शासन में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका (भाग 1)

क्या आपने अनुभव किया है कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) ने पिछले कुछ सालों में कितनी तरक्की कर ली है?

यहाँ आईटी इसलिए संबोधित किया जा रहा है क्योंकि हम तकनीक के साथ-साथ शब्दों को संक्षिप्त में बोलने-समझने में भी उतने ही सहज हो चुके हैं। 

खैर,आज विषय भाषा की तकनीक का नहीं बल्कि सूचना की तकनीक का हैइस बात को कहने में कोई संशय नहीं होगा, जब हम ये कहें कि यह युग सूचना प्रौद्योगिकी का ही है! सूचना प्रेषित और प्राप्त करने का समय इतना कम हो गया है, मानो सारा विश्व ही एक दुसरे के समीप आ गया हो। समय के साथ- साथ भारत के सरकारी प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी की बड़े पैमाने पर उपस्थिति दर्ज हुई है।

सर्वप्रथम भारत सरकार द्वारा प्रमुख विकास स्तंभों में सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक संवाद को वैधता प्रदान की गई और इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए कार्य प्रथाओं का नियमन किया गया। इसके बाद सरकार ने राष्‍ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी) को 18 मई 2006 को अनुमोदित किया। वर्ष 2011 में 27 मिशनमोड परियोजनाओं की सूची में स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, पीडीएस और डाक परियोजनाएं जोड़ दी गईं और इस प्रकार अब 31 मिशनमोड परियोजनाएं हैं।

इस समय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी के लिए भारत सरकार का मंत्रालय है तथा सभी राज्यों ने भी अपने पृथक सूचना प्रौद्योगिकी विभाग बनाये हुए हैं, जोकि शासन को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से चलाने के लिए नित नवाचार कर रहे हैं 

क्या है ई-शासन

ई-शासन का शाब्दिक अर्थ होता है, इलेक्ट्रॉनिक-शासन यानी तकनीक के माध्यमों का प्रयोग करते हुए प्रशासन चलाना। यहाँ हम जिस तकनीक की बात हम कर रहे हैं, उसे ‘सूचना प्रौद्योगिकी’ कह सकते हैं। ई-शासन को हम समान्य बोलचाल में ई-गवर्नेंस भी कहते हैं।

ई-गवर्नेस की श्रेणियां

भारत एवं विश्व के कई देशों में ई-गवर्नेंस कई रूपों में प्रवर्तित है। मुख्य रूप से ई-गवर्नेंस संबंधी परियोजनाओं को सेवा प्रदान करने की दृष्टि से 5 श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:

  • सरकार से सरकार तक (जी.टू.जी.): जब सरकार के किसी विभाग का दूसरे किसी विभाग से ई-गवर्नेंस के माध्यम से संपर्क होता है तो यह श्रेणी गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट कहलाती है। जैसे खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय, खाद्यान्नों सम्बन्धी आवश्यकताओं की सूचना कृषि मंत्रालय को भेजे या फिर वित्त मंत्रालय अन्य मंत्रालयों को वित्तीय सूचना उपलब्ध कराये इत्यादि।
  • सरकार से जनता तक (जी.टू.सी.): सरकार एवं नागरिकों के बीच पास्परिक व्यवहार गवर्नमेंट टू सिटीजन श्रेणी में आता है जैसे आयकर विवरणी जमा कराना, विद्युत् एवं जल सम्बन्धी शिकायतें करना, दर्पण पोर्टल ,जन सुचना पोर्टल इत्यादि इसके उदाहरण हैं।
  • सरकार से व्यवसाय तक (जी.टू.बी.): गवर्नमेंट टू बिजनेस श्रेणी के अंतर्गत सरकार व्यापार जगत से संपर्क कर लेनदेन करती है, जैसे ऑनलाइन ट्रेडिंग तथा सीमा एवं उत्पाद शुल्क संबंधी प्रकरण इत्यादि।
  • सरकार से कर्मचारी तक (जी.टू.ई.): इसमें सरकार अपने कर्मचारियों (गवर्नमेंट टू इम्पलॉयी) से संप्रेषण करती है। जैसे पंचायतो के लिए प्रिया सॉफ्ट ,राज-काज, शाला-दर्पण को वो हिस्सा जिसमें शिक्षक एवं विभाग अपनी सूचनायें एवं निगरानी साझा करते हैं।
  • नागरिक से नागरिक तक (सी.टू.सी.): सिटीजन टू सिटीजन श्रेणी में नागरिकों का पारस्परिक सम्पर्क होता है। जैसे राजस्थान सिंगल साइन-ऑन एवं अन्य माध्यम जहाँ सरकार नागरिकों का जुड़ाव करती है।

ई-गवर्नेंस की विशेषता:

