भारत में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के क्रियान्वयन को लेकर समझ

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस वर्ष दो साल पूरे कर रही है। इसके लक्ष्यों में बच्चे के समग्र विकास के लिए देश भर में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत हुई है जिसे प्रारम्भिक बाल्य शिक्षा के रूप में भी जाना जाता है। प्री-प्राइमरी शिक्षा 6 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए है। माना जाता है कि बच्चे का मस्तिष्क 0-5 साल के बीच सबसे तेजी से विकसित होता है। पूर्व-प्राथमिक शिक्षा संज्ञानात्मक, भावनात्मक, बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल विकसित करने के रूप में कार्य करती है, जिससे छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा और शिक्षा के बाद के चरणों में जाने के लिए तैयार किया जाता है। बावजूद इसके, अभी धरातल पर इसके क्रियान्वयन को लेकर चुनौतियां बरकरार हैं।
भारत में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को औपचारिक रूप से देश की शिक्षा नीति के दायरे में हाल ही में शामिल किया गया था। जब 2018-19 में, समग्र शिक्षा योजना के आरम्भ के साथ इस उद्देश्य के लिए निधि आवंटित करने का प्रावधान किया गया था।
इससे पहले, अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ईसीसीई) नीति, 2013 में “छह साल से कम उम्र के सभी बच्चों का समग्र विकास और सक्रिय सीखने की क्षमता” हासिल करने की बात कही गई थी। ईसीसीई को देश के आंगनवाड़ी केंद्र प्रणाली के माध्यम से लागू किया गया है। हालांकि, प्री-स्कूल शिक्षा आंगनवाड़ी द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का एक छोटा भाग है, जबकि मुख्य फोकस पोषण और टीकाकरण सेवाएं हैं।
पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का अब तक क्रियान्वयन:
नयी शिक्षा नीति 2020 के बाद, शिक्षा मंत्रालय ने अप्रैल 2021 में राज्य सरकारों को सरकारी स्कूलों में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा सिफारिशों को लागू करने के लिए में नीति जारी की, जिसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से छात्र और शिक्षक की समग्र उन्नति (सार्थक) कहा जाता है।
भारत ने ईसीसीई को लागू करने के लिए आंगनवाड़ी प्रणाली पर भरोसा किया है, जो छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के साथ-साथ 3 से 6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के विकास में कार्य करती हैं। इसी के अंतर्गत कुछ नीतिगत प्रश्न सामने आए हैं जो इस प्रकार से हैं:
चूंकि पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य आँगनवाड़ियों में जाने वाले समान आयु वर्ग के बच्चों को सेवाएं प्रदान करना है, तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सभी सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी सेक्शन के लिए कक्षाओं का निर्माण किया जाना चाहिए या आंगनवाड़ी केंद्रों को ही यह ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए? ऐसे मामले में क्या आंगनवाड़ी केंद्र, पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं? क्या आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को नए प्री-प्राइमरी पाठ्यक्रम के लिए जोड़ना इतना आसान हो पायेगा?
सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में प्री-प्राइमरी कक्षाएं नियमित शुरू होने के बाद इस आयु वर्ग के बच्चों को मिलने वाली पोषण सेवाएं किस तरह से जारी रहेंगी?
अक्टूबर 2021 और मार्च 2022 के दौरान पांच राज्यों (बिहार, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान) के सरकारी शिक्षा अधिकारियों के साथ हमारी बातचीत से पता चला कि आरम्भ में ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन प्रक्रिया को लेकर बहुत भ्रम था। यह भ्रम प्राथमिक रूप से पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के प्रावधान की संरचना और निधि के स्रोतों की अस्पष्टता से हुआ जुड़ा था।
पूर्व-प्राथमिक शिक्षा और क्रियान्वन संरचना के लिए वित्त पोषण:
आंगनवाड़ी केंद्र के माध्यम से ईसीसीई को लागू करने के लिए, पूर्व एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना (जो वर्तमान में नव संरचित सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 का हिस्सा है) के माध्यम से निधि का उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर, पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिक रूप से समग्र शिक्षा योजना के माध्यम से स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा वित्त पोषित किया जाता है और हाल ही में कुछ राज्यों के लिए शिक्षक शिक्षण और परिणाम (STARS) परियोजना के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
हालांकि, राज्यों में इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति है कि पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के किन भागों के लिए वित्त पोषण किया जाना चाहिए, जब आंगनवाड़ी केंद्र और पूर्व-प्राथमिक विद्यालय वास्तव में ज़मीन पर सह-अस्तित्व में हैं।
उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश में आंगनवाड़ी केंद्र और प्री-प्राइमरी स्कूल दो अलग-अलग संगठनों के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह चिंता का विषय है क्योंकि बड़ी संख्या में गांवों या कस्बों में प्री-प्राइमरी ग्रेड वाले स्कूल नहीं हैं। इसलिए, चुनौती बनी हुई है कि क्या आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चे ग्रेड 1 में प्रवेश करने से पहले प्री-प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले अन्य बच्चों की तुलना में उसी स्तर की तैयारी हासिल कर पाएंगे।
दूसरी ओर, राजस्थान दो विभागों – शिक्षा और डब्ल्यूसीडी के बीच किसी तरह का कन्वरजेंस हासिल करने में सफल रहा है। शिक्षा विभाग द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को न केवल प्री-प्राइमरी पाठ्यक्रम पर प्रशिक्षित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें आंगनवाड़ी में बच्चों को प्री-प्राइमरी पाठ्यक्रम पढ़ाने में सहायता करने के लिए एक प्राथमिक स्कूल शिक्षक, जिसे ‘मेंटर’ शिक्षक कहा जाता है, को भी नियुक्त किया जा रहा है। समग्र शिक्षा के अलावा, राजस्थान नए शिक्षकों के प्रशिक्षण, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण, शिक्षण-अधिगम सामग्री किट, और शिक्षकों के लिए शिक्षण मॉड्यूल बनाने के लिए स्टार्स फंड के हिस्से का उपयोग कर रहा है।
राजस्थान के विपरीत पंजाब ने अब तक सभी प्राथमिक स्कूलों में प्री-प्राइमरी कक्षाएं बना ली हैं। जिन स्थानों पर आंगनवाड़ी केंद्र स्कूल परिसर के अंदर स्थित हैं तथा छात्र आंगनवाड़ी केंद्र के साथ-साथ पूर्व-प्राथमिक कक्षा में भी नामांकित हैं। यह दोहरा नामांकन छात्रों को पोषण सेवाओं और पूर्व-प्राथमिक शिक्षा से जुड़ी दोनों योजनाओं का लाभ उठाने में मदद करता है।
नयी शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत प्रत्येक बच्चे को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण हेतु पर्याप्त मात्रा में प्रारम्भिक निवेश की आवश्यकता है। साथ ही, क्रियान्वयन से जुड़ी चुनौतियों को राज्य स्तर पर निरंतर परामर्श के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है। हालांकि कुछ राज्यों ने इस दिशा में प्रगति की है तथा अन्य अभी इसको सुलझाने की प्रक्रिया में हैं।