‘विकेंद्रीकरण को सशक्त करने की आवश्यकता’- ओम प्रकाश
नमस्ते साथियों!
मेरा नाम ओम प्रकाश है और मैं जयपुर, राजस्थान का स्थायी निवासी हूँ। मैं पिछले कई वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में अपनी सेवाएं देता आ रहा हूँ, जिसमें मुझे अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़कर काम करने का मौका मिला है। मैंने अभी तक सामाजिक समानता, लैंगिक समानता, जनसंख्या नियंत्रण आदि कई बिंदुओं पर विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर काम किया। इस दौरान मैंने राजस्थान के विभिन्न जिलों एवं देश के अन्य राज्यों का दौरा किया जिससे मुझे वहां की सामाजिक परिस्थितियों एवं ग्रामीण परिवेश को करीब से देखने का अनुभव मिला। वर्तमान में मैं एक पत्रकार के रूप में अपनी भूमिका निभा रहा हूँ।
मैंने अपने पिछले ब्लॉग में स्थानीय सरकार की सीमाएं और सुधार की राह में पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत महिला प्रतिनिधियों की राह में प्रमुख बाधाओं को रेखांकित किया था। अपने ज़मीनी अनुभवों के आधार पर मैंने इस ब्लॉग में महिला प्रतिनिधियों को सशक्त करने तथा उनमें एक लीडर के तौर पर आगे बढ़ने की आवश्यकता पर बात की थी।
मैं आज के इस लेख में पंचायती राज संस्थाओं में कुछ अन्य बाधाओं पर चर्चा करूँगा।
पंचायती राज संस्थाओं को वैसे तो संवैधानिक तौर पर स्थानीय सरकार का दर्जा प्राप्त है लेकिन जब हम इसकी गहराई में जाते हैं तो कई सारी ख़ामियाँ आज भी देखने को मिलती हैं।
वार्ड पंच:
सरपंच की तरह वार्ड पंच, वार्ड स्तर की सबसे महत्वपूर्ण इकाई होती है। महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि एक वार्ड पंच स्थानीय स्तर पर समस्याओं को बेहद नजदीकी से समझ पाते हैं तथा समुदाय से सीधे तौर पर नियमित जुड़े रहते हैं। वार्ड पंच का चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से किया जाता है। एक बार वार्ड पंच चुने जाने के बाद पंच से लोगों की बहुत सी उम्मीदें जुड़ जाती हैं और इस भरोसे के साथ की अब उनकी स्थानीय समस्याओं का निराकरण उनके चुने हुए पंच करेंगे। अब इसमें दुविधा यह होती है कि सभी तरह की शक्तियां सरपंच के पास ही निहित होती हैं तथा सरपंच ही आमतौर पर पूरी पंचायत के विकास कार्यों में लीड लेते हैं तथा कार्य की प्रगति एवं खर्च को स्वयं देखते हैं। इसके लिए उन्हें सहयोग करने के लिए पंचायत सचिव के तौर पर एक प्रशासनिक अधिकारी होता है। वार्ड पंच के पास कोई वित्तीय अधिकार नहीं होता। अगर उसको अपने वार्ड में कोई विकास कार्य करवाना है तो वह सरपंच के रहमों करम पर निर्भर होता है। इसके अलावा वार्ड पंचों को मानदेय के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता। केवल एक मीटिंग के ₹276 दिए जाते हैं। अपने वार्ड की हर प्रकार की समस्याओं जैसे कि कचरे की समस्या हो, रोड से संबंधित समस्या हो, पेयजल से संबंधित या फिर अन्य कोई विकास कार्य से संबंधित समस्या हो तो वह केवल पंचायत मीटिंग में उनको दर्शा सकता है।
पंचायत समिति सदस्य:
इसी तरह ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति के सदस्यों को प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है। कुछ पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन किया गया है अतः सम्बंधित पंचायत के लोग, पंचायत सदस्य से विकास कार्यों से जुड़ी अनेक आकाक्षायें रखते हैं। अब इसमें भी देखने को मिलता है कि पंचायत सदस्य के पास नाममात्र शक्तियां हैं। वार्ड पंच की तरह ही पंचायत समिति सदस्य भी केवल नाम मात्र के जनप्रतिनिधि होते हैं। उनके पास भी अपने कोई वित्तीय अधिकार नहीं होते। इनके लिए भी मानदेय का कोई प्रावधान नहीं होता। इनको भी एक मीटिंग के ₹483 दिए जाते हैं। अपने पंचायत समिति परिक्षेत्र के लिए इनको पंचायत समिति के प्रधान पर निर्भर रहना पड़ता है। राजस्थान में पंचायत समिति सदस्यों ने अपने अधिकारों एवं शासन में अपनी भागीदारी बढ़ाने को लेकर पिछले दिनों आंदोलन भी किया था।
जिला परिषद सदस्य:
ग्रामीण क्षेत्रों से जिले में ग्रामीण समस्याओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए जिला परिषद सदस्यों का निर्वाचन होता है और इन्हीं सदस्यों में से जिला प्रमुख का निर्वाचन किया जाता है। एक वार्ड पंच एवं पंचायत समिति सदस्य की तरह जिला परिषद सदस्य के पास भी अपने कोई वित्तीय अधिकार नहीं होते। इनको भी प्रति मीटिंग ₹690 दिए जाते हैं। अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाने के लिए अपने एजेंडे साधारण सभा की मीटिंग में रख सकते हैं।
कुल मिलाकर बात यह है कि एक जिला परिषद सदस्य, पंचायत समिति सदस्य एवं ग्राम पंचायत का वार्ड पंच भी जनता से निर्वाचित होकर आते हैं परन्तु उसके बाद विकास कार्यों में इनकी भूमिका नगण्य कर दी जाती है। अतः बेहतर विकेंद्रीकरण की दृष्टि से इन्हें भी अपने निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित समस्याओं के निराकरण के लिए अधिकार मिलने चाहिए, अधिकार चाहे वित्तीय हों, प्रशासनिक हों या फिर अन्य इससे जुड़े हों। तब ही इनके चुने जाने की प्रासंगिकता सही मायनों में सिद्ध हो पायेगी।
ओम प्रकाश जी ‘हम और हमारी सरकार’ कोर्स के पूर्व प्रतिभागी हैं। प्रकाशित लेख में लेखक के अपने विचार हैं।