प्रशासन के सितारे : श्रीमती रेणु शर्मा

‘प्रशासन के सितारे’ सेक्शन में आईये आपको रेणु शर्मा जी से मिलवाते हैं जो महिला एवं बाल विकास विभाग हिमाचल प्रदेश में अपनी सेवाएं दे रही हैं।   

सवाल: आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर काम कर रहे हैं? आपका मुख्य कार्य क्या है?  

जवाब: मैं हिमाचल प्रदेश के ब्लॉक पंचरुखी, जिला काँगड़ा में महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत बाल विकास परियोजना अधिकारी के रूप में पिछले 3 वर्षों से अपनी सेवायें दे रही हूँ। इससे पूर्व मैं सुपरवाईज़र (पर्यवेक्षक) के रूप में वर्ष 1988 से 2020 तक अपनी सेवायें दे चुकी हूँ। मेरा मुख्य कार्य केंद्र व राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं को आँगनवाड़ी के माध्यम से लाभार्थी तक पहुंचाना है, जिनमें मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, मुख्यमंत्री शगुन योजना, बेटी है अनमोल योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ में हमारी अहम भूमिका रहती है। पोषण अभियान जो आज एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, उसको कार्यान्वित करने में हमारे विभाग की एक अहम भूमिका रहती है। बच्चों में कुपोषण के स्तर में कमी लाना, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं में रक्त अल्पता की समस्या को दूर करना, पोषण स्तर में सुधार लाना आदि में हमारा प्रमुख फोकस रहता है। केन्द्रों का निरिक्षण, फील्ड में बच्चों की ग्रोथ मानिटरिंग हमें नियमित तौर पर करने होते हैं तथा साथ ही फील्ड में आयोजित होने वाले कैम्पों में अभिभावकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी एवं विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से अवगत करवाते हैं।   

सवाल: आपका अभी तक के सफर में सरकार के साथ जुड़कर काम करने का अनुभव कैसा रहा है

जवाब: मैं बताना चाहूंगी कि इससे पूर्व मुझे तहसील कल्याण अधिकारी के रूप में चार बार पदोन्नति का अवसर प्राप्त हुआ था लेकिन मैंने उसे अस्वीकार कर दिया। इसका एक बड़ा कारण यह था कि मैं बाल विकास विभाग के माध्यम से महिलाओं व बच्चों के साथ जुड़कर अपने कार्य को कभी अलग देख ही नहीं पाई तथा मुझे लगा की मेरा इन वर्गों के लिए काम करना बहुत ज़रूरी है। मेरा मानना है कि हमारा समाज तभी बेहतर हो पायेगा जब हमारे बच्चे व महिलाएं बिलकुल स्वस्थ होंगे। अपने विभाग के साथ कार्य करने की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हमें केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ ज़मीनी स्तर तक पहुंचाने का बेहतरीन मौका मिलता है तथा मैं प्रत्यक्ष रूप से देख पाती हूँ कि हम कैसे और कहाँ उनमें और सुधार कर सकते हैं।   

सवाल: करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रहीं हैं? क्या आप एक या दो के बारे में बता सकते हैं?  

उत्तर:  सुपरवाइज़र से बाल विकास अधिकारी तक के सफर के दौरान मेरा हमेशा से प्रयास रहा कि कोई भी लाभार्थी सरकार की योजनाओं से वंचित न रहे और मैं संतुष्ट हूँ कि मैं इसमें सफल रही हूँ। गाँव में आयोजित किये जाने वाले कैम्प, फील्ड स्तर पर योजनाओं के लाभ के सम्बन्ध में जागरूक करना ताकि सभी तक वह लाभ पहुंच जाए। सफलता के रूप में सीएसआईआर पालमपुर व बाल विकास परियोजना के संयुक्त प्रयासों से ‘पोषण मैत्री कार्यक्रम’ जोकि पंचरुखी ब्लॉक में 2020 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में आरम्भ हुआ। सीएसआईआर द्वारा पूरक पोषाहार से युक्त उत्पाद तैयार किये गये, जिन्हें अल्प कुपोषित, गंभीर कुपोषित बच्चों और गर्भवती और धात्री महिलाओं को दिए गए ताकि बच्चों में कुपोषण और गर्भवती तथा धात्री महिलाओं में एनीमिया की समस्याओं को दूर किया सके। प्रोजेक्ट का सकारात्मक परिणाम यह रहा कि इसके दो वर्ष पूरा होने के बाद पंचरुखी जिला काँगड़ा का ऐसा ब्लॉक बन गया है जहाँ पर कोई भी बच्चा गंभीर कुपोषित श्रेणी में नहीं रहा है। इसके अलावा लॉकडाउन अवधि में घरेलू हिंसा के काफी केस बढ़े, ऐसे में मैंने आपसी मतभेदों को दूर कर सामजंस्य बिठाया है। फलस्वरूप, इसमें हमें काफी सफलता हासिल हुई


सवाल: इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्थितियां सामने आयीं? इनका समाधान कैसे हुआ? क्या आप अपने अनुभवों से इसके उदाहरण दे सकते हैं

जवाब: मैंने अनेकों बार मुश्किलों का सामना किया लेकिन अगर प्रयास किये जायें तो कुछ भी असम्भव नहीं है। एक फील्ड वर्कशाप के दौरान अभिभावकों से वार्तालाप करने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसका विषय था निजी प्ले स्कूल के प्रति अभिभावकों का रुझान। मीटिंग में उपस्थित कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों को प्रतिष्ठित निजी स्कूलों में नामांकित किया था। मैंने अभिभावकों को जागरूक किया कि कम आयु में बच्चों को पेन्सिल पकड़ने से बच्चों की मासपेशियाँ में और बड़े होने पर प्रदर्शन में कमी देखने को मिलती है। इस तरह की कई तथ्यपूर्ण जानकारियों के बाद अभिभावकों ने इसे काफी सकारात्मक रूप से लिया। अभिभावकों ने बच्चों को आंगनवाड़ी में भेजना शुरू कर दिया और कहा कि वे अपने बच्चों को चार वर्ष होने तक आँगनवाड़ी में ही रखेंगे और इसका सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिला। मैंने इस बात पर मंथन किया कि कहीं न कहीं समुदाय से जुड़ने तथा चर्चाओं से किसी भी समस्या के हल आसानी से निकलते हैं।

सवाल: बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं ?

जवाब: मेरा पूरा प्रयास रहता है की सरकार द्वारा चलायी जा रही सभी कल्याणकारी योजनाओं को लाभार्थी तक पहुंचाया जाये। इसके लिए हमारा फील्ड स्तर का एक संगठनात्मक ढांचा है, जिसमें हमारी आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, आँगनवाड़ी सहायिका व पर्यवेक्षक हैं। हमें राज्य व  जिला परियोजना कार्यालय की ओर से जो भी निर्देश मिलते हैं, हम जल्द से जल्द अपनी टीम के माध्यम से क्रियान्वित करते हैं ताकि सही समय पर कार्य शुरू हो पाए। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता व पर्यवेक्षक के पास स्मार्टफोन, लैपटाप प्रदान किया गया है जिसमें आँगनवाड़ी क्षेत्र के परिवारों का सारा रिकार्ड मौजूद रहता है। मोनिटरिंग एप्प के माध्यम से होम विज़िट के लिए मेसेज के माध्यम से अलर्ट मिलता है और यह जानकारी मुझे और हमारे पर्यवेक्षक को रहती है कि आज आँगनवाड़ी कार्यकर्ता होम विज़िट पर है। मुझे लगता है कि हमारे पास पर्याप्त स्टाफ और बेहतर संगठित ढांचा है जिसके माध्यम से ही हम अपने कार्यों को बेहतर ढंग से कार्यान्वित कर पा रहे हैं।   

सवाल: अपने काम के किस पहलू से आपको ख़ुशी मिलती है?     

जवाब: मैं अपने कार्य को एक जॉब की तरह न समझते हुए इसे समाज सेवा की तरह देखती हूँ। यह कार्य मुझे बहुत ख़ुशी देता है क्योंकि जब हम सरकार की योजनाओं से लोगों को जोड़ते हैं तथा उन्हें लाभान्वित करते हैं तो उनका स्नेह और आशीर्वाद इस खुशी को कई गुणा बढ़ा देता है। मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि मुझे इस तरह की समाज सेवा करने के लिए सरकार से वेतन और ज़रूरी संसाधन भी मिल रहे हैं। आंगनवाड़ी में जाने पर बच्चों के साथ सीधा संवाद होने पर उनके बौधिक और मानसिक विकास को देखकर मुझे बेहद ख़ुशी मिलती है।    

सवाल: i) अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी  गुण

जवाब: मैं यह समझती हूँ कि अधिकारी में कुछ गुणों का होना आवश्यक है, जैसे 1) बोलने से ज्यादा सुनने की क्षमता होनी चाहिए 2) कार्य के प्रति निष्ठा और लग्न हो  3) लक्ष्यों को हासिल करने के प्रति दृढ़संकल्प शक्ति होना बेहद आवश्यक है।   

सवाल: ii) काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी जिसमे आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो

जवाब: हमारे काम की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार की है कि हमें गाँव के सरपंच, वार्ड सदस्यों, स्वयं सहायता समूहों व आम-जन से नियमित संवाद बनाकर रखना होता है। मेरा प्रयास रहता है कि महिलायें समूहों के माध्यम से किस प्रकार वित्तीय और आर्थिक रूप से सम्पन्न हो सकती हैं, उस पर हम उन्हें काउंसलिंग देते हैं। हमारे विभाग द्वारा स्थापित सशक्त महिला केंद्र में होने वाली बैठक में महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया जाता है। बाल अधिनियम, पोक्सो एक्ट के प्रति जागरूक करना ताकि बच्चों को किसी तरह से शोषण न हो, गाँव में घूमना लोगों से मिलना अच्छा लगता है और एक आत्मसन्तुष्टि होती है कि हम अपने कार्यों को समुदाय तक पहुँचाने में सफल हो रहे हैं।  

सवाल: iii) अपने क्षेत्र में कोई ऐसा काम जो आप करना चाहते हो, मगर संरचनात्मक या संसाधन की सीमाएँ आपको रोक देती हैं-

जवाब: मैं चाहती हूँ कि हर पंचायत एवं गाँव में स्वयं के भवन में आँगनवाड़ी केंद्र यदि स्थापित हो तो संसाधन बेहतर होने से और बेहतरीन कार्य हो सकता है। इसके लिए जिला प्रशासन, ग्राम पंचायत और समुदाय का सहयोग अपेक्षित है। इस समय हमारे केंद्र स्कूल, सामुदायिक हाल, जंजघर में चल रहे हैं। हम बाकि राज्यों में देखते हैं कि नन्दघर स्थापित किये गए हैं जोकि बहुत अच्छे तरीके से कार्य कर रहे हैं। ऐसे उदाहरण यदि हमारे राज्य में भी स्थापित होंगे तो निश्चित रूप से बच्चों का आकर्षण आंगनवाड़ी केन्द्रों की तरफ और बढ़ेगा।   

iii) कोई ऐसे बातें जिन पर आपको लगता है कि और ध्यान देना चाहिए?

आँगनवाड़ी में 6 माह से 3 वर्ष के बच्चों, गर्भवती व धात्री महिलाओं को टेक होम राशन दिया जाता है। मैंने यह अनुभव किया है की घर में लाभार्थी को उसका लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पाता क्योंकि कई बार परिवार के अन्य लोग भी उसका इस्तेमाल करने लगते हैं। केंद्र पर बनने वाले पूरक पोषाहार की दृष्टि से किचन गार्डन डेवेलप करवाये गये हैं, स्वयं से पैदा की गई सब्जियां, अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि बेहद उपयुक्त है। दूसरा मुझे लगता है कि आँगनवाड़ी केंद्र में प्री-स्कूल अनौपचारिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये, जिन बच्चों ने आँगनवाड़ी केंद्र से शिक्षा प्राप्त की हो, उन्हें शाला पूर्व शिक्षा प्राप्त किये जाने के बाद चार वर्ष का सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए।