स्थानीय सरकार की सीमाएं और सुधार की राह!
नमस्ते! मेरा नाम ओम प्रकाश शर्मा है और मैं जयपुर जिले के चाकसू ब्लॉक का रहने वाला हूँ। वर्तमान में दैनिक भास्कर जयपुर ग्रामीण में पत्रकार के रूप में पिछले 4 वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहा हूँ। इससे पहले मैंने 2 वर्षों तक नेहरू युवा केंद्र जयपुर में ब्लॉक यूथ कोऑर्डिनेटर के रूप में अपनी सेवायें दी हैं।
सामाजिक सेवा की भावना मुझे अपने गाँव में स्थापित युवक मंडल के माध्यम से प्राप्त हुई, जिसमें मैं लगभग 15 साल की उम्र से ही जुड़ चुका था। कक्षा 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए में जयपुर आ गया और यहीं से सामाजिक सेवा में अपना योगदान देने लगा। इस बीच मैं अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़कर काम करने लगा। इसमें सामाजिक समानता, लैंगिक समानता, जनसंख्या नियंत्रण आदि कई बिंदुओं पर विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया। इस दौरान मैंने राजस्थान के विभिन्न जिलों एवं देश के अन्य राज्यों का दौरा किया जिससे मुझे वहां की सामाजिक परिस्थितियों एवं ग्रामीण परिवेश को करीब से देखने का अनुभव मिला।
अभी तक के सफ़र में मैंने कई चीज़ों को बहुत क़रीबी से धरातल पर देखा है। इस सबसे न केवल व्यवस्थाओं को अलग नज़रिये से देखने का अनुभव मिला है बल्कि सामाजिक क्षेत्रों में दिखाई देने वाली चिंताओं की तरफ आकर्षित हुआ हूँ।
मैं अपने इस लेख में पंचायती राज संस्थाओं और उनकी मौजूदा स्थिति के बारे में बात रखना चाहूँगा। यह हम सभी जानते हैं कि संविधान के 73वें संवैधानिक संशोधन के बाद पंचायतों को सरकार का दर्जा हासिल हुआ। यानी एक ऐसी सरकार जिसे जनता सीधे तौर पर वोट द्वारा चुन सकती है तथा अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकती है। इसमें महिलाओं को भी आरक्षण देने की बात की गयी जो आज देश के अधिकाँश राज्यों में 50 प्रतिशत हो चुकी है मतलब इससे हम यह तो कह सकते हैं की महिलाएं इसमें भाग लेने के लिए पात्र हैं! लेकिन क्या पात्रता होना ही काफी है? मैं कुछ बातें राजस्थान राज्य से सम्बंधित रखूँगा, अब आप सभी इसकी तुलना अपने-अपने राज्य से भी कर सकते हैं:
महिला प्रतिनिधियों को सशक्त करना बेहद ज़रूरी:
मैं अगर अपने आस-पास देखूं तो मुझे देखने को मिलता है कि एक बार जीत जाने के बाद अधिकाँश महिला प्रतिनिधियों की शक्तियां उनके परिवार वालों के हाथ में चली जाती हैं। महिला प्रतिनिधि केवल हस्ताक्षर तक ही सिमित रह जाती हैं। निर्णय उनके परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा लिए जाते हैं ये कहीं पर उनके पति तो कहीं पर उनके ससुर भी होते हैं। अब नियम तो सरकार ने कई बनाये हैं लेकिन जब तक ज़मीनी स्तर पर सख्ती से सरकार द्वारा यह सुनिश्चित नहीं किया जायेगा की महिला ही एक लीडर के तौर पर सब अपने निर्णय ले पाए तब तक यह महिला प्रतिनिधियों का सर्वांगीण विकास होना मुश्किल है।
महिला कर्मियों की नियुक्तियां:
ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम विकास अधिकारी का पद होता है जो पंचायत से जुड़े सभी प्रशासनिक कार्यों को देखता है उसका रिकॉर्ड रखता है तथा सरपंच के आदेशानुसार कार्यवाही को अमल में लाने का काम करता है। अगर राजस्थान की बात करूँ तो यहाँ की एक पंचायत समिति की 21 ग्राम पंचायतों में एक भी महिला ग्राम विकास अधिकारी नहीं है यानी सभी पुरुष हैं। तो मेरा यह कहने का तात्पर्य है कि जहाँ महिलाएं पर्दा प्रथा तथा रुढ़िवादी परम्पराओं से मुश्किल से ही बाहर आने की कोशिश कर रही हैं, वहां उन्हें थोड़ा सहज माहौल देने के लिए यह भी आवश्यक है कि उन्हें काम करने में सहयोग के लिए अगर कहीं महिला अधिकारी भी साथ में हों तो वे और भी सहजता से काम सीखकर अपनी लीडरशिप को निखार सकती हैं। यहाँ मेरा कहने का मकसद यह बिलकुल नहीं है की केवल महिला अधिकारियों की ही नियुक्ति होनी चाहिए लेकिन कम से कम पुरुषों की तुलना में एक अनुपात तो होना चाहिए ताकि जहाँ यह तालमेल हो वहां कुछ अलग केस स्टडी देखने को मिल पाए।
प्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम योग्यता मानदंड:
मैं यहाँ पर कतई यह नहीं कहना चाहता की जो लोग कम पढ़े लिखे होते हैं उनमें काबिलियत नहीं होती बल्कि बहुत से उदाहरणों ने इस बात को गलत भी साबित किया है। मेरा बस यह मानना है की समय काफी बदल चूका है और इस बदलाव को हमने पिछले कुछ वर्षों में काफी आगे बढ़ते हुए देखा है चाहे बात पंचायती राज संस्थाओं में ज्यादा से ज्यादा योजनाओं के क्रियान्वयन की बात हो या फिर योजनाओं में तकनीक के महत्त्व की हो। इसलिए समय के साथ आगे बढ़ना बहुत ज़रूरी है और हमारा प्रतिनिधि कम से कम कुछ न्यूनतम योग्यता के मापदंड को तो पूरा करने वाला हो अन्यथा अभी भी ऐसा देखने को मिलता है जहाँ सरपंच को अपना हस्ताक्षर तक नहीं करना आता। इस बात से शायद कई लोग सहमत न हों लेकिन हम सभी का उद्देश्य यही है की हमारा प्रतिनिधि ऐसा हो जो सरकार की योजनाओं को समय और स्थिति को देखते हुए हमेशा तैयार रहे तथा उन लोगों तक सबसे पहले योजनाओं का लाभ पहुंचाएं जो उनके असली हकदार हैं!
ओम प्रकाश जी ‘हम और हमारी सरकार’ कोर्स के पूर्व प्रतिभागी हैं जिन्होंने इस कोर्स की सीख को अपने ज़मीनी काम में भी इस्तेमाल किया है। प्रकाशित लेख में लेखक के अपने विचार हैं।