सेवाओं में ‘तकनीक’ और उसका महत्त्व

कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया हैं और हर किसी के जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया हैं| हालांकि फिर भी मानव जीवन ने आशावादी रुख अपनाते हुए इस संकट की घड़ी में भी अवसरों की तलाश करने की कोशिश को जारी रखा हैं और एक दुसरे की गलतियों तथा अनुभवों से सीखना शुरू किया हैं|

‘शिक्षा’ एक ऐसा विषय हैं जो हर किसी के जीवन के साथ सीधे रूप से जुड़ा हैं| जब समाज शिक्षित होगा तभी तो हर कोई अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो पायेगा| अगर बात बच्चों के भविष्य की हो तो यह मामला और भी संजीदा हो जाता हैं|
भारत के स्कूलों में आमतौर पर होने वाली ऑफलाइन शिक्षा के लिए यह समय काफी चुनौतियों भरा रहा हैं| हालांकि इस विपरीत परिस्थिति में भी शिक्षकों के साथ-साथ बच्चों एवं उनके अभिभावकों ने नए तरीके की शिक्षा को अपनाने की कोशिश की हैं| वो कहते हैं न कि परिस्थितियां इंसान को सब सीखा देती हैं, ऐसा ही कुछ कोरोना समय में भी देखने को मिला हैं|

लगभग एक साल से बच्चों के स्कूल बंद पड़े हैं और ऐसे में ई-शिक्षा या ऑनलाइन शिक्षा के बारे में काफी सुनने को मिला हैं| ‘इलेक्ट्रॉनिक लर्निंग’ अथवा डिजिटल मीडिया के माध्यम से शिक्षा लेना ही ई-शिक्षा कहलाता हैं| ई-शिक्षा के लिए कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट, स्मार्ट फ़ोन तथा इंटरनेट कनेक्शन का महत्वपूर्ण योगदान रहता हैं| अब सवाल ये उठता हैं कि क्या भारत डिजिटल शिक्षा को लेकर तैयार हैं? क्या वाकई भारत के स्कूलों में सभी भौतिक संसाधन एवं क्षमता उत्सर्जन की व्यवस्था उपलब्ध हैं, जिनसे शिक्षा व्यवस्था को गति मिल सके?

‘इनसाइड डिस्ट्रिक्स’ सीरीज़ के तहत हमें कुछ शिक्षकों से बात करने पर मालुम चला कि वह स्वयं चाहते हैं कि ऑनलाइन शिक्षा के सिस्टम को मज़बूत करने पर काम किया जाए क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में इन्टरनेट की सुविधा काफी कम हैं| इस सीरीज़ के तहत हमें मालुम चला कि ग्रामीण क्षेत्र के काफी बच्चे ऐसे थे, जो ऑनलाइन शिक्षा के लिए ज़रूरी संसाधनों के अभाव के चलते इसका लाभ नहीं उठा पाए|

एनसीईआरटी ने एक बड़ा सर्वे कराया जिसमें देश भर से कुल 34,000 स्कूल प्रिंसिपल, टीचर, छात्र और अभिभावकों को जोड़ा गया। इस सर्वे में कई ऐसी बातें सामने आईं हैं जिसमें सरकारी स्तर पर तुरंत हस्तक्षेप की आवश्यकता हैं। सर्वे में सामने आया कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए कम से कम 27 प्रतिशत छात्रों की स्मार्टफोन या लैपटॉप तक पहुंच ही नहीं हैं जबकि 28 प्रतिशत छात्र और अभिभावक बिजली की समस्या को एक प्रमुख रूकावट मानते हैं। तो ऐसे में सवाल ये उठता हैं कि ऑनलाइन शिक्षा में इस तरह की मूलभूत सुविधाओं के अभाव में सभी बच्चों को एक समान शिक्षा कैसे मिल पाएगी? जो बच्चे इस दौरान पीछे छूट गए हैं, उनके नुकसान की भरपाई कैसे हो पाएगी?

वैसे तो आमतौर पर हर किसी को डिजिटल उपकरणों के बारे में मालुम हैं लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर बल देने की आवश्यकता हैं| सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी तकनीक को बढ़ावा देना होगा और पंचायत स्तर पर समय-समय पर इस तरह के शिविर लगाए जाने चाहिए ताकि लोग मौजूदा तकनीक से परिचित हो पाएं|

सरकार द्वारा स्कूलों में मिश्रित शिक्षा को बढ़ाना चाहिए ताकि बच्चे एवं शिक्षक दोनों ही डिजिटल उपकरण आधारित गतिविधियों को व्यावहारिक जीवन में ढाल पाएं| कोविड भले ही एक संकट के रूप में हमारे सामने आया हो लेकिन उसने हम सभी (सरकार और नागरिकों) को यह सोचने पर विवश किया है कि जो भी सेवाएं हमें मिलती हैं, उनमें अन्य संसाधनों के साथ-साथ तकनीक का भी काफी बड़ा महत्व हैं|