प्रशासन के सितारे – श्री कश्मीर सिंह
‘प्रशासन के सितारे’ सेक्शन में आइये मिलते हैं, श्री कश्मीर सिंह जी से जो ब्लॉक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी के रूप में जिला काँगड़ा में अपनी सेवायें दे रहे हैं। आईये जानते हैं कि शिक्षा विभाग में उनका अभी तक का सफर किस तरह का रहा है तथा वह किन नैतिक मूल्यों को जीवन में अपनाना जरुरी मानते हैं ।
1) आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर काम कर रहे हैं? आपका मुख्य कार्य क्या है?
जवाब: मैं राज्य प्रारम्भिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत जिला काँगड़ा में ब्लॉक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी (BEEO) के पद पर वर्ष 2022 से कार्यरत हूँ। वर्तमान में मेरे कार्य इस प्रकार से है, पहला कार्य ब्लॉक के सभी 88 प्रारम्भिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत आने वाले स्कूलों को शिक्षा विभाग से प्राप्त निर्देशों एवं नीतियों का शिक्षण संस्थानों में सक्रिय रूप से क्रियान्वयन करना। उसी प्रकार से फील्ड से ब्लॉक स्तर पर प्राप्त होने वाली मांग को जिला शिक्षा अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना। दूसरा, ब्लॉक स्तर पर सभी संकुल समन्वयक अधिकारी के साथ मासिक बैठक में प्रगति रिपोर्ट लेना और स्कूल स्तरीय प्रशासनिक एवं शैक्षणिक समस्यों का निराकरण करना एवं विभागीय निर्देशों से उन्हें अवगत करवाना रहता है। तीसरा, हर माह 15 स्कूलों का रोस्टर तैयार कर सरप्राइज विजिट शेड्यूल करना, जिसमें स्कूल के प्रशासनिक, शैक्षणिक गतिविधियों को जांचना और स्कूल प्रशासन को यदि किसी तरह की समस्याएं हैं तो उनका निराकरण करना मुख्य कार्यों की सूची में शामिल है।
2) अभी तक के सफर में सरकार से जुड़कर काम करने का अनुभव कैसा रहा है?
जवाब: मेरा अनुभव काफी बेहतरीन रहा है। मुख्य रूप से सरकार की नीतियों को स्कूली शिक्षा में क्रियान्वित करना हमारा प्रमुख कार्य है। इससे पूर्व एक अध्यापक के रूप में भी शिक्षा में पठन-पाठन से सम्बन्धित नवाचार को लेकर विभाग ने हमेशा स्वतंत्रता दी है, जिसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों तक गुणवतापूर्ण शिक्षा देने में हम सफल हो पायें। यहाँ पर मैं यह जरुर कहना चाहूँगा कि स्कूल की बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने में हम शत-प्रतिशत सफल हुए हैं लेकिन स्कूल में अध्यापक शिक्षा अनुपात जैसे मानकों पर बहुत अधिक कार्य नहीं पाया। अध्यापकों पर प्रशासनिक कार्यों का बोझ विशेषकर जहाँ पर सिंगल अध्यापक हैं, वहां पर समस्या और बढ़ जाती है। मुझे लगता है ये कुछ ऐसे बिंदु है जिन पर शिक्षाविदों और नीति- निर्माताओं को ज़रूर विचार करना चाहिए और आवश्यक निर्णय लेने चाहिए। तभी हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लक्ष्यों को हासिल करने की और अग्रसर हो सकते हैं।
3) करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रहीं हैं? एक या दो के बारे में बताईये?
जवाब: मैं आपके साथ एक से दो अनुभवों को सांझा करना चाहूँगा। जब मैंने जूनियर बेसिक टीचर के रूप में नगरोटा बगवां के प्राथमिक स्कूल अप्पर बलधर को ज्वाइन किया था, तो वह स्कूल एक आम के वृक्ष के नीचे लगा करता था तथा स्कूल का अपना भवन नहीं था। ऐसे में स्कूल से सम्बन्धित रिकार्ड दस्तावेजों को पास के एक घर में रखा जाता था और यदि किसी दिन मौसम अनुकूल न हो तो स्कूल संचालित ही नहीं होता था। इन्ही सभी चुनौतियों को समझते हुए स्कूल प्रबन्धन और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से हमने स्कूल का अपना भवन होने की आवश्यकता को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी को रेजुलेशन के माध्यम से अपनी समस्या से अवगत करवाया। आखिरकार लगातार प्रयासों से हमें सफलता हासिल हो ही गई। यह किसी जीत से कम नही था, स्कूल भवन के लिए हमने पांच साल का एक लम्बा इन्तजार किया। दूसरा, अध्यापन के रूप में 25 वर्षों के सफर में जिन छात्र एवं छात्रों को शिक्षित किया, आज वही बच्चे अपनी मेहनत एवं परिश्रम के बल पर सरकारी एवं गैर सरकारी उच्च पदों पर आसीन हैं। ऐसे में जब वह बताते हैं कि मैंने उन्हें अध्यापन करवाया है तो वो काफी गौरवान्वित महसूस होने वाले क्षण होते हैं।
4) इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्तिथियाँ सामने आयीं? इनका समाधान कैसे हुआ? क्या आप अपने अनुभव से इसके उदाहरण दे सकते हैं?
