बुनियादी शिक्षा की नींव है, मातृभाषा
आज पूरा विश्व अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है। भाषा, यानी एक ऐसा माध्यम जिसके द्वारा लोग अपने विचारों तथा भावनाओं को एक दूसरे के साथ व्यक्त करते हैं। विश्व अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को यूनेस्को द्वारा 17 नवम्बर 1999 को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गयी।
इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्व में बोली जाने वाली भाषाएँ, संस्कृति विविधता और बहुभाषीता को बढ़ावा देने के साथ ही प्रत्येक मातृभाषा को सम्मान देना है। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2023 की थीम ‘बहुभाषी शिक्षा- शिक्षा को बदलने की आवश्यकता’ है।
सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा:
भारत की अगर बात करें तो यहाँ सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी पहले स्थान पर है। 2011 के जनगणना के आधार पर भारतीय भाषाओं के आंकड़े के अनुसार हिंदी को मातृभाषा के रूप में बताने वाले लोगों की संख्या में 2001 के जनगणना के मुकाबले में 2011 में बढ़ोत्तरी हुई है। 2001 में 41.03% लोगों ने हिंदी को मातृभाषा बताया था जबकि 2011 में इसकी संख्या बढ़कर 43.63% हो गई है। बांग्ला भाषा दूसरे नंबर पर बरकरार है वहीं, मराठी ने तेलुगू को तीसरे स्थान से हटा दिया है।
भाषा हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है:
मातृभाषा से अभिप्राय है, उस परिवेश, स्थान और समूह में बोली जाने वाली भाषा से है, जिसमें रहकर मनुष्य बाल्यकाल से ही बाकी समुदाय से जुड़ता है। बच्चे, अपनी मातृभाषा में सबसे अच्छा बोलना, पढ़ना और लिखना सीखते हैं। भाषा ही वह माध्यम है जो सबको एक दूसरे से बांधे हुए है,और इसी डोर की मजबूती से बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मातृभाषा का महत्व दिया गया है।
भारत जैसे देश में विद्यार्थियों की उनकी मातृभाषा में पढ़ाई नहीं होने के कारण शिक्षा अक्सर चुनौतीपूर्ण बन जाती है। इसलिए नई शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा पर काफी जोर दिया गया है। नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि अपनी मातृभाषा में कक्षा 5वीं या कक्षा 8 तक पढ़ाई होनी चाहिए।
गाँधी जी का कहना था कि मनुष्य के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा उतनी आवश्यक है जितनी की बच्चों के विकास के लिए माँ का दूध। बालक पहला पाठ अपनी माता से ही पढ़ता है।
मातृभाषा को लेकर आंकड़े क्या कहते हैं:
आज के परिवेश में अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी में पढ़ने-लिखने पर बहुत अधिक ज़ोर दे रहे हैं। जिसके कारण बच्चे मातृभाषा से नही जुड़ पाते हैं। बच्चों का सामजिक, सांस्कृतिक,अध्यात्मिक एवं भावात्मक विकास नहीं हो पाता है। हाल ही में प्रकाशित असर 2022 रिपोर्ट में बताया गया है कि मातृभाषा हिंदी को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पढ़ने की क्षमता में कमी आई है।
- तीसरी कक्षा के बच्चे जो दूसरी कक्षा के स्तर की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। उसका अनुपात 2018 में 27.3% से घटकर 2022 में 20.5% हो गया है।
- कक्षा 8वीं की छात्रों में भी बुनियादी पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है, जो 2018 में राष्ट्रीय स्तर पर 73% बच्चे पाठ पढ़ सकते थे, वह क्षमता कम होकर 69.6% आ गयी है।
अक्सर देखने को मिल रहा है कि अभिभावक अपने बच्चों को देखा-देखी में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाने, अंग्रेजी में बात करने पर बहुत अधिक जोर दे रहे हैं। यह भी देखने को मिलता है कि लोग अपनी मातृभाषा में बात करना पसंद नहीं करते बल्कि स्टेटस बनती जा रही अंग्रेजी पढ़ने और बोलने को लेकर भागदौड़ में लगे हैं। बच्चों के संदर्भ में बात करें तो इसका उनके ऊपर बहुत असर पड़ता है क्योंकि अगर बच्चा किसी दूसरी भाषा में पढ़ने-समझने में असहज है तो इस पर अभिभावकों को सोचना ज़रूरी है। इसलिए इस बात का मंथन करना बहुत ज़रूरी है कि बच्चे आख़िर किस भाषा में ज्यादा अच्छे से सीखने में सहज हैं।
हमें इस धारणा को बदलना होगा कि अंग्रेजी केवल भाषा है न कि बुद्धिमता को मापने का माध्यम! इसलिए यह समझना बहुत आवश्यक है कि हर भाषा का अपना एक महत्व है और सबका सम्मान बराबर होना भी ज़रूरी है। अतः भाषा को संरक्षित समाज के हर नागरिक का बराबर कर्तव्य बनता है।
यह लेख हमारी टीम की साथी सीमा मुस्कान जी ने तैयार किया है!