शासन-कोष

भारत में सरकार और प्रशासन से सम्बंधित हर दिन नए विवरण सामने आते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए, इस शासन-कोष (शासन और सक्रिय नागरिक- कोष) में हमारा प्रयास देश भर से सरकार और प्रशासन की नयी जानकारी को आप तक लाना है। यहाँ आप देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रशासनिक क्षेत्रों के बारे में पढ़ सकते हैं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, वृत आदि।

हमारी उम्मीद है कि इस प्रकार के ज़मीनी स्तर के आदान-प्रदान से आप सब की जिज्ञासा और भी बढ़ेगी।

अगर आप भी किसी वेबसाइट या अखबार में ऐसी कोई जानकारी पढ़ते हैं, और अपने साथियों के साथ बांटना चाहते हैं, तो humaari.sarkaar@cprindia.org पर हमें ईमेल कर सकते हैं।

यहाँ दिए गए लेख, वीडियो आदि अकाउंटबिलिटी  इनिशिएटिव के विचारों को व्यक्त नहीं करते हैं।  

मनरेगा से निकली हैं कई राहें

Published in: ideas_for_India | By: कार्तिक मुरलीधरन, पॉल नीहौस, संदीप सुख्तंकर

इस लेख के द्वारा लेखक मनरेगा योजना की महता अपने पाठकों के समक्ष रख रहे हैं | लेखक बताते हैं कि मनरेगा दुनिया की सबसे बड़ा रोजगार कार्यक्रम हैं जिसके कार्यान्वयन में कुछ बाधाएं भी हैं | लेखक बताते हैं कि इस योजना से लोगों में भागीदारी का माहौल बढ़ा है और कहीं-कहीं यह योजना आमजन के लिए जीवनदायिनी साबित हुई है | लेखक के अनुसार यदि इस योजना में पारदर्शिता और समयानुसार भुगतान पर बल दिया जाए तो यह योजना बेहतरीन योजनाओं में से एक है |

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लेखक इस लेख के द्वारा बिहार सरकार की साइकिल योजना का विश्लेषण कर रहे हैं | इस योजना के अंतर्गत कक्षा 9 में नामांकित प्रत्येक छात्रा को सरकार द्वारा योजना का लाभ दिया गया है | लेखक आंकड़ों के जरिये बताते हैं कि इस योजना से नामांकन में तो नियमित बढ़ोत्तरी हुई ही बल्कि इसके अलावा जिन लड़कियों को इस योजना के तहत साइकिल प्राप्त हुई उन्होंने इसकी सुविधा की वजह से आगे भी अपनी शिक्षा को जारी रखा |

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इस लेख में लेखक नरेगा योजना का पुनरुद्धार करने के प्रति अपना पक्ष रख रहे हैं| इस लेख में वह राजस्थान राज्य में इस योजना से जुड़े तथ्यों के आधार पर बताते हैं कि, “सर्वेक्षण के दौरान और गहरी छान-बीन से पता चला कि जो परिवार नरेगा के काम में दिलचस्पी तो रखते थे, उनमें से 83 प्रतिशत परिवारों ने काम के लिए इसलिए अनुरोध नहीं किया क्योंकि वे सोचते थे कि “गाँवों को काम तभी मिलता है जब काम उपलब्ध होता है|”

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लेखक विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य आकंड़ों के द्वारा बताते हैं कि भारत में पर्यावरण की स्थिति बहुत गंभीर है | लेखक बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं| इस प्रदुषण के अनेक कारण बताये गए हैं जिसकी वजह से भारत में प्रत्येक उम्र के लोगों की मृत्यु हो रही अतः लेखक के अनुसार प्रदुषण को कम करने के लिए सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी प्रयास करने होंगे, तभी कुछ सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं|

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इस ब्लॉग के जरिये लेखक भारत में चुनावों के दौरान राजनेताओं द्वारा जारी किये जाने वाले घोषणापत्रों का विश्लेषण कर रहे हैं| इसमें वह बताते हैं कि भारत में जनता अपने नेताओं को वोट के माध्यम से सत्ता से तो हटा सकती हैं लेकिन इसके अलावा नेताओं द्वारा वायदे पूरा न करने की स्थिति में उन्हें जुर्माना एवं दंड का भी प्रावधान होना चाहिए ताकि जवाबदेही मजूबत हो पाए |

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इस लेख के द्वारा लेखिका स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत हुए बदलाव का जमीनी विश्लेषण कर रही हैं | इस लेख के जरिये लेखिका आंकड़ों सहित बता रहीं हैं कि भारत में इस अभियान के तहत तीन साल में ज़मीन पर कितना असर हुआ है| साथ ही लेखिका अलग-अलग अध्ययनों से लिए गए आंकड़ों के द्वारा बता रहीं हैं कि इस अभियान को पूरी तरह कामयाब बनाने की राह में बहुत सारे अवरोधक हैं जिनके ऊपर सरकार को दूरगामी विचार करना बहुत जरुरी है |

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इस लेख के द्वारा लेखक गोपी गोपालकृष्णन जी भारत में जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं में ज्यादा सुधार एवं ज्यादा ध्यान देने के लिए अपने विचार बहुत गंभीरतापूर्वक पाठकों के समक्ष रख रहे हैं | लेखक के अनुसार आम जनता के लिए उनकी पहुँच के अनुसार सरकार द्वारा उपलब्ध स्वास्थ्य केन्द्रों में सुविधायें और प्रशिक्षित डॉक्टर्स की नियुक्ति होना ज्यादा जरुरी है ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों की बिमारियों का ईलाज नीचले स्तर पर ही आसानी से हो जाए | लेखक ने आकड़ों का भी इस्तेमाल करते हुए पाठकों के सामने वास्तविक स्थिति और ज्यादा स्पष्ट करने की कोशिश की है |

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इस लेख के जरिये तनुश्री भान बता रही हैं कि कैसे मतदाताओं को उपभोक्ता मानकर दिया जाने वाला राजनीतिक संरक्षण नौकरशाहों को बुनियादी सेवाओं के असमान वितरण के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, जिसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है। इसके लिए लेखिका ने दिल्ली का उदाहरण इस्तेमाल किया है |

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इस लेख के द्वारा रश्मि शर्मा ने भारत की प्रशासनिक और राजनितिक संरचना में काम कर रहे लोगों के बारे में अपने अनुभवों के आधार पर विश्लेषण किया है | इसके लिए लेखिका ने अपना मूल ध्यान जिला स्तर की प्रशासनिक संरचना एवं राजनितिक संरचना के बारे में चर्चा की है कि आखिर कैसे राज्य से आने वाले दबावों और प्रशासनिक कार्यों में समस्याओं की वजह से विकेंद्रीकरण की जगह केन्द्रीकरण को अधिक बढ़ावा मिलता है | इन सबकी वजह से आखिरकार सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं |

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रोजगार और वेतन संबंधी चुनौतियां

Published in: prabhat_khabar | By: अमित बसोले, आनंद श्रीवास्तव

इस लेख में लेखक भारत में रोजगार और वेतन सम्बन्धी बढ़ती चुनौतियों को पाठकों से साझा कर रहे हैं| वह एक रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताते हैं कि भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है | लेखक इस लेख में बेरोजगारी को दूर करने के लिए कुछ सुझाव भी पाठकों के समक्ष रखते हैं |

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