नौकरशाही की जिम्मेदारी का दायरा, तटस्थता और प्रतिबद्धता के रूप में दो विकल्प

इस ब्लॉग में डॉ. महेश भारद्वाज भारत में नौकरशाही और राजनितिक दलों के बीच इतिहास से लेकर वर्तमान समय में रिश्तों के बारे में बता रहे हैं | लेखक का कहना है कि विकास को गति देने के लिए इन दोनों को ही संतुलन बनाकर रखने की आवश्यकता है क्योंकि जहाँ पर इनके रिश्तों में सामंजस्य नहीं रहता वहां अवश्य ही विरोधाभास होता है, जिसका प्रभाव सेवाओं पर पड़ता है| लेखक बताते हैं कि नौकरशाहों तथा राजनितिक दलों को जहाँ पर भी संभव हो वहां एक दुसरे को सहयोग देना चाहिए क्योंकि दोनों ही जनता के प्रति जवाबदेही होते हैं|

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