“जानती हूँ कि मेरा काम इस देश के लिए महत्वपूर्ण है”- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, विशेषांक

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस इस अवसर पर आईये सलाम करते हैं उन सभी महिला कर्मियों का जिन्होंने कोविड-19 जैसी महामारी में हमारे जीवन को बचाने के लिए अपने हर संभव प्रयास किये!

प्रश्न: पिछले कई महीनों के दौरान, आप महामारी से संबंधित कार्यों से जुड़े हैं। क्या आप अपने महामारी और गैर-महामारी कर्तव्यों का संक्षिप्त विवरण दे सकते हैं?

आशा: मेरे काम का स्वरूप काफी बदल गया है। मार्च-मई 2020 से, मैं केवल महामारी से संबंधित कार्यों में लगी हुई थी क्योंकि मेरी अन्य जिम्मेदारियां जैसे कि टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल करना और बच्चों को दवा देना केवल आपातकालीन मामलों के लिए ही रखा गया था।

इस अवधि में, मेरा प्राथमिक कार्य घर-घर जाना, सैंपल लेना और कोविड -19 के किसी भी सक्रिय मामलों की जांच करना था। मैं वायरस के बारे में जागरूकता भी फैला रही थी और लोगों को सामाजिक भेद, और मास्क तथा सेनेटाईज़र के उपयोग के बारे में शिक्षित करने का काम कर रही थी।

हालांकि, मई 2020 के बाद, जब लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दी गई, तो मेरे काम का बोझ बहुत बढ़ गया क्योंकि मुझे टीकाकरण और गर्भवती महिलाओं और बच्चों के वजन लेने जैसे अन्य कर्तव्यों को फिर से शुरू करना पड़ा। मुझे उन सभी 13 गांवों के लिए यह करना था जो मुझे सौंपे गए थे।

वायरस के बारे में आशंकाओं के कारण, लोग सामान्य जांच के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में आने के लिए आशंकित थे। इसलिए, वे फोन करते और मुझे अपने घरों में दवाइयां देने के लिए कहते। इससे मेरा काम बढ़ गया क्योंकि मुझे हर समय यात्रा करते रहना पड़ता था।

प्रश्न: आपके क्षेत्र के दुसरे फ्रंटलाइन वर्कर्स (एएनएम, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आशा) या अन्य कोरोना वारियर्स के साथ किस तरह का रिश्ता था? उदाहरण के लिए, आपने एक दूसरे के साथ समन्वय कैसे किया?

आशा: समन्वय था और अभी भी है। हालांकि, मेरा समन्वय मेरे साथी आशा कार्यकर्ताओं, और एएनएम तक सीमित था। मैंने केवल एक्टिव केस फाइंडिंग (ACF) चरण के दौरान आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के साथ समन्वय किया, जो फरवरी 2020 में शुरू हुआ।

लेकिन एएनएम और हम (आशा) एक ही टीम की तरह थे। मेरे दिन की शुरुआत उन कार्यों से होती थी कि काम को किस तरह से विभाजित किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा कवर हो पाए।

हम अधिकतर घर-घर जा रहे थे इसलिए जब भी एएनएम अपन काम निपटा लेती थीं, उसके बाद वह हमारे काम में मदद करती थी।

जब भी मुझे परिवार में समस्याओं का सामना करना, या अगर मुझे अपने बच्चों की देखभाल करने जाना होता है, तो ऐसे में मैंने अपनी एएनएम दीदी को सूचित किया और उन्होंने मुझे यह करने के लिए अपनी अनुमति दी।

प्रश्न: महामारी के दौरान आपको काम करने और अपनी गतिविधियों को करने के लिए किस चीज ने प्रेरित किया है?

आशा: मेरी प्रेरणा 2020 में बहुत बदल गई है। मुझे दवा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं पहले आकाशवाणी में काम कर रही थी लेकिन शादी की वजह से मुझे अपनी नौकरी बदलनी पड़ी।

महामारी से पहले मेरी एकमात्र प्रेरणा यह थी कि यह वह काम था जो मुझे कुछ पैसे देता है और जिससे मुझे घर चलाने में मदद मिलती है। हालांकि, पिछले 9-10 महीनों ने यह सब बदल दिया है। लोग मेरा आदर करते हैं, वे मेरी सराहना करते हैं तथा वे मुझे ‘कोरोना योद्धा’ कहते हैं। यह सब मुझे महसूस कराता है कि मैं कुछ महत्वपूर्ण करने में सक्षम हूं, और मुझे वह एहसास पसंद है; यह मुझे और ज्यादा तथा बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करता है।

इससे पहले, कोई नहीं जानता था कि मैं कौन हूं और क्या करती हूं। अब, जहां भी मैं जाती हूं, हर कोई मुझे और मेरे काम को जानता है तथा मेरे काम की सराहना करता है। लोग अब मेरी बात भी सुनते हैं। मुझे सौंपे गए सभी गाँव बहुत सहयोगी रहे हैं और वे धैर्यपूर्वक नियमों का पालन करते हैं क्योंकि वे मुझ पर और मेरे काम पर भरोसा करते हैं। यह एक महान भावना है जिसने मुझे हमेशा प्रेरित किया है!