ई-गवर्नेंस की अवधारणा मूल रूप से बेहतर सरकार की मान्यता को सार्थक करती है। इसके तहत नौकरशाही का संतुलित आकार, सरकारी प्रशासन में सच्चरित्रता, लोक सेवाओं के प्रति सामाजिक जवाबदेही, जनता में प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता जगाना तथा प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता लाना इत्यादि शामिल होता है।

आज के समय कागज़ी कार्यवाही में आई कमी एवं देरी के कारणों का ऑनलाइन स्थिति जाँच, इन सब से सुलभता का अंदाजा आप लगा सकते हैं कि सरकारी प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी ने क्या भूमिका निभायी है। कोरोनाकाल में हमने टेलीकांफ्रेंस का खूब प्रयोग किया है। सरकार ने अपने भी आईटी एप्लीकेशन्स से प्रशासन में दक्षता बढ़ाई है। सरकारी विभागों की संगठनात्मक, कार्यात्मक एवं प्रक्रियात्मक से सम्बन्धित  सूचनाएं, विकासपरक एवं सामाजिक कल्याण से संबंधित योजनाओं का ऑनलाइन विवरण,आदेश पत्रों की उपलब्धता एवं भरे हुए पत्रों की स्वीकार्यता,पंजीकरण सुविधा,दस्तावेजों की प्रतिलिपियां आदि ऐसे कुछ प्रयोग हैं जिन्हें हम दैनिक जीवन में देखते हैं।

ई-गवर्नेस की चुनौतियां:

यह निसंदेह सत्य है कि सूचना प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों से प्रशासनिक एवं नागरिक भागीदारी तथा कल्याण में बढ़ोतरी हुई है परन्तु कुछ चुनौतियां भी निकलकर सामने आई हैं, जिसे कुछ आलोचक इस प्रकार विवेचित करते हैं:

  • अत्यधिक निगरानी: सरकार एवं इसके नागरिकों के बीच बढ़ता संपर्क दोनों तरीके से कार्य कर सकता है। नागरिकों को व्यापक पैमाने पर सरकार के साथ इलेक्ट्रॉनिक रूप से संपर्क करने के लिए बाध्य किया जाएगा। सम्भावना है कि इससे नागरिकों की निजता भंग होगी।
  • सभी की पहुंच में न होना: ई-गवर्नेस से तात्पर्य लगाया जाता है कि सरकार की सूचना एवं सेवाओं तक सभी नागरिकों की पहुंच हो सकती है, जो एक लोकतंत्र के लिए अच्छा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सभी नागरिक स्वतः सूचना एवं सेवाओं को प्राप्त करने की स्थिति में हैं या फिर उसके लिए उतने जागरूक हैं।
  • तकनीकी उपकरणों एवं कुशल कारीगरों की मुश्किल प्राप्ति: ई-गवर्नेस में कंप्यूटर, सीसीटीवी, ट्रेकिंग तंत्र और रेडियो जैसे उपकरणों का प्रयोग शामिल होता है। विकासशील देशों में इस प्रकार तकनीकों को अपनाना एक समस्या हो सकती है।
  • पारदर्शिता एवं जवाबदेही का असत्य बोध: ऑनलाइन सरकारी पारदर्शिता द्विअर्थी प्रतीत होती है क्योंकि इसे स्वयं सरकार नियंत्रित करती है।

कुल जमा बात यह है कि सूचना प्रौद्योगिकी के सहारे शासन-प्रशासन में बहुत गति आई है, परन्तु उसके साथ-साथ भारत जैसे विकासशील देश में चुनौतियां भी काफ़ी हैं। एक नागरिक के तौर पर हमें जागरूक होने के साथ-साथ तकनीकी कुशलता पर भी ज़ोर देना होगा ताकि आने वाले तकनीक के भविष्य हेतु ‘हम और हमारी सरकार’ दोनों स्वागत के लिए तैयार रहे।

अगले भाग में हम समझेंगे की सूचना प्रौद्योगिकी के एप्लीकेशन के उपयोग से सरकार के साथ जुड़ कर कैसे काम कर सकते हैं। एक नागरिक के तौर पर हम सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए किस तरह की सूचनायें प्राप्त कर सकते हैं तथा उनका प्रयोग कहाँ और कैसे कर सकते हैं। खासकर स्थानीय अनुप्रयोगों पर जैसे – ई-पंचायत, स्थानीय स्तर के सुचना तंत्र, ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) एवं अन्य पर आपसे अगले लेख में चर्चा करेंगे।

यदि आप इस लेख से सम्बन्धित कुछ और जानना चाहते हैं अथवा शासन-प्रशासन से जुड़े किसी भी विषय के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं, तो हमें humaari.sarkaar@cprindia.org पर जरुर लिखें!