चर्चा में है, ‘स्वास्थ्य का अधिकार’
कोविड-19 ने हम सभी के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है तथा इस मुश्किल वक्त में जिस तरह से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच हम नागरिकों के लिए दूर हुई हैं, उससे निःसंदेह ऐसे अधिकारों की ज़रूरत महसूस होती है जिसमें बिना किसी भेदभाव के हर किसी को मूलभूत सेवाओं का लाभ मिल सके!
नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए पहली बार राजस्थान की राज्य सरकार ने यह महत्पूर्ण कदम उठाने का निर्णय लिया है। यहाँ ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ यानी प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य का अधिकारी जिसे प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
हाल ही में राजस्थान ने ‘पब्लिक हेल्थ मॉडल’ के कार्यान्वयन की घोषणा की है, जिसमें ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा सुझाए गए निवारक, प्राथमिक एवं उपचारात्मक देखभाल के उपाय शामिल रहेंगे।
स्वास्थ्य का अधिकार का प्राथमिक ड्राफ्ट तैयार हो गया है, जिसके लिए सिविल सोसाईटी/ नागरिक/क्षेत्रवर्त संस्थाओं इत्यादि के आमंत्रित सुझाव भी आ चुके हैं।
वर्तमान में इसमें क्या चल रहा है:
इस अधिकार को लेकर लगातार कदम भी बढ़ाए जा रहे हैं जिसके तहत सरकार ने इसी साल की बजट घोषणा के उपरान्त चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत 5 लाख तक नि:शुल्क इलाज को 10 लाख रुपये तक बढ़ा दिया है।
हाल ही में समस्त सरकारी अस्पतालों में आईपीडी (मरीज के भर्ती होने के बाद डॉक्टरी परामर्श) एवं ओपीडी (प्रारम्भिक डॉक्टरी परामर्श) सेवाएँ नि:शुल्क कर दी गयी हैं। इसके अलावा यहाँ मुख्यमंत्री नि:शुल्क जांच एवं दवा योजना पहले से ही लागु है, जिसके अंतर्गत बिना किसी शुल्क के जांच एवं दवाओं का वितरण किया जा रहा है।
अब यहाँ अधिकार और सुविधायें उपलब्ध करवाने में ज़रा फर्क समझ लीजिये। अधिकार होने का मतलब यह है कि प्रत्येक नागरिक को उसके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध करवाने में किसी भी परिस्थिति में कानूनन वंचित नहीं किया जा सकता यानी सरकार को हर स्थिति में अपने नागरिकों को अह सुविधा देनी होगी।
क्या कहता है, संविधान:
मूल अधिकार: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।
राज्य नीति के निदेशक तत्त्व: अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 के तहत स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है।
इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है, जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि ‘अधिकार’ सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं तथा सुनिश्चित करते हैं कि सेवाओं की गुणवत्ता उन लोगों के लिए बेहतर हो , जो इन्हें प्राप्त करते हैं। वैसे लोग स्वास्थ्य के अधिकार के हकदार हैं और सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाना उसका उत्तरदायित्त्व है।
‘स्वास्थ्य का अधिकार’ पर आधारित इस लेख पर एक नागरिक के तौर पर आप क्या सोचते हैं? जिस तरह से सूचना का अधिकार कानून सर्वप्रथम राजस्थान में लागू किया गया था जो आज पूरे देश में लागू है! क्या आप इस कानून को भी देशव्यापी देखना चाहेंगे? ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जिनपर सरकारों को इस तरह के कानून लाने की आवश्यकता है? हमें इसपर अपनी राय ज़रूर भेजें।
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