीयों के साथ तालमेल बनाया रखना। इसके अलावा भी प्रधानाचार्य के कर्तव्यों की एक लम्बी लिस्ट है।  

सवाल: अभी तक के सफर में सरकार से जुड़कर काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा है ?  

जवाब: मुझे याद है कि मैंने वर्ष 2017 में सर्वप्रथम प्रधानाचार्य का पदभार सम्भाला था तथा तब से शिक्षा को बेहतर करने में मुझे सरकार के हर स्तर पर सहयोग मिला है मैं आपको पंचायतीराज विभाग से जुड़ा एक किस्सा सुनाता हूँ मैंने हाल के विद्यालय से पूर्व राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, शुभधरा,शाहबाद(बारां) में प्रधानाचार्य के तौर पर कार्य किया है ये इलाका राजस्थान की अति पिछड़ी जनजाति, सहरिया जनजाति से है तथा एक भू-भाग पहाड़ी है। वहां पर विद्यालय प्रांगण एवं खेल मैदान की स्थिति काफी दयनीय थी। मेरे द्वारा आग्रह पर ग्राम विकास अधिकारी एवं ब्लॉक विकास अधिकारी ने जुलाई-अगस्त माह में स्पेशल मस्टरोल जारी कर साफ़-सफाई एवं समतलीकरण कार्य करने मदद की तथा साथ में ट्यूबवेल कार्य सम्पादित करवाया। इसके बाद चूँकि मैं पर्यावरण प्रेमी भी हूँ, विभागीय सहयोग से मेरा विद्यालय ब्लॉक का सबसे हरित सौन्दर्य विद्यालय बना।    

सवाल: करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रहीं हैं? एक या दो के बारे में बताईये?  

जवाब: मेरे नज़रिये से अगर आप देंखे तो एक शिक्षक के तौर सबसे बड़ी सफलता उसका बेहतर शिक्षण एवं प्रबन्धन होता है मैंने जिन संस्थाओं में अभी तक काम किया है, यहाँ बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम 100% रहा है, यह तथ्य मुझे काफी गौरवान्वित महसूस करवाता है। इन परिणामों के लिए मैंने अपने आप को प्रबन्धन का हिस्सा बनाया। विद्यालय में जिन विषय विशेषज्ञों की कमी रही, उनके लिए आसपास के योग्य युवाओं को गेस्ट अध्यापक के रूप में नियुक्त होने के लिए प्रेरित किया, अनुशासन में कठोरता लायी तथा विद्यालय परिणामों में भी सफलता दिखायी। हाल की में एक सफलता की बात करूं तो कोविड-19 के दौरान ग्रामीण सहयोग से एक बहुत पुरानी जर्जर इमारत हटवाकर वहां बच्चो के लिए हरा-भरा मैदान बनवाया है। हालांकि यह ईमारत हटवाना इतना आसान नहीं था। यह विद्यालय महारानी गायत्री देवी द्वारा दान दिया गया था एवं वह इमारत उन्ही की निशानी थी, जिससे स्थानीय लोगों की भावनायें जुड़ी थी। मुझे ख़ुशी है कि लगातार प्रयासों एवं परस्पर संवाद से मैंने इसे एक खेल मैदान में तब्दील करवाया है।   

     

सवाल: इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्थितियां सामने आयीं? इनका समाधान कैसे हुआ? क्या आप अपने अनुभव से इसके उदाहरण दे सकते हैं?

जवाब: मुझे आपके अनोखी मुश्किलों वाले सवाल से दो कहनिया याद आ रही हैं एक शुभधरा वाले विद्यालय में अधिकतर  बच्चे सहरिया जनजाति से थे, उन्हें विद्यालय गणवेश में लाना बड़ा मुश्किल हो रहा था लगातार प्रयासों से भी बच्चो में गणवेश में रूचि नहीं बढ़ी, अतः मैंने अपने साथी अध्यापकों के साथ मिलकर नवाचार किया और हमने सभी अध्यापकों ने एक ड्रेसकोड में आना शुरू कर दिया। आप यकीन नहीं करेंगे कि बच्चे अध्यापकों से इतने प्रेरित हुए कि उसके बाद वे सभी शाला गणवेश में विद्यालय आना शुरू होने लगे।

दूसरा वाकया मेरे ऐचेर(सवाईमाधोपुर) के विद्यालय में संस्था प्रधान के तौर पर था। वहां से मेरा तबदाला अचानक धौलपुर कर दिया गया। इस पर वहां के ग्रामीणों ने गुस्से में स्कूल के ताला लगा दिया और ये तालाबंदी 5 दिनों तक चलती रही। मैं उन्हें समझाता रहा की स्थानान्तरण सरकारी कर्मचारी के जीवन का सामान्य हिस्सा है। हालांकि मैं उनके लगाव को समझ रहा था लेकिन मुझे डर भी था कि कहीं विभाग मेरे ऊपर दोषारोपण न कर दे। 

अंत सुखद रहा, मेरा स्थानान्तरण भी टला तथा मेरे कार्यो को भी सराहा गया। दोनों ही मुश्किलें अखबारों की सुर्खिया बनीं लेकिन अच्छा ये रहा की इनका समाधान सुखद रहा।   

वाल: बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं? 

जवाब: मै समझता हूँ कि शिक्षा एक बेहतर नागरिक बनाने एवं समझ विकसित करने की शुरुवाती कड़ी है गुणवत्तापूर्ण एवं समान शिक्षा समाज के हर वर्ग के बच्चे को मिले, मेरा यही प्रयास है और मेरा योगदान शासन के इसी हिस्से में है

सवाल: अपने काम के किस पहलू से आपको अधिक ख़ुशी मिलती है?

जवाब: मेरा बच्चों के प्रति खासा लगाव है, जब मैं बच्चों के लिए नवाचार आईडिया लेता हूँ, उनके भविष्य का आधार बुनता हूँ, उस समय बड़ा खुश अनुभव करता हूँ

सवाल: आपके अनुसार एक अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी गुण क्या होने चाहिये?

जवाब: 1. सहयोगात्मक भावना 2. कुशल नेतृत्व  3.प्रबन्धन विशेषज्ञ 

सवाल: काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी जिसमे सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो

जवाब: मैं जब अध्यापकों के साथ बच्चों की शिक्षा सत्र को प्लान करता हूँ तो वह मुझे से ख़ास तौर से काफी पसंद है क्योंकि आप पुरे नये साल के लिए नवाचार सुन रहे होते हैं और उनमें बच्चोंका बेहतर भविष्य देख रहे होते हैं  

सवाल: अपने क्षेत्र में कोई ऐसा काम जो आप करना चाहते हो मगर संरचनात्मक या संसाधन की सीमाएँ आपको रोक देती हैं

जवाब: नहीं, मुझे ऐसा तो कभी नहीं लगा! लेकिन हाँ, ये जरुर महसूस करता हूँ की शिक्षा, व्यापार और प्रतिस्पर्धा का विषय नहीं है मैं ये सेवा के दौरान कहते हुए थोड़ा हिचकिचा रहा हूँ लेकिन कुछ निजी विद्यालयों से निकलकर बच्चे जैसे ही सरकारी विद्यालयों की तरफ बढ़ते हैं, तो अच्छे अध्यापकों के तबादले  होने लगते हैं हालांकि तबादले नया अनुभव सिखाते हैं जो की अच्छा भी है परन्तु इसके लिए समय या स्पष्ट आधार तो हो ताकि बच्चों की शिक्षा अधर में न रहे, अगर मेरे बस में होता तो मै तबादलों के प्रति स्पष्ट आधार की नीति अपनाता