विकेन्द्रीकरण के 25 सालः आधा खाली होकर भी भरा हुआ गिलास
इस ब्लॉग में लेखक ने भारत की पंचायती राज व्यवस्था में विकेद्रिकरण की तस्वीर को पाठकों के समक्ष रखा है | लेखक ने भारत में 73वें संवैधानिक संशोधन के लागू होने के 25 वर्षों के बाद स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकरण का विश्लेषण किया है जिसमें उन्होंने सकारात्मक एवं नाकरात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला है | लेखक के अनुसार इस क़ानून के आने के बाद स्थानीय स्तर पर महिलाओं की भागेदारी, जातिवाद आरक्षण एवं अन्य सामजिक मुद्दों में विकास को गति मिली है | लेकिन बावजूद इसके अभी भी कुछ एक राज्यों को छोड़कर अधिकाँश राज्यों में स्थानीय स्तर पर धन एवं अधिकारों का हस्तांतरण नहीं हुआ है तथा स्थानीय सरकारों को अपनी दी गई जिम्मेदारियों एवं जरूरतों के लिए राज्य एवं केंद्र का ही मुंह ताकना पड़ता है |
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