साथियों के विचार- आकृति भारती
नमस्ते! मेरा नाम आकृति भारती है और मैं ‘हम और हमारी सरकार’ कोर्स 2.O की पूर्व प्रतिभागी हूँ। ‘साथियों के विचार’ सेक्शन के ज़रिये मैं बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर बात करने जा रही हूं।
बिहार की ज्यादातर आबादी ग्रामीण क्षेत्र में बसती है। साक्षरता दर का बढ़ना और घटना काफी हद तक ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर करता है। बिहार की साक्षरता दर यह बताने के लिए काफी होती है कि राज्य में शिक्षा व्यवस्था कितनी दुरुस्त है।
सबसे पहले मैं उन बातों को ख़ास तौर पर आपसे साझा करना चाहूंगी जो मैंने अपनी ज़मीनी स्तर पर अनुभव किये हैं, शायद आप भी उनसे कुछ कनेक्ट कर पाएं।
मैंने कई जगहों पर देखा है कि विद्यालय भवन के बिना चल रहे हैं तो कहीं भवन तो हैं मगर स्वच्छ शौचालय की व्यवस्था ही नहीं है। यही नहीं, अगर शिक्षा की गुणवत्ता की बात की जाए तो किताबों में कोई कमी नहीं है किताबें काफी बढ़िया हैं। मगर इन किताबी ज्ञान को सभी बच्चों तक पहुंचाने के लिए जो व्यवस्था होनी चाहिए उसमें कमी है जैसे कि शिक्षक और विद्यार्थी का सही अनुपात में ना होना। देखने को यह भी मिलता है कि बच्चों के लिए पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। यह भी एक कारण है जिससे पठन-पाठन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा शिक्षकों को गैर अध्यापन कार्यों में शामिल करने की वजह से भी बच्चों की पढ़ाई पर असर होता है। इन सब की वजह से जो कमी बच्चों की पढ़ाई में आती है उसकी भरपाई जीवनभर होना मुश्किल है अतः यह मुद्दा स्वयं ही अति संवेदनशील हो जाता है।
इसके अलावा एक और जो गंभीर समस्या ग्रामीण क्षेत्र में देखने को मिलती है वह है बच्चों का ख़ासकर लड़कियों का सत्र के बीच में ही पढ़ाई छोड़ देना। इसके लिए अभिभावक सबसे अधिक जिम्मेदार हैं क्योंकि यदि वे ही शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पाएंगे तो आने वाले समय में अपने बच्चों का भविष्य कैसे बेहतर कर पाएंगे? समाज अब बदल चूका है तथा लड़कियों ने साबित किया है कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं और न ही ऐसा कोई कार्य क्षेत्र है जिसमें वो आगे नहीं आ पाएं। इसलिए इन सभी समस्याओं पर विशेष तौर पर काम किया जाए तो निःसंदेह बिहार की शिक्षा व्यवस्था का कायापलट आने वाले दिनों में देखा जा सकता है।
इन सब की जवाबदेही केवल सरकारी पद पर आसीन लोगों की ही नहीं है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की भी है। शिक्षा व्यवस्था ठीक से चले इसके लिए बच्चों की अनुपस्थिति और बच्चों का समय से पहले पढ़ाई या स्कूल छोड़ देना, इन सब की जिम्मेदारी हम लोगों की बनती है। हमें शिक्षकों के साथ मिलकर स्कूल व्यवस्था की रूपरेखा तय करनी चाहिए, जिससे शिक्षकों की भी जवाबदेही तय हो। हर विद्यालय में पंचायती स्तर पर अभिभावकों का एक समूह होना चाहिए जो स्कूल की विधि व्यवस्था को शिक्षकों के साथ मिलकर सुनिश्चित करें। जहां तक बात रही भवन, शिक्षकों की कमी एवं शिक्षक विद्यार्थी के सही अनुपात की तो सरकार को यह जवाबदेही लेनी चाहिए कि वह समय-समय पर भर्ती सुनिश्चित करें और प्राथमिक शिक्षा में एक गरिमापूर्ण बजट का हिस्सा खर्च हो ताकि विद्यालय बुनियादी सुविधाओं से वंचित न रहें।