मुझे कोविड-19 के दौरान अपने काम के लिए बहुत सारे प्रमाणपत्र मिले जिसमें मुझे अपनी सोसाइटी से एक, एक पंचायत से तथा एक प्रमाण पत्र अस्पताल से मिला। लेकिन इसके अलावा, आर्थिक प्रोत्साहन भी एक प्रेरणा को बढ़ाने वाला था। मुझे पता है कि बहुत सारे फ्रंटलाइन कर्मचारियों को समय पर पैसा नहीं मिला, लेकिन मेरी टीम में सभी को मिला और इससे हमें अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न: क्या आपको अपना काम करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?

आशा: सबसे बड़ी चुनौती मेरे लिए काम में हुई अचानक वृद्धि का प्रबंधन करना था। मेरे अधीन 13 गाँव हैं, और मेरे पास परिवहन की सुविधा नहीं है। इसलिए मुझे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए या तो पैदल चलना पड़ता है या बस लेनी पड़ती है। मुझे कभी भी अपने काम पर जाने के दौरान बसों एवं टैक्सी पर किये गए खर्च की कोई भी प्रतिपूर्ति नहीं मिली, यही वजह है कि मैं अक्सर पैदल ही चलती हूँ।

इसके अलावा, इस कार्य के लिए बहुत अधिक सहजता की आवश्यकता होती है, जिसके लिए मैं तैयार नहीं थी। मुझे कहीं से भी कॉल आते थे और चेक-अप करने के लिए कहा जाता था, जिसका प्रबंधन करना मेरे लिए कठिन था क्योंकि मुझे अपने परिवार और गृहकार्य की भी देखरेख करनी थी।

एक और चुनौती यह थी कि कभी-कभी लोग हमें अपने घरों में नहीं घुसने देते थे। इस बार दिल्ली से बहुत सारे लोग गाँव में पहुँचे, और हमें उन्हें एक सरकारी संस्थान में अलग रखने के सख्त निर्देश दिए गए। जब हम इसके लिए उनके पास गए, तो वे हम पर भड़क गए और सहयोग करने से इनकार कर दिया। मेरे पर्यवेक्षक ने इस दौरान मुझे बहुत सहयोग किया क्योंकि उन्होंने पुलिस को फोन किया और उन्हें मामले को संभालने के लिए कहा।

अपने परिवार को संभालना भी एक बड़ी चुनौती थी। मेरे महामारी संबंधी कार्यों के कारण, मैं अपने बच्चों को बिल्कुल भी समय नहीं दे पा रही थी और इससे मेरे ससुराल वालों के साथ-साथ मेरे पति भी निराश थे। वे मेरे द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में लंबे समय तक काम करने के पक्ष में नहीं थे।

अन्त में, इन दिनों एक बड़ी समस्या टीकाकरण को लेकर भी है। लोग जांच करवाने में संकोच करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यदि वे कोरोना पॉजिटिव हुए, तो उन्हें वैक्सीन दी जाएगी और उन्हें लगता है कि इसकी प्रभावकारिता के बारे में पर्याप्त सबूत नहीं हैं। मैं उन्हें यह बताने की कोशिश कर रही हूं कि उनके स्वास्थ्य से कभी समझौता नहीं किया जाएगा, लेकिन वे अभी भी बहुत डरे हुए हैं।

प्रश्न: आपने जिन भी चुनौतियों का सामना किया, उन्हें कैसे दूर किया?

आशा: इस नौकरी की सहजता का सामना करने के लिए, मैंने अपना घर का काम जल्दी उठकर करना शुरू कर दिया। मैंने अपने परिवार को भी इस काम का महत्व समझाने की कोशिश की।

शुरुआत में, मैं बहुत शर्मीली थी – हम सभी महिलाएं थीं, और हमारे लिए अचानक फील्ड कार्य करने के लिए रैंडम घरों में जाना बहुत बड़ी बात थी। हमें यह इतना मुश्किल लग रहा था, लेकिन मैंने खुद को देश के प्रति अपने कर्तव्य के प्रति तैयार किया। अब मुझे देखो, मुझे कभी भी, कहीं भी जाने के लिए कह सकते हैं, और मैं बिना किसी हिचकिचाहट के जा सकती हूँ क्योंकि मुझे पता है कि मेरा काम, मेरा पेशा इस देश के लिए महत्वपूर्ण है।

यह साक्षात्कार कोविड-19 रिसर्च फ़ंडिंग प्रोग्राम 2020 के तहत अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा वित्त पोषित एक शोध अध्ययन के एक भाग के रूप में आयोजित किया गया था। यह अध्ययन कोविड-19 महामारी के दौरान राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में फ्रंटलाइन श्रमिकों के अनुभवों को दर्शाता है।

यह साक्षात्कार हिमाचल प्रदेश के सोलन में एक आशा के साथ आयोजित किया गया था।