पंचायती राज संस्थाओं को कार्यों का हस्तांतरण
पंचायती राज सप्ताह के पिछले अंक में आपने जाना था कि पंचायती राज संस्थाओं का सफ़र अभी तक किस तरह का रहा है तथा अंततः 73वें संवैधानिक संशोधन के बाद इन संस्थाओं को अपनी मूल पहचान मिल पायी।
लेकिन इसकी ज़मीनी वास्तविकता क्या है? क्या स्थानीय सरकारों को जो अधिकार देने की बात की गयी है वो वाकई में दिए भी गए हैं? तो आईये इस अंक में बात करेंगे कि आख़िर पंचायती राज संस्थाओं में कार्यों का हस्तांतरण किस तरह से हुआ है तथा अभी और कितना सफ़र तय करना बाकी है।
भारत की ज्यादातर आबादी गाँवों में निवास करती है। अब राज्यों एवं केंद्र के लिए इतना आसान नहीं था कि वे स्थानीय स्तर पर लोगों की स्थिति एवं ज़रूरतों का सही आकलन कर पाए। इसलिए ज़रूरी था कि ऐसी संस्थागत विकेंद्रीकृत व्यवस्था हो जो स्थानीय ज़रूरतों का सही से आकलन करे तथा ज़मीनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्लान बनाकर उच्च स्तरीय सरकारों को भेजे। जिससे हर उस व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ मिले जिसे उसकी सबसे अधिक ज़रूरत है।
73वें संवैधानिक संशोधन के आने से पंचायतों को स्थानीय सरकार के रूप में पहचान मिली। इसके साथ ही उन्हें कुछ जिम्मेदारियां भी हस्तांतरित करने की बात कही गयी।
कार्य जो सौंपे गए हैं:
1. कृषि विकास एवं विस्तार 2. भूमि विकास, भूमि सुधार लागू करना, भूमि संगठन एवं भूमि संरक्षण 3. पशुपालन,दुग्ध व्यवसाय तथा मत्यपालन 4. मत्स्य उद्योग 5. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन एवं नदियों के मध्य भूमि विकास 6. वन विकास 7. लघु उद्योग जिसमें खाद्य उद्योग शामिल है 8. ग्रामीण विकास 9. पीने का शुद्ध पानी 10. खादी, ग्राम एवं कुटीर उद्योग 11. ईंधन तथा पशु चारा 12. सड़क, पुल, तट जलमार्ग तथा संचार के अन्य साधन 13. वन जीवन तथा कृषि खेती (वनों में) 14. ग्रामीण बिजली व्यवस्था 15. गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत 16. यांत्रिक प्रशिक्षण एवं यांत्रिक शिक्षा 17. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी विद्यालय 18. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम 19. वयस्क एवं बुजुर्ग शिक्षा 20. पुस्तकालय 21. बाजार एवं मेले 22. सांस्कृतिक कार्यक्रम 23. अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जिनमे दवा खाने शामिल हैं 24. पारिवारिक समृद्धि 25. सामाजिक समृद्धि जिसमें विकलांग एवं मानसिक समृद्धि शामिल हैं, 26. महिला एवं बाल विकास 27. समाज के कमज़ोर वर्ग की समृद्धि जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति 28. लोक विभाजन पद्धति 29. सार्वजनिक संपत्ति की देखरेख शामिल है।
इन कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण राज्य के क़ानून पर निर्भर है। राज्य को यह फैसला करना होता है कि कुल 29 विषयों में से कितने स्थानीय सरकारों के हवाले करने हैं और जब इसकी वास्तविकता की तरफ जाएँ तो मालुम चलता है कि राज्यों ने पंचायतों को सभी 29 विषय सौंपे भी नहीं हैं।
कुछ राज्यों के पंचायती राज क़ानून का विश्लेषण करने से मालुम चलता है कि राज्य भी इस हस्तांतरण के विषय में उतनी गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। उदाहरण के लिए अगर हिमाचल प्रदेश राज्य की बात की जाए तो राज्य ने पंचायतों को कुल 23 कार्य सौंपे हैं जिसमें से ग्राम पंचायतों को 11, पंचायत समिति को 16 तथा जिला परिषद को 17 कार्य सौंपे गए हैं। अब आप इसे देखकर उलझन में ना पड़ें! जैसा आप देखेंगे तो आप कहेंगे की पंचायतों को तो कुल 44 कार्य सौपे गये हैं लेकिन ऐसा नहीं है। इनमें कुछ कार्य ऐसे हैं जो जिला परिषद को भी सौंपे गए हैं और ब्लॉक पंचायत को भी, इसलिए वही कार्य दोनों स्तर पर दोहराए गए हैं जिससे दोनों स्तर पर यह भी उलझन पैदा हो सकती है कि वह कार्य वास्तव में करना किसे है।
ये तो बात हुई की कार्य सौंपे गए हैं लेकिन इसके लिए अलग से लोग तथा पैसा हस्तांतरित नहीं किया गया है। यानी अलग-अलग विभाग पंचायती राज संस्थाओं के अंतर्गत कार्य न करते हुए अपने-अपने विभागों के तहत कार्य करते हैं। तो अब सवाल यह उठता है कि फिर पंचायती राज संस्थाओं के लिए यह किस बात का हस्तांतरण हुआ! यह सिर्फ हिमाचल प्रदेश की ही स्थिति ऐसी नहीं है बल्कि अधिकतर राज्यों में आपको देखने के लिए मिल जाएगा। आप अपने राज्य में पता कर सकते हो कि आपके राज्य की क्या स्थिति है।
वहीं अगर राजस्थान राज्य की बात करें तो वहां पर पंचायती राज संस्थाओं को 5 विभाग सौंप दिए गए हैं जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई आदि शामिल हैं। राज्य ने विकेंद्रीकृत व्यवस्था को बढ़ाने के लिए इन विभागों को पंचायती राज संस्थाओं के अंतर्गत हस्तांरित किया है ताकि पंचायती राज संस्थाएं भी इनके साथ मिलकर लोगों के लिए बेहतर कार्य कर पाएं।
अतः अंत में इस बात को समझना बेहद ज़रूरी है कि राज्यों को संवैधानिक प्रावधानों को महत्व देते हुए स्थानीय सरकारों को काम, पैसा और लोग जिनसे ये कार्य पूरे हो पाएंगे, वह भी हस्तांतरित करना होगा। इससे न केवल राज्यों को भी योजनाओं को बेहतर तरीके से क्रियान्वयन करने में मदद मिलेगी बल्कि स्थानीय सरकार को शक्तियां देने से काम में भी तेज़ी आएगी!