भारत में गैर-सरकारी संस्थाओं की भूमिका अहम क्यों है?
अधिकतर नागरिक ये समझते हैं कि गैर संस्थाओं का मुख्य कार्य ज़मीनी स्तर पर ज़रुरतमन्दो को मूलभूत वस्तुएं जैसे भोजन, कपड़ा, आवास आदि उपलब्ध करवाना या उसमें सहायता देना होता है। लेकिन ये पूरी तस्वीर नहीं है। दरअसल भारत जैसे विकाशील देश में गैर-सरकारी संस्थाओं की भूमिका एवं ज़िम्मेदारियाँ बहुत अधिक विस्तृत हैं। इनके कार्यो को मुख्य रूप से इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
शासकीय अंतर को भरना: गैर सरकारी संस्थायें सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में आईं खामियों को दूर करने का प्रयास करती हैं और उन लोगों तक पहुँचती हैं जो अक्सर शासन की परियोजनाओं से अछूते रह जाते हैं। उदाहरण के लिये प्रथम संस्था जो शिक्षा में गुणवत्ता स्तर को बढ़ाने के लिए सरकार के साथ काम करती है तथा अपने ज़मीनी आंकड़ों से रूबरू कराती है। कोविड-19 संकट में भी प्रवासी श्रमिकों को सहायता करने के लिए कई संस्थाओं ने धन- अन्न का सहयोग किया, इस कठोर समय में छोटी संस्थाओं के काफ़ी बेहतरीन उदाहरण मिले जैसे इब्तिदा जिसने राशन अभियान के माध्यम से हर जरूरतमंद लोगों की सहायता की। ऐसे कई संस्थाओं के कार्यो के उदाहरण आपको हमारी वेबसाइट हमारी सरकार पर भी मिल जायेंगे।
- अधिकार संबंधी भूमिका: समाज में कोई भी बदलाव लाने के लिये जैसे बाल विवाह एवं बाल मज़दूरी निषेध अधिकार, महिला- पुरुष समनता, सभी को शिक्षा का अधिकार जैसे कई कार्यों हेतु लोगों को जागृत एवं उनकी सहायता करने के अलावा सामुदायिक-स्तर पर इन अधिकारों को बनाये रखने के लिए संगठन और स्वयं सहायता समूहों के गठन एवं प्रबन्धन की भूमिका महत्त्वपूर्ण हैं।
- दबाव समूह के रूप में कार्य करना: ऐसी गैर सरकारी संस्थाए भी हैं जो सरकार की नीतियों और कार्यों में कमियों पर जनता की राय जुटाते हैं। वे गुणवत्ता सेवा की मांग के लिये लोगों को संगठित करते हैं और ज़मीनी स्तर पर शासन की जवाबदेही के लिये सामुदायिक प्रयास करते हैं। उदहारण के लिए राजस्थान में मजदुर-किसान शक्ति संगठन(एम.के.एस.एस) ने लोगों को संगठित किया जिसने सूचना का अधिकार, 2005 क़ानून पारित होने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संगठन राजस्थान में जवाबदेही कानून लाने के लिए अभी भी प्रयासरत है।
- सहभागी शासन में भूमिका: कई गैर सरकारी संस्थाओं की पहल ने देश में कुछ पथ-प्रदर्शक कानूनों के लागू होने में अपना योगदान दिया है। इसमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, वन अधिकार अधिनियम 2006 और सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 शामिल हैं।
- सामाजिक दृष्टीकोण में बदलाव लाना: सामाजिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण को बदलने के लिये विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा समाज के अलग-अलग स्तरों पर हस्तक्षेप किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जहाँ लोग अभी भी अंधविश्वास और रीति-रिवाज में फंसे हुए हैं, वहाँ गैर सरकारी संस्थायें उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती हैं तथा लोगों में जागरूकता पैदा करती हैं।
भारत में लगभग 3.4 करोड़ गैर-सरकारी संस्थाए हैं। इस हिसाब से देश में लगभग हर 400 लोगों के लिये एक गैर सरकारी संस्था है जो ऊपर वर्णित एवं अन्य कार्यो में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। सच यह भी है कि भारत में जिस तरह से सिविल सेवी संस्थाओं ने ज़मीनी स्तर पर अपनी पहुँच बनाई है, निःसंदेह वह प्रशंसनीय है।
ख़ास तौर से हाल ही के कोविड-19 के दौरान गैर सरकारी संगठनों के प्रयास किसी से छुपे नहीं है। सभी गैर सरकारी संगठनों ने सरकार के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर इस मुश्किल वक्त का सामना करते हुए लोगों तक सेवाएं पहुंचाने का काम किया है।
कुल मिलाकर बात ये है कि अब आगे से जब आपके सामने गैर सरकारी संस्थाओं का नाम आये तो आपको सिर्फ ये ना लगे कि ये संस्थायें बस जमीनी स्तर पर राशन या योजनाओं के लाभ दिलाने में नागरिकों की सहायता ही करते हैं, बल्कि अब आपके विचारों में ये परिपक्वता हो कि देश के गुणवत्तापूर्ण विकास में इनका कितना महत्वपूर्ण योगदान है। तो इस तरह से इन्हीं वाक्यों में इस छोटे से लेख का उद्देश्य समाहित है।