प्रशासन के सितारे- चंद्रहास श्रीवास्तव
आईये आपको मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक ऐसे शिक्षक से मिलवाते हैं, जो न केवल बेहतर शिक्षा को लेकर बेहद संजीदा हैं, बल्कि इन्होंने अपने नवाचार के माध्यम से कोविड-19 के दौरान भी बच्चों की शिक्षा में किसी तरह की बाधाएं नहीं आने दी हैं।
1.आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर सेवाएं दे रहे हैं? आपका मुख्य कार्य क्या है?
मै चंद्रहास श्रीवास्तव, मध्यप्रदेश के सागर जिले की राजकीय प्राथमिक शाला, रिछोड़ा टपरा में प्राथमिक शिक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। मेरा मुख्य कार्य अध्यापन है तथा पिछले लगभग 22 वर्षों से विभिन्न नवाचारों के साथ शिक्षण कार्य कर रहा हूँ | शिक्षा के अलावा मेरी समाज सुधारात्मक गतिविधियों में गहरी रुचि रही है। मैं करीब 12 वर्षों से बच्चों की अच्छी शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक क्षेत्र में भी प्रयासरत हूँ।
2.अभी तक के सफर में सरकार से जुड़कर काम करने का अनुभव कैसा रहा है?
सरकार के साथ मेरा अनुभव अच्छा रहा है। बेहतर शिक्षा के लिए मेरे द्वारा किये सभी प्रयासों में सरकार एवं अधिकारियों का अच्छा सहयोग मिला है। मुझे बताते हुए ख़ुशी है कि सरकार ने सहयोग के साथ-साथ कई मौकों पर मुझे सम्मानित कर प्रोत्साहित भी किया है। इसी वर्ष 26 जनवरी 2021 को हमारे सागर जिला के कलेक्टर साहब ने मुझे प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया है।
3.आपके करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रही हैं? एक या दो के बारे में बतायें।
मेरे पेशे में नियमित रूप से सफलताओं तथा चुनौतियों का दौर रहा है। अभी की सफल कहानियों में से एक आपके साथ साझा करना चाहूंगा जो मेरे दिल के काफी करीब है। हाल ही में कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा पर काफी ध्यान दिया ,परन्तु मैं जिस क्षेत्र में कार्यरत हूँ वहां 90% बच्चे आदिवासी हैं और उनके पास स्मार्ट फ़ोन जैसे माध्यम नहीं हैं, ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा उनके लिए बड़ी मुश्किल थी। मैंने नवाचार लेकर बच्चों का चबूतरा क्लास शुरू किया जिससे प्रभावित होकर मध्य प्रदेश शासन, राज्य शिक्षा केंद्र ने मुझे प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया। इसके अलावा कुछ समय पहले ही मैंने देखा कि आदिवासी क्षेत्र में नशाखोरी की समस्या बुरी तरह से व्याप्त है। इसके लिए मैंने अपने स्तर पर नशा-मुक्ति अभियान चलाया, जिसका आज प्रभाव यह है कि बहुत सारे बच्चों के परिवार इस व्यसन से निजात पा चुके हैं।
4.इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्थितियाँ सामने आयी? इनका समाधान कैसे हुआ? क्या आप अपने अनुभव से इसके उदाहरण दे सकते हैं?
जैसा कि मैंने भी बताया कि सफलता के साथ चुनौतियां होना स्वाभाविक है।अभी जब कुछ समय पहले मैंने चबूतरा क्लास शुरू की तो वहां लोग कहने लगे मास्टर साहब यहाँ बच्चों को मत पढ़ाईये, आप बच्चों को कहीं दूसरी जगह ले जाकर पढ़ाईये। कई लोग कहने लगे की मास्टर साहब आपका ये प्रयोग सफल नहीं होगा, पर मैंने ठान लिया था कि मुझे तो बच्चो को पढ़ाना ही है। दरअसल गांव में ऐसी सार्वजनिक जगहों पर लोग या तो नशा करते हैं या फिर जुआ खेलते हैं। मेरे लिए दिक्कत यह थी कि गाँव के बीच में ऐसी कोई सार्वजनिक जगह नहीं थी, जहाँ बच्चों को पढ़ाया जा सके। इसलिए जो लोग ज्यादा विरोध कर रहे थे, मैंने उन्हीं के पढ़े-लिखे बच्चों को विश्वास में लिया और मेरे साथ शिक्षण सहायता के लिए अनुरोध किया, इस तरह बच्चो ने खुद ही अपने परिवार के लोगों को मना लिया। ऐसे ही नशा अभियान में शुरू में जो लोग फ़ोन करके गुस्सा करते थे, आज वे ही बड़ा सम्मान करते हैं। बस बात यह है कि डटे रहो समाधान तो अंततः निकल ही आते हैं।
5.कोविड-19 के दौर में आपकी क्या भूमिका रही है? किसी तरह के यदि नवाचार किये हों तो उनके बारे में बताएं तथा उन सबमें यदि कोई चुनौतियां पेश आई हों, आपने कैसे उनका सामना/समाधान किया?
कोविड-19 के समय की भूमिका पर एक चर्चा तो कर ही चुके है दूसरी ये है कि जैसे मैंने आपको कहा कि ऑनलाइन शिक्षा की पहुँच मेरे कार्यक्षेत्र में मुश्किल है। मैंने (हंसकर जवाब देते हैं) अपने स्तर पर अपने स्कूटर को स्कूल भवन सा बना लिया है। उसी पर मैंने एक ग्रीन बोर्ड लगवा लिया है, साथ में कोरोना से बचने की रोचक जानकारियाँ और वर्णमाला इत्यादि से आकर्षक बैनर लगवाये हैं, अब 7-8 गावों के रूट में मुझे एक-दो- चार जितने भी बच्चे मिलते हैं, मैं उन्हें पढ़ाने लग जाता।
दरअसल आपको आश्चर्य होगा कि लॉकडाउन के दौरान बच्चे टीवी ,खेल आदि से ऊब चुके थे। इसलिए मुझसे पूछते कि क्या आपके पास कहानियों की किताबें हैं, और मैं उन्हें पढ़ने के लिए निःशुल्क उपलब्ध करवाता था। मेरे इस चलते फिरते स्कूल में लगभग 500 से अधिक किताबें हैं।
इन सब में चुनौतियाँ तो थी ही कि कैसे शुरुवात की जाए,पैसे कहाँ से लगाने है फिर मैंने पुराने पड़े कबाड़ का सहारा लिया कुछ छोटे-मौटे खर्च के साथ इसे शुरू कर दिया। कुछ रेडियो भी खरीदे वितरण के लिए क्योंकि रेडियो पर भी सरकार ने शिक्षा शुरू की थी। खुद भी रेडियो सुनकर, महत्वपूर्ण बिंदुओं को नोट करके बच्चों को पढ़ाता था।
शुरू-शुरू में लोग कहते थे कि मास्टर साहब अपनी ड्यूटी पूरी करो ये सब क्या है, पर परिवार का पूरा सहयोग था और समाज के लिए कुछ करने की इच्छा शक्ति थी, तो फिर सब होता चला गया।
6.बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं?
मैं समझता हूँ कि एक शिक्षक के लिए बेहतर शिक्षण करना उसका प्रमुख दायित्व है। जहाँ तक मेरे योगदान का विषय है, मैं मानता हूँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है और मैं अपनी क्षमता के अनुसार इसे प्रत्येक बच्चे तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत हूँ। मैं निरंतर ऐसे प्रयासों में लगा हूँ ताकि हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचा सकूं ताकि वे आगे जाकर सुंदर राष्ट्र का निर्माण करें।
7.अपने काम के किस पहलु से आपको अधिक ख़ुशी मिलती है?
मेरा शिक्षा से जुड़े हर कार्य में गहरा लगाव है, ख़ास तौर से अध्यापन में मेरी खासी रूचि है। मेरा मानना है कि समाज के हर वर्ग को अच्छी शिक्षा मिले, इसलिए मैं और मेरे कुछ साथी मिलकर मिशन -100 नामक एक नवाचार कर रहे हैं, जिसमें अधिकारियों एवं समाज सेवकों का भी हमें काफी सहयोग है। इसमें कम से कम 100 बच्चों को निःशुल्क प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई जायेगी। मुझे बड़ी ख़ुशी होगी यदि हमारा ये प्रयास भी सफल हो जाए।
i) आपके अनुसार अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी गुण क्या होने चाहिए?
मैं मानता हूँ कि सरकारी अधिकारी यदि शिक्षा विभाग से है तो उसका लगाव शिक्षा में होना चाहिए। भारत में शिक्षा की स्थिति में अधिक सुधार करने के लिए यह आवश्यक है। वैसे भी अधिकारी चाहे किसी भी विभाग में हो उसको अपने पेशे से लगाव होना बेहद जरूरी है, तभी वह तन्मयता से काम अपना काम कर सकता है।
दूसरा सबसे अहम है, उसकी ईमानदारी तथा तीसरा गुण जो मुझे लगता है कि एक अधिकारी को अपने काम को लेकर अनुशासित होना चाहिए।
ii) काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी जिसमें आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो?
महत्वपूर्ण बात ये है कि मुझे मेरे पेशे से बहुत लगाव है तो स्वभाविक रूप से मुझे बच्चो को पढ़ाने में बड़ी ख़ुशी मिलती है, मुझे यदि कोई एक बच्चा भी मिल जाए तो मैं उसे भी बैठकर पढ़ाने लग जाता हूँ।