जवाब: मुझे सर्वप्रथम नियुक्ति के रूप में खंड धर्मशाला के दुर्गम गाँव करेरी में पांच वर्ष सिंगल अध्यापक के रूप में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। यहाँ तकरीबन 1 घंटे से अधिक पैदल सफ़र तय करके स्कूल पहुंचता था। निश्चित रूप से वहां पर 5 वर्ष काफी चुनौतियों से भरे रहे लेकिन बच्चों को शिक्षा देने में किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। दूसरा, स्कूल प्रबंधन समिति का स्कूल के विकास में अहम योगदान रहता है। लेकिन जब मैंने हर महीने मीटिंग आयोजित की तो समुदाय की भागीदारी न के बराबर रहती थी। मैंने यह समझने की कोशिश की क्यों अभिभावक मीटिंग में नहीं आते। इसके लिए मैंने स्कूल के साप्ताहिक अवकाश और स्कूल समाप्ति के बाद अभिभावकों से उनके घर में जाकर बैठकें की। इस दौरान विस्तार से उनकी समस्यों को समझने का प्रयास किया और यथासम्भव उन्हें सुलझाने की कोशिश भी की। इसी क्रम में अभिभावक को उनके कर्तव्य और जिम्मेदारियों से परिचित करवाया और उनके स्कूल के प्रति महत्व से अवगत करवाया। इस का परिणाम यह निकला की अभिभावकों का रुझान स्कूल के प्रति सकारात्मक दिखाई देने लगा। मीटिंग में समुदाय की उपस्थिति शत-प्रतिशत हो गई। ऐसे में समुदाय के सहयोग से स्कूल के सम्पूर्ण विकास की दृष्टि से काफी कार्य किये चाहे वह बुनियादी सुविधाओं को लेकर हो या फिर स्टाफ की कमी को दूर करना हो या फिर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर कदम उठाने की बात हो। सभी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त हुए जोकि स्कूल में शिक्षा की दृष्टि से भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए।
5) बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं?
जवाब: मैं यह मानता हूँ सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र के लिए जो नीतियां बनाई जाती हैं, उनका क्रियान्वयन सही तरीके से करने से निश्चित रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल की जा सकती है। मुझे यदि इस तरह के लक्ष्यों को प्राप्त करने में किसी प्रकार की दिक्कतें आती हैं तो मैं स्वयं फील्ड में जाकर उन समस्याओं का निपटारा करता हूँ। मैं बताना चाहूँगा कि मेरे ब्लॉक में 43 प्राइमरी स्कूल ऐसे हैं जिनका प्रबन्धन केवल एक अकेले अध्यापक द्वारा किया जा रहा है। इसी के साथ वर्तमान में प्री-प्राइमरी कक्षायें भी स्कूल में शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में यदि कहीं पर एक अध्यापक 6 कक्षाओं को एक साथ देख रहा हो तो ऐसे में मेरा प्रयास रहता है की स्कूल प्रशासन की समस्याओं को समझते हुए हर सम्भव समस्या का निराकरण कर दूँ ताकि कहीं न कहीं इससे सेवा वितरण प्रणाली प्रभावित न हो।
6) अपने काम के किस पहलू से आपको ख़ुशी मिलती है?
जवाब: मैं बताना चाहूँगा कि मुझे अपने शैक्षणिक एवं गैर-शैक्षणिक कार्यों में बच्चों के साथ पठन-पाठन का कार्य सर्वाधिक प्रिय है। यह इसीलिए कि बच्चों के साथ यहाँ पर परस्पर संवाद होता है, जहाँ पर बच्चों की जिज्ञासा को जानना, बच्चों के प्रश्नों का सुनना और उनका निराकरण करना मन को प्रफुलित करता है।
7) i) अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी गुण
उत्तर: मैं यह समझता हूँ कि एक अधिकारी के अंदर इन तीन गुणों का होना आवश्यक है : पहला, अधिकारी के अन्दर कुशल नेतृत्व का गुण होना जरूरी है। दूसरा, कार्य के प्रति ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठा। तीसरा, समस्याओं को हल करने का कौशल आदि ऐसे गुण हैं जो एक अधिकारी में ज़रूर होने चाहिए।
ii) काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी, जिसमें आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो?
जवाब: विभाग से प्राप्त आदेशों के क्रियान्वयन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए किये जाने वाले नवाचारों में सबसे ज्यादा ख़ुशी मिलती है।
iii) अपने क्षेत्र में कोई ऐसा काम जो आप करना चाहते हो, मगर संरचनात्मक या संसाधन की सीमाएँ आपको रोक देती हैं!
जवाब: मैं यह मानता हूँ कि हमारा संस्थागत ढांचा इस प्रकार है, जहाँ पर छात्र शिक्षक अनुपात के आधार पर अध्यापक की नियुक्ति होती है। हमारे यहाँ काफी स्कूल ऐसे हैं, जहाँ पर पांच कक्षायें एकमात्र अध्यापक द्वारा चलाई जा रही हैं। दूसरा, अध्यापक की प्रशासनिक कार्यों के प्रति ज़िम्मेदारी जो कहीं न कहीं शैक्षणिक कार्यों में व्यवधान पैदा करती है। इसमें अध्यापक का बहुत सारा समय कार्यों को पूरा करने में चला जाता है। यह कुछ ऐसी बाधाएँ हैं, जो मुझे सिस्टम में नज़र आती हैं।
iv ) कोई ऐसी बातें जो आपको लगता है कि होनी चाहिये?
जवाब: मेरा मानना है कि वर्तमान में अधिकतर अभिभावक निजी स्कूलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं जो किराये के एक कमरे में चल रहे हैं और किसी भी मानक पर खरा नहीं उतरते। ऐसे में नियमित तौर पर ऐसे निजी स्कूलों का विभागीय वेरिफिकेशन होना जरूरी है और यह जांचना जरूरी की आवश्यक मापदंडों को पूरा करने के बाद ही क्रियाशील होने चाहिए ।