पर्यावरण संरक्षण बेहद ज़रुरी! – ‘पर्यावरण दिवस’ विशेषांक
आज विश्व पर्यावरण दिवस है! आज के इस बेहद ख़ास अवसर पर हर तरफ पर्यावरण को लेकर बहुत सारे कार्यक्रम, चर्चाएं एवं रैलियों का आयोजना किया जाता है। इससे इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि हम सभी पर्यावरण और उससे जुड़े सभी पहलुओं को लेकर कितने चिंतित हैं! लेकिन क्या यह संजीदगी हमें केवल किसी विशेष दिन के लिए ही दिखानी चाहिए या फिर पर्यावरण जैसे एक बेहद गंभीर मुद्दे को लेकर प्रतिदिन इसके बचाव को लेकर नए-नए उपाय खोजने चाहिए?
प्रकृति, हमेशा बिना स्वार्थ और प्रेम सहित अपनी सारी अमूल्य सुख सम्पदायें मानव जीवन के लिए न्यौछावर करती रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इंसानों ने भी उतनी ही शिद्दत से इसकी हिफ़ाजत की है? क्यों लोग भौतिक संसाधनों को पाने की भूख में इतने मशगुल हो गए हैं कि उन्हें इस बात का अंदाजा तक नहीं है कि आने वाला समय उनकी आगामी पीढ़ियों के लिए कितना चुनौतियों भरा होगा?
देश में शायद ही कोई राज्य होगा जो पर्यावरण के साथ होने वाले खिलवाड़ से बच पाया हो। इसमें राज्य चाहे समतल क्षेत्रों के हो या फिर पहाड़ी इलाके, हर कोई पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
अगर पहाड़ी राज्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो यह राज्य हमेशा से ही अपनी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र रहा है। यहाँ के पर्यटन स्थल, बर्फ से लदे पहाड़, नदियाँ, झरने एवं पेड़-पौधे इसकी सुन्दरता को सदा से ही चार-चाँद लगाते रहे हैं। लेकिन अब यहाँ पर भी बहुत कुछ बदल रहा है, हिमाचल अब बाकी राज्यों की तरह प्रदुषण, पर्यावरण के शोषण से अछूता नहीं रहा है इसमें बात चाहे, बढ़ते उद्योगों या फिर पहाड़ों के कटाव करके विकास के नाम पर हाईवे एवं भवन बनाने की हो।
भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017 के अनुसार हिमाचल प्रदेश के 55,673 वर्ग किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र में से 15,100 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। इसमें 3,110 वर्ग किलोमीटर अत्यधिक सघन वन क्षेत्र, 6,705 वर्ग किलोमीटर मध्यम सघन वन क्षेत्र व 5,285 वर्ग किलोमीटर खुला वन क्षेत्रफल शामिल है। हालांकि भारतीय वन सर्वेक्षण 2017 की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश ने 393 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की है जिससे मालुम चलता है कि पिछले गत वर्षों से सरकारों ने पर्यावरण के प्रति अपनी संजीदगी दिखाई है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी केवल अकेले सरकार की ही है? जो हम अक्सर चर्चा करते हैं कि एक नागरिक होने के नाते इसमें हम भी अपना योगदान दे सकते हैं, तो क्या असल में व्यवहारिक तौर पर हम इसके लिए समय दे पा रहे हैं?
पिछले कई वर्षों से प्रतिवर्ष हम कुछ मित्र मिलकर पौधारोपण के लिए अपना समय ज़रूर निकालते हैं तथा यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि पौधे जीवित रहें। इतने वर्षों से कुछ ऐसी चीजें हैं जो हमने अनुभव की हैं और यह समझने की कोशिश की है कि कुछ समाधान हैं जो केवल सरकार कर सकती है और कुछ ऐसे हैं जो हमें और आपको भी करने ही होंगे।
- पिछले कुछ सालों से सरकारें बड़ी ईमारतें, हाईवे बनाती रही हैं ताकि लोगों का जीवन सरल हो सके लेकिन विकास के नाम पर जिस तरह से प्रकृति का दोहन हो रहा है, वह भी किसी से छुपा नहीं है। अब समय आ गया है जब सरकार (केंद्र स्तर पर हो या राज्य स्तर पर) को इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट देते समय यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि जितने भी पेड़-पौधों की क्षति इस दौरान होगी, उतने तो कम से कम उसी क्षेत्र के आस-पास या फिर अन्य जगह लगाए जाने अनिवार्य हों, तभी कॉन्ट्रैक्ट स्वीकृत होगा। अगर ऐसा सिस्टम बनेगा तो जवाबदेही सबकी होगी और कहीं न कहीं इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण संभव हो पायेगा।
- पर्यावरण संरक्षण में वन विभाग का रोल बहुत ज्यादा अहम् है। अहम् इसलिए नहीं है कि सारी जिम्मेदारी केवल उन्हीं की ही है बल्कि इसलिए कि आम-जन को पर्यावरण और उसके संरक्षण के लिए प्रेरित करना, यह उनका सबसे बड़ा दायित्व है। यह बहुत मुश्किल काम नहीं है बल्कि अगर मंशा और योजना सही हो तो यह सब करना आसान है। अगर वन विभाग के अधिकारी समय-समय पर अन्य विभागों के अधिकारियों, सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं, छात्रों, महिला मंडलों, युवक मंडलों तथा ग्राम सभाओं में इसके लिए आह्वाहन करें तो निश्चित रूप से लोग इस अभियान में जुड़ेंगे। क्योंकि वर्तमान में प्लास्टिक भी एक बड़ी समस्या उभरकर सामने आई है, अतः सरकार द्वारा लोगों को बेकार प्लास्टिक पैकेट्स को घरेलु चीजों के रूप में तैयार करने से सम्बंधित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जिससे प्लास्टिक का निपटान भी होगा और उनकी आमदनी भी होगी।
- समाज में शिक्षकों का दर्जा हमेशा ही सर्वोच्च माना गया है क्योंकि वे हमें एक सभ्य एवं गुणी नागरिक होने की प्रेरणा देते रहे हैं। क्योंकि बच्चे हमेशा अपने शिक्षकों का अनुसरण सबसे अधिक करते हैं, तो क्या एक ऐसा सिस्टम नहीं होना चाहिए जहाँ बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के शुरुआत से ही उन्हें पौधारोपण और उनके संरक्षण के बारे में प्रक्टिकल रूप से समझाया जाए? क्या यह इतना मुश्किल है? जहाँ संभव है विद्यालय के आस-पास बच्चों से पौधारोपण करवाया जाए और जितना संभव हो, उन्हें ही इनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी सौंपी जाए।
अगर इस तरह की शिक्षा को प्रैक्टिकल से जोड़कर बच्चों को समझाया जाए और उन्हें इसके प्रति जिम्मेदार बनाया जाए तो आगे चलकर यह सब उनके स्वभाव में स्वतः ही शामिल हो जाएगा। इससे भविष्य में सरकार पर पड़ने वाला दबाव भी कम होगा क्योंकि अगर नागरिक इस तरह की जिम्मेदारी अपने ऊपर उठा लेंगे तो समझ लीजिये की सभी का भविष्य काफी सुरक्षित होगा।
अंत में बस यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हम-आप सभी जिस रफ़्तार भरी जिन्दगी में जी रहे हैं, उसमें हम खुद के लिए एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल सुख संसाधनों को जुटाने में ही व्यस्त हैं। इसलिए बात कड़वी जरुर है लेकिन सच है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़े घर, गाड़ियां एवं अन्य भौतिक संसाधन तो होंगे बस अगर नहीं होगा तो स्वच्छ पानी, स्वच्छ हवा जिसमें वे चैन से अपना जीवन जी सकें। अतः हम सभी को एक जागरूक नागरिक होने के नाते अब गंभीरतापूर्वक यह सोचना होगा कि बाकि भौतिक संसाधनों के अलावा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना भी हमारा ही दायित्व है।