शासन के सितारे : रोशन जसवाल
‘शासन के सितारे’ सेक्शन में आइये मिलते हैं, रोशन जसवाल जी से जो शिक्षक और प्रधानाचार्य के तौर पर अपनी सेवायें देने के पश्चात अब जिला प्रारम्भिक शिक्षा उपनिदेशक के पद पर अपनी सेवायें दे रहे हैं। आईये जानते हैं कि उनका यह सफर कितना चुनौती पूर्ण था तथा वह किन नैतिक मूल्यों को जीवन में अपनाना जरुरी मानते हैं!
1) आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर काम कर रहे हैं? आपका मुख्य कार्य क्या है?
जवाब: मैं शिक्षा विभाग के अंतर्गत जिला सोलन में प्रारम्भिक शिक्षा उपनिदेशक के पद पर वर्ष 2020 से कार्यरत हूँ जबकि इससे पूर्व 2018 से 2020 तक राज्य शिक्षा निदेशालय में अपनी सेवायें दे चूका हूँ। वर्तमान में हमारा कार्य सरकार की नीतियों एवं विभागीय आदेशों को जिला के सभी शिक्षण संस्थानों में क्रियान्वयन करना होता है। जिला में शैक्षणिक गतिविधियों को व्यवस्थित रखना, अध्यापकों की समस्याओं को दूर करना तथा निरिक्षण करना हमारे कार्य का एक हिस्सा है। इसके अलावा हम राज्य से प्राप्त आदेशों को जिला में लागू करते हैं तथा उसी प्रकार से जिला की समस्याओं से राज्य निदेशालय को अवगत करवाते हैं।
2) अभी तक के सफर में सरकार से जुड़ के काम करने का अनुभव कैसा रहा है?
जवाब: पहले एक शिक्षक के रूप में, अब एक अधिकारी के तौर पर 30 वर्षों से अधिक के कार्यकाल में सरकार के साथ कार्य करने का अनुभव बेहतरीन रहा है। सेवाकाल का आरम्भ लेक्चरर के रूप हुआ और मूलरूप से मेरा अध्यापन का कार्य था जिसमें अधिकतर समय बच्चों के साथ शैक्षणिक गतिविधियों में गुजरता था। कुछ समय उपरान्त मेरे बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए स्कूल प्रधानाचार्य और अब जिला शिक्षा निदेशक के रूप प्रोमोशन मिलने के पश्चात अध्यापन कार्य से अलग विभागीय आदेशों को क्रियान्वित करना, प्रशासनिक कार्य, स्कूल मानिटरिंग, शैक्षणिक गतिविधियों का निरीक्षण पर अधिकतर कार्य केन्द्रित रहता है। अध्यापक होने का सबसे बड़ा लाभ यही होता है, कि समाज के विभिन्न वर्गों से बातचीत के माध्यम से जुड़ने का मौका मिलता है, जीवन की सार्थकता भी यही है कि समाज के असहाय आश्रित एवं वंचित वर्गों के लिए अपने कार्यकाल में कुछ योगदान देने में अपनी भूमिका निभा पाऊं। मैं सरकार का आभार प्रकट करता हूँ कि विभाग का ढांचा इस प्रकार का है जहाँ पर वंचित वर्ग से से हम जुड़ पाते है, और उनकी समस्या को दूर करने का हर सम्भव प्रयास करते है।
3) करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रहीं हैं? एक या दो के बारे में बताईये?
जवाब: शिक्षक के रूप में मेरा कार्यकाल काफी वर्षों का रहा है, बच्चों को शिक्षित करने के बाद उन्हें सफल होते देखना सर्वाधिक मन को प्रसन्नता देता है, मैं इसे जीवन की अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में मानता हूँ। आज मेरे द्वारा शिक्षित बच्चे, अध्यापन क्षेत्र, डाक्टर, जज, राजनीति तथा स्वयंसेवक के रूप विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। आज जब वे इस बात को साझा करते है कि उन्होंने मुझसे शिक्षा अर्जित की है और वे इस पद पर रहकर राष्ट्र को सेवायें देकर अपना योगदान दे रहे है तो बहुत प्रसन्नता होती है। जब मुझे अपनी विभागीय सेवाओं में से कुछ समय मिलता है तो उसी जमीनी अनुभव को मैं अपनी कविताओं, काव्य संग्रह, गजलों को लिखनें में दिलचस्पी रखता हूँ। उनमें से कुछ इस प्रकार है: ननु ताकती है दरवाजा, मैं बच्चा होना चाहता हूँ, पगडंडियां और अम्मा कहती थी जैसे प्रमुख हैं।
4) इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्तिथियाँ सामने आयी ? इनका समाधान कैसे हुआ? क्या आप अपने अनुभव से इसके उदाहरण दे सकते हैं?
जवाब: उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अध्यापन के पहले वर्ष में शिक्षण कार्य का पहला अनुभव था। उस समय एक चीज़ यह भी थी कि किसी प्रकार के कोई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित नहीं होते थे और हमने इसको लेकर किसी प्रकार की कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली थी परन्तु मुझे वरिष्ठ जनों से काफी सहयोग मिला, उन्होंने बताया कि आपको अपना एक घंटे का लेक्चर किस तरह तैयार करना है। यह मेरे लिए काफी लाभप्रद हुआ और धीरे धीरे मैं अनुभव के साथ चीज़ों को सीखने में कामयाब हो पाया क्यूंकि बच्चों को अध्यापन से पूर्व बच्चों के मनोविज्ञान को पढ़ना बहुत जरुरी है कि वे किस पृष्ठभूमि से आये हैं, यह समझना जरुरी है, तभी हम अध्यापन के कार्य में सफल हो सकते हैं। अध्यापन, स्कूल प्रिंसिपल, राज्य निदेशालय व अब जिला उपदेशक की भूमिका में आने के बाद प्रशासनिक कार्यभार को समझने व सरकार की नीतियों से जुड़ने का मौका मिला। आरम्भ के 2-3 महीने जरुर मुश्किलों भरे थे परन्तु मुझे मेरे उच्च पदाधिकारियों का हर कदम पर सहयोग मिला है, जिस वजह से मैं अपनी सेवायें देने में सफल रहा हूँ। कुछ ऐसी समस्याएं होती है जोकि हमारे स्तर पर हल नहीं होती है, उसे हम राज्य निदेशालय तक पहुंचाते है।
5) बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं?
जवाब: मैं यह मानता हूँ कि नीतियों के क्रियान्वयन से पूर्व उनका अध्ययन करना आवश्यक होता है। यह समझना जरुरी है कि नीतियों से तत्काल और दूरगामी परिणाम किस प्रकार के होंगे। मैंने अपने जिला में सभी अध्यापकों को अपना मोबाइल नंबर दिया है ताकि किसी भी प्रकार की किसी जिज्ञासा या समस्या होने पर वे मुझे कभी भी फोन कर सकते हैं। मैं हमेशा प्रयासरत हूँ कि अध्यापकों की समस्या को हल करने में अपना योगदान दे पाऊं। मैं यह मानता हूँ कि बेहतर सेवा वितरण के लिए अध्यापकों के साथ शैक्षणिक संवाद बेहद आवश्यक होता है। अध्यापकों के साथ-साथ इस करोनाकाल में बच्चों और अभिभावकों से ऑनलाइन माध्यम से जुड़ने का मौक़ा मिला है। यह समझने का मौका मिला कि ऑनलाइन शिक्षा में किस प्रकार के सुधार और रणनीती बनाने की आवश्यकता है और निश्चित रूप से यह जानकारी बेहद महत्वपूर्ण है। मैं भलीभांति इस बात से अवगत हूँ कि संगठनात्मक ढांचा जिस प्रकार से बना है, उस माध्यम से फील्ड की रिपोर्टिंग हमें हासिल हो जायेगी परन्तु नकारात्मक पहलु यह है कि जो व्यक्ति फील्ड में कार्य कर रहे हैं, उनकी समस्याