अभी चुनौतियाँ बहुत हैं!
आज बिहार राज्य को पूरे 109 साल हो गए हैं। हर साल 22 मार्च के दिन इसे बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1912 में अंग्रेजों द्वारा बंगाल प्रेसीडेंसी से राज्य को अलग करने के बाद से यह दिवस मनाया जाता है।
अब सवाल ये उठता है कि क्या एक स्वतंत्र राज्य के तौर पर इतने वर्षों के बाद बिहार में लोगों की मूलभूत सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा या फिर पोषण की स्थिति बेहतर हो पायी है?
मैं अपने इस लेख के माध्यम से बिहार दिवस क्यों मनाया जाता है, इसमें क्या – क्या होता है उन पर बात नहीं करूँगा। बल्कि मैं यह बताना चाहूँगा की आज बिहार राज्य का स्थापना हुए इतने वर्ष बीत गए परन्तु आज भी हमारा राज्य अपने पड़ोसी राज्यों से काफी पीछे है।
अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव समूह के तौर पर हम प्रतिवर्ष कुछ केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं का विश्लेषण करते हैं तथा बजट ब्रीफ दस्तावेज़ के ज़रिये योजनाओं की वास्तविकता को सरल शब्दों में सामने लाने का प्रयास करते हैं।
तो आईये कुछ आंकड़ों के ज़रिये बिहार में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण के क्षेत्र में ज़मीनी वास्तविकता को समझने की कोशिश करते हैं:
स्वास्थ्य:
बजट ब्रीफ के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना के विश्लेषण से मालूम चलता है कि बिहार में अभी लगभग 38,000 लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर हैं। वहीं अगर अस्पताल बेड की बात करें तो लगभग 4300 लोगों पर एक बेड की व्यवस्था है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी कितना काम करना बाकी है।
शिक्षा:
अगर शिक्षा की बात करें तो शिक्षा के क्षेत्र में भी बिहार काफी पीछे है। अगर हम असर 2021 की रिपोर्ट की बात करें तो उसमें यह पाया गया की कक्षा 5 के आधे से अधिक बच्चे कक्षा 2 के हिंदी और गणित के प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं। इससे मालुम चलता है कि बिहार के बच्चों की शिक्षा की बुनियाद कितनी कमज़ोर है तथा सवाल ये भी उठता है कि आख़िर इस कमी की भरपाई किस तरह से हो पायेगी। अतः सरकार को इस क्षेत्र में काफी काम करने की जरूरत है ताकि बच्चे अपनी कक्षा के अनुरुप अच्छा पढ़-लिख सकें।
पोषण:
ताज़ा आकंड़ों के मुताबिक़ देशभर में कुपोषण के मामले में बिहार का दूसरा स्थान है। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के मामले में बिहार देशभर में सबसे पिछड़ा राज्य है और इसमें यह प्रथम स्थान पर है। यहाँ 5 वर्ष से कम उम्र के 41 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। अतः यह चिंता का विषय की जिस राज्य में आने वाली पीढ़ी कुपोषण से ग्रसीत हो, वहां बाकी विकास के क्या मायने रह जाते हैं।
ये तो बस कुछ उदाहरण हैं, बात चाहे बिहार की हो या फिर किसी अन्य राज्य की, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए की नागरिकों की जो मूलभूत ज़रूरतें हैं उन्हें पहले चिन्हित किया जाए तथा तदनुसार उन पर निरंतर कार्य किया जाये। वहीं नागरिकों के लिए भी यह अतिआवश्यक है की वे सरकार के निर्देशों का सही से समय रहते पालन करें क्योंकि योजनाओं का मूल उद्देश्य तभी जाकर सफल होगा जब यह प्रक्रिया सरकार और नागरिकों, दोनों के स्तर पर मिलकर किया जाये। इन सबसे मिलकर ही एक बेहतर समाज का निर्माण हो पायेगा।