सहज एवं समान न्याय: विधिक सेवा प्राधिकरण

साथियों, वर्ष 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 अधिनियमित किया गया, जिसमें विधिक सेवा प्राधिकरण के गठन की बात कही गयी थी। अंततः इसे फिर 9 नवम्बर 1995 से लागू किया गया। 

आज के इस लेख में हम बात करेंगे कि भारत के सविंधान द्वारा भारत के नागरिको को सहज एवं समान न्याय के लिए किस तरह की संस्थागत व्यवस्था की गयी है संविधान के अनुच्छेद 39a (समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता) के अनुसार हमारे विधिक तंत्र को इस प्रकार काम करना चाहिए जिससे न्याय सुलभ हो और विशिष्टता, आर्थिक या किसी अन्य अस्पृश्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए। यानी की संविधान प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो अंतिम छोर पर बैठा कोई भी नागरिक, किसी भी धर्म, जाति, रंग, नस्ल का हो उसे न्याय समान एवं सुलभता से प्राप्त हो। यदि कोई वर्ग आर्थिक रूप से पिछड़ा हो या विधिक ज्ञान से अनभिज्ञ भी हो तो उस तक निःशुल्क विधि की पहुँच हो एवं उसे क़ानूनी सहायता मिले।

हमारे देश का संविधान इतना संवेदनशील है कि जिसमें न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण हैं जहाँ दोषियों की तरफ से किसी भी वकील द्वारा उनकी पैरवी न करने की स्थिति में संविधान ने ही न्याय के समान अवसर की प्राप्ति के तहत उनके लिए वकील की व्यवस्था की हो। तो फिर ऐसे में कोई मुख्यधारा से पिछड़ा व्यक्ति न्याय से वंचित कैसे रह सकता है।  

क्या है विधिक सेवा प्राधिकरण –

विधिक सेवाओं में समाज के कमज़ोर वर्गों को नि:शुल्क विधिक सहायता प्रदान करना शामिल है जो विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 12 में शामिल है। यह डिजिटल एवं प्रिंट मीडिया आदि के माध्यम से क़ानूनी जागरूकता फैलाना, लोक अदालत आयोजन, लंबित मामलो में परामर्श एवं समझौते करवाता है।

प्रदत सेवाओं में मुख्यतया निम्न सहायता उपलब्ध करवाई जाती हैं-
  1. नि:शुल्क कानूनी सलाह
  2. न्यायालय में पैरवी हेतु निःशुल्क अधिवक्ता उपलब्ध करवाना
  3. कानूनी कार्यवाही में देय फीस एवं सभी प्रभारों का भुगतान
  4. अपराध पीड़ित को मुआवजा 
  5. पक्षकारों में राजीनामा हेतु मध्यस्थता 
  6. लोक अदालतों का आयोजन

इस प्राधिकरण को राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर पर संचालित किया जाता है, जिसे आप इस चित्र के माध्यम से समझ भी सकते हैं।

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कौन है, सेवाएँ लेने का पात्र व्यक्ति – 
  1. अनुसूचित जाति/जनजाति  वर्ग का व्यक्ति 
  2. मानव तस्करी अथवा बेगार से पीड़ित व्यक्ति 
  3. महिला एवं बच्चा
  4. दिव्यांग व्यक्ति 
  5. प्राकृतिक आपदा एवं जातीय हिंसा से पीड़ित व्यक्ति 
  6. औद्योगिक कर्मकार 
  7. हिरासत में निरुद्ध व्यक्ति 
  8. उपरोक्त के अलावा ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय 03 लाख से कम हो। (प्रकरण उच्चतम न्यायालय के समक्ष हो तो 05 लाख तक)
कैसे इन समितियों तक पहुँच बना सकते हैं- 
  1. आप अपने तालुक (सब डिविजन लेवल) में न्यायालय परिसर में स्थित विधिक सेवा समिति या जिला मुख्यालय के न्यायालय परिसर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या संबंधित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  में उपस्थित होकर आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। 
  2. माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति प्रत्येक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, उच्च न्यायालय क़ानूनी सेवा समिति और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास एक फ्रंट ऑफिस है, जहाँ किसी प्रार्थना पत्र को प्रस्तुत किया जा सकता है।
  3. कोई भी व्यक्ति नालसा के ऑनलाइन पोर्टल या राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की वेबसाईट पर अपनी समस्या के सम्बन्ध में आवेदन या सम्पर्क कर सकता है ।
  4. इसके अलावा आपके क्षेत्र में कार्यरत पैरा-लीगल वोलिंटियर (PLV) एवं राष्ट्रीय सहायता नंबर 15100 से भी सम्पर्क कर सकते हैं। 

आशा करते हैं कि न्याय से जुड़ी इन समितियों की जानकारी आपको काफी उपयोगी लगी होगी तथा यह जानकारी आपको अपने कार्यक्षेत्र में भी काम आएगी। यदि आप लेख से सम्बन्धित कोई जानकारी चाहते हैं एवं हमसे कोई सवाल पूछना चाहते हैं तो हमे ‘हमसे सवाल पूछो’ सेक्शन के अंतर्गत हमारी humaari.sarkaar@cprindia.org पर अपना सवाल लिखकर भेजें। हमारी टीम आपके सवालों का जल्द से जल्द जवाब देगी।