‘राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस’ – विशेषांक

आजराष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवसहै। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य गर्भावस्था, प्रसव और डिलीवरी के बाद तथा गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के प्रति जागरूक करना है।

देश में प्रत्येक वर्ष हजारों गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व प्रॉपर केयर और देखभाल ना मिल पाने के कारण मौत हो जाती है। ऐसे में प्रसवपूर्व कुछ महत्वपूर्ण बातों का ख्याल रखना जरूरी है ताकि डिलीवरी के समय गर्भवती महिलाओं को कोई परेशानी ना हो।

भारत में बच्चों के जन्म के समय माता की मृत्यु होना एक गंभीर समस्या रही है। प्रति एक लाख जीवित बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु को मातृत्व मृत्यु दर (MMR) कहते हैं। ऊपर से कोविड-19 ने बाकी क्षेत्रों के साथ-साथ स्वास्थ्य गतिविधियों पर भी पूरी तरह से विराम लगा दिया।

भारत में मातृ मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में असुरक्षित गर्भपात, प्रसव-पूर्व और प्रसवोपरांत रक्त स्राव, अरक्तता, विघ्नकारी प्रसव वेदना, उच्च रक्त चापीय विकार तथा प्रसवोत्तर विषाक्ता आदि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बाल विवाह, निर्धनता, अशिक्षा, अज्ञानता तथा रूढ़िवादिता, दो संतानों के मध्य कम अंतर होना आदि प्रमुख कारण रहे हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि महिलाओं को स्वास्थ्य से जुड़े हर विषय पर गंभीरतापूर्वक चर्चा करके उनके साथ परामर्श गतिविधियाँ करना एक नियमित प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए।

स्वास्थ्य के अंतर्गत व्यवहार में सुधार के उद्देश्य से परामर्श एक महत्वपूर्ण पहलु है। अकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव समूह द्वारा सरकार के विश्लेषित आंकड़ों के अनुसार एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 में स्वास्थ्य और पोषण सम्बन्धी शिक्षा प्राप्त करने वाली गर्भवती महिलाओं के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा प्राप्त करने वाली गर्भवती महिलाओं का प्रतिशत अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। 2019-21 के दौरान, यह आंकड़ा आंध्र प्रदेश (84%), गोवा (80%), और तेलंगाना (78%) में सबसे अधिक, और बिहार (35%), नागालैंड (4%), तथा मणिपुर (3%) में सबसे कम था। स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए रुझान भी लगभग इसी तरह के थे।

ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण दिवस (वीएचएसएनडी) आंगनवाड़ी केंद्रों में मासिक रूप से आयोजित किए जाते हैं। इसका उद्देश्य लाभार्थियों को टीकाकरण, परामर्श, वजन, पूरक पोषण, आयरन और फोलिक एसिड, विटामिन ए और कैल्शियम टैबलेट के प्रावधान सहित कई प्रकार की सेवाएं आदि प्रदान करना है। अतः इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इस तरह की गतिविधियाँ नियमित रूप से न होने की वजह से महिलाओं के ऊपर कितना बुरा असर पड़ सकता है।

अप्रैल 2020 से मई 2021 तक प्रत्येक महीने में ऐसे फंक्शनल आंगनवाड़ी केन्द्र केवल 50 प्रतिशत थे, जिन्होंने वीएचएसएनडी या इसी तरह के सम्बंधित कार्यक्रम आयोजित करने की सूचना दी थी। 

हाल ही में, भारत के महापंजीयक कार्यालय के सैंपल पंजीकरण प्रणाली की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मातृ मृत्यु अनुपात में 10 अंकों की कमी आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 8.8% की कमी के साथ मातृ मृत्यु अनुपात वर्ष 2016-18 में 113 से कम होकर वर्ष 2017-19 में 103 हो गया है। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य निति में निर्धारित मातृ मृत्यु अनुपात को वर्ष 2020 तक 100 करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही भारत को अभी आने वाले वर्ष 2030 तक 70 प्रति लाख जीवित जन्म के सतत विकास के लक्ष्य को भी पूरा करना है।

अतः इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता की कोविड की वजह से स्वास्थ्य एवं जागरूकता से सम्बंधित सभी प्रकार की गतिविधियाँ बाधित हुई हैं। मगर साथ ही यह भी समझना बेहद आवश्यक है कि सरकार के साथ-साथ हम नागरिकों को भी अपनी ज़िम्मेवारी लेनी होगी तथा सरकार की योजनाओं से जुड़ी जानकारियाँ अपने आस-पास लोगों तक पहुंचानी होंगी ताकि हर कोई सरकार की योजनाओं का व्यवस्था के अनुसार लाभ उठा सके।