साथियों के विचार- अमित कुमार

नमस्ते साथियों! मेरा नाम अमित कुमार है और मैं पिछले लगभग 15 वर्षों से इब्तिदा संस्था अलवर के साथ जुड़ा हूँ। हमारी संस्था ग्रामीण महिलाओं के साथ महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य जैसे बालिका शिक्षा, स्वयं सहायता समूह बनाना व उनको सशक्त करना, आजीविका संवर्धन के लिए खेती, पशु पालन, खेती में नवाचार गतिविधियाँ, सरकारी योजनाओं की जानकारी आदि कार्य करती है।

मैंने अपने पिछले लेख में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका के बारे में चर्चा की थी। अब मैं अपने इस नए लेख में बात करूँगा कि हमारे पूरे सिस्टम में गैर सरकारी संगठनों की ज़रूरत क्यों पड़ी, वर्तमान एवं भविष्य के परिदृश्य से मैं गैर सरकारी संगठनों की भूमिका को कैसे देखता हूँ तथा इस सबमें मुझे कौन सी मुख्य चुनौतियां दिखाई पड़ती हैं? 

आख़िर गैर सरकारी संगठनों की जरूरत क्यों पड़ी?

मुझे लगता है कि हमारे देश की जो भौगौलिक स्थिति है वह बहुत अलग है। देश की आबादी काफी फ़ैली हुई है और इसी वजह से गाँव व शहरों के पूरे ढांचे व रहन-सहन में काफी अंतर देखने को मिलता है जिससे ये स्वतः ही भिन्न हो हो जाते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि सरकार की योजनाओं का लाभ शहरों की तुलना में गाँव में आसानी से नहीं मिल पाता या यूँ कह सकते हैं कि देरी से भी मिलता है। सरकार की बहुत सी योजनायें हैं जैसे, पालनहार योजना, आवास योजना, स्वच्छ भारत योजना, सामाजिक  पेंशन योजनायें आदि की पहुँच में भी कई सारी बाधाएं देखने को मिलती रही हैं।

इसलिए मेरा मानना है कि ऐसे में जब प्रमुख सेवाओं की पहुँच नागरिकों तक मुश्किल रही तभी गैर सरकारी संगठनों की आवश्यकता इस पूरे सिस्टम में पड़ी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार जो भी योजनायें बनाती है वह सब आम नागरिकों की भलाई को ध्यान में रखते हुए हुई तैयार की जाती हैं। लेकिन जब सरकार किन्हीं कारणों चाहे वह संसाधनों की कमी हो या फिर वित्त से जुड़ी हुई हों, ऐसे में गैर सरकारी संगठनों ने अपने महत्व को समाज के सामने रखा है।

मौजूदा समय में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका?

मेरा मानना है कि गैर सरकारी संगठनों ने अपनी विश्वसनीयता को साबित करने के हर कदम प्रयास किये हैं। अगर अभी मौजूदा उदाहरण को ही लें तो कोविड-19 में हर किसी ने गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना की है। चाहे बात कोरोना के समय कोविड मरीज़ों की पहचान करने की हो, या फिर महामारी में घरों में कैद हुए लोगों के लिए राहत सामग्री व रोज़गार उपलब्ध कराने की बात रही हो, गैर सरकारी संगठनों ने सरकार के साथ मिलकर इस लड़ाई में पूरा साथ दिया है। आज कोई भी क्षेत्र ले लीजिये जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण, कृषि, स्वच्छता, आजीविका जैसे न जाने कितने ही मुद्दे हैं जिनको बेहतर करने में गैर सरकारी संगठन स्वयं व सरकार के साथ मिलकर नागरिकों तक सेवाएं पहुँचाने में लगे हैं। इसलिए वर्तमान समय को देखते हुए तो मैं निःसंदेह कह सकता हूँ कि नागरिकों तक सार्वजनिक सेवाओं की पहुँच गैर-सरकारी संगठनों के बिना संभव नहीं है। 

गैर सरकारी संगठनों का भविष्य?

मुझे लगता है ये बात अवश्य है कि गैर सरकारी संगठनों ने अपने महत्व को दर्शाया है। लेकिन क्या यह लम्बे समय तक इसी तरह से आगे बढ़ पायेगा, इसके लिए थोड़ा काम करना होगा। मेरा मानना है कि जैसे-जैसे समय बदल रहा है वैसे संस्थाओं को अपने कार्य मॉडल को भी बदलना होगा। अपनी कमियों कि पहचान करते हुए, क्षमताओं पर नियमित रूप से काम करते रहना होगा और जो भी समय की मांग हैं उसके अनुरूप अपने सिस्टम को अपडेट करते रहना होगा। उदाहरण के तौर पर शिक्षा अब एक बिज़नस मॉडल के रूप में उभर रहा है, इसलिए हमें मालूम होना चाहिए कि हम खुद को उस सिस्टम में कैसे ढाल पाएंगे। अभी भी हम अपने स्तर पर लोगों कि क्षमताओं को बढ़ाने व उनके लिए समय-समय पर एक्सपोजर विज़िट भी आयोजित करवाते हैं ताकि लोगों को और अधिक सीखने को मिले। 

चुनौतियाँ:

ऐसा देखने को मिलता है कि आज के युवा सरकारी नौकरियों व स्व-रोज़गार की तरफ अधिक आकर्षित हो रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि फिर इन संगठनों को आगे ले जाने का दायित्व फिर कौन उठाएगा। ऐसे लोग चाहिए तो गाँव तक बेहतर सुविधायें पहुचाने के लिए पूरी तरह से समर्पित हों। मुझे लगता है कि अब बड़ी समस्या यह भी है कि अधिकाँश गैर सरकारी संगठनों में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है जिसे बढ़ाया जाना चाहिये। इससे लैंगिक अंतर से भी निजात मिल पायेगी व सबसे महत्वपूर्ण यह की महिलाओं की भागीदारी अधिक बढ़ने से गाँव में महिलाओं से जुड़ी विभिन्न तरह कि समस्याओं की पहचान करने में और भी आसानी हो पायेगी। इसके अलावा गैर सरकार संगठनों को फण्ड भी अब समय के साथ कम और सिमित समय के लिए होता जा रहा है यानी सीएसआर (CSR) का पैसा एक सिमित समय में खर्च करना होता है जिससे पैसा जल्द खर्च करने का भी दबाव रहता है जबकि पहले लम्बे समय के लिए प्रोजेक्ट मिलते थे तथा उससे सम्बंधित गतिविधियों के लिए भी पर्याप्त समय मिल जाता था।

अतः समस्याओं व चुनौतियों पर बात करने जाएँ तो शायद एक लम्बी चर्चा हो जाएगी लेकिन हम सभी को समाधान की तरफ बढ़ना है। सरकार हो या फिर गैर सरकारी संगठन, हर किसी का मकसद आख़िर छोर पर बैठे नागरिक तक बेहतर सेवाएं पहुंचाने का है। इसलिए अपना बेहतर से बेहतर प्रदर्शन करते रहें और अपने महत्व को न्यायसंगत बनाते रहें!