आंकड़ों को सरलता से नागरिकों तक पहुँचाना ज़रूरी है!
नमस्ते साथियों, मेरा नाम उम्मेद सिंह है और मैं मंथन संस्था कोटड़ी, अजमेर राजस्थान से कई वर्षों से जुड़ा हूँ। मैंने पिछले लगभग 14-15 वर्षों में अलग-अलग संस्थाओं के साथ जुड़कर काम किया है तथा बहुत सारा अलग-अलग अनुभव प्राप्त किया है। इस दौरान मैंने सामाजिक विकास के मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, रोज़गार, महिला सशक्तिकरण और अभी कोविड-19 राहत व जागरूकता पर विभिन्न कार्य किये हैं।
प्रतिवर्ष राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा भी बजट पेश किया जाता है। इसलिए मैं बजट को लेकर अपनी कुछ बातें आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूँ। बजट चाहे केंद्र स्तर का हो चाहे राज्य का, मेरा मानना है कि सरकार के साथ-साथ हम नागरिकों के लिए भी बजट बहुत उम्मीदें लेकर आता है। बजट से सरकार के साथ-साथ हमें भी अनुमान लग जाता है कि हमारे देश में पैसा किन-किन स्रोतों से आ रहा है तथा किस तरह से किन प्राथमिकताओं पर खर्च होगा।
कर तो हर कोई देता है लेकिन क्या हर नागरिक बजट की तकनीकियों के पीछे कि वास्तविकता को जान पाता है?
मुझे लगता है कि जब बजट पेश होता है तो इसका खूब सारा शोर होता है कि बजट आ रहा है यानी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया में बजट के आंकड़ों को दिखाया जाता है। इससे हमें यह तो मालूम चल जाता है कि सरकार ने कौन से वर्ग को अपने बजट में प्राथमिकता दी है, कहाँ छूट दी है, लेकिन अगर हम इन आंकड़ों को अच्छे से न जानते हों तो फिर हमें क्या समझा आयेगा।
यहाँ तक की बजट पेश होने के बाद धीरे-धीरे लोग उसको भूलने लगते हैं और सब कुछ सामान्य हो जाता है। इसलिए मेरा मानना है कि बजट पर एक व्यापक चर्चा का माहौल बनना चाहिए, जहाँ सरकार के साथ-साथ मीडिया को भी आम नागरिकों के लिए बजट से जुड़ी हर जानकारी को सरलता से समझानी चाहिए ताकि वे अपने स्तर पर भी विश्लेषण करने में सक्षम हो पायें। अन्यथा ऐसा लगता है कि नागरिकों का काम केवल टैक्स देना है और जब बजट पेश होता है तो उसमें पेश होने वाले आकंड़ों को समझने के लिए आपको एक खास तरह की शिक्षा की ज़रूरत होगी। लेकिन फिर इसमें एक आम इंसान कि क्या गलती है?
इसलिए मेरा मानना है कि इसमें राष्ट्रीय मीडिया, राज्य स्तरीय व क्षेत्रीय मीडिया संस्थानों को बजट से जुड़े हर पहलु को आम नागरिकों को सभाओं तक ले जाना ज़रूरी है। क्योंकि मेरा मानना है कि जब आंकड़ों पर बात होती है तो आम लोग असहजता के चलते बोलना भी बंद कर देते हैं।
अतः मुझे लगता है कि बजट पेश होने के बाद कम से कम हर नागरिक तक सरलता से आंकड़ों के पीछे की वास्तविकता पहुंचाई जाए, जिससे वे भी आत्मविश्लेषण करने में सक्षम हो पाएं।