अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस- विशेषांक

वर्ष 2021 विश्व नर्स दिवस का थीम ‘ए वॉयस टू लीड- ए विजन फॉर फ्यूचर हेल्थकेयर’ है। नर्स दिवस फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को नर्सों के योगदान के रूप में  रेखांकित किया जाता है। 

नाइटिंगेल ने सैन्य और नागरिक अस्पतालों में महत्वपूर्ण सुधार लाए तथा नर्सिंग को बहुत प्रभावित किया। 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के बीच, कई नर्सिंग स्कूलों को भारत के विभिन्न राज्यों में मिशन अस्पतालों द्वारा शुरू किया गया था जो भारतीयों को नर्स के रूप में प्रशिक्षित करते थे। महिलाओं को केवल विशेष मामलों में, प्रसव सहायता के लिए लिया जाना जाता था। भारत में हालांकि नर्सिंग की प्रगति जाति व्यवस्था, अशिक्षा, राजनीतिक अशांति और महिलाओं की सामाजिक स्थिति कमज़ोर जैसे विभिन्न कारणों द्वारा बाधित थी। इस प्रकार स्वतंत्रता के समय लाखों की आबादी की सेवा करने वाली कुछ नर्सें ही थीं।

नर्स-रोगी अनुपात आज भी भारत की स्वास्थ्य प्रणाली में एक चुनौती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में प्रति हज़ार आबादी पर केवल 0.7 डॉक्टर और 1.7 नर्स उपलब्ध हैं, जबकि वैश्विक औसत 1 डॉक्टर और 2.5 नर्स प्रति हज़ार आबादी है। लेकिन बेहतर नर्स-रोगी अनुपात हासिल करने का लक्ष्य केवल पहला कदम है। नर्सों से संबंधित अन्य मुद्दों पर काम करना ज़रूरी जो उनके कार्यक्षेत्र के माहौल से जुड़े हुए होते हैं। प्राथमिक देखभालकर्ता होने के नाते, नर्स अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए कई बार हिंसा का सामना करना पड़ता  हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न घटनाएं हैं जिनके कारण नर्सें खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।

अक्सर नर्स को विभिन्न कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है, जोकि उनकी कर्तव्य एवं ज़िम्मेदारी का हिस्सा नहीं होते हैं, जिसके कारण उन्हें अपनी मुख्य जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कम समय मिलता है- अन्य कार्यों में जैसे बिल बनाना, रिकॉर्ड रखना, इन्वेंट्री, कपड़े धोने, आहार, फिजियोथेरेपी आदि हो सकते हैं, और इनको ठीक से न करने की स्थिति में छुट्टियाँ रद्द होना तथा वेतन कटौती जैसी सजा भी भुगतनी पड़ती है। 

सरकार द्वारा नीति निर्धारण के माध्यम से नर्सों की स्थिति में सुधार करने का प्रयास किया है।

स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न समितियाँ जैसे – भोरे समिति (1943), शेट्टी समिति (1954), मुदलियार समिति (1959-61), करतार सिंह समिति (1973), श्रीवास्तव समिति (1974), हाई पावर समिति (1987) समेत पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत में नर्स और दाई की स्थिति में परिवर्तन लाया है। इन समितियों द्वारा की गई सिफारिशों में स्टाफ से सम्बंधित, बुनियादी ढांचे एवं उपकरणों से जुड़ी आवश्यकताओं तथा विनियमों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गहनता और महत्व पर ध्यान केंद्रित किया है।

पिछले वर्ष, केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन किया, जिसके अनुसार चिकित्सा कर्मियों और फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा का कार्य अब एक आपराधिक कृत्य  माना जाएगा।  

इस तरह के फैसलों का स्वागत है, हालांकि नर्सों की नियमित कामकाजी स्थितियों में अभी भी महत्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है।

यह ब्लॉग इससे पहले अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव की वेबसाइट में अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया था, यह उसका हिंदी अनुवाद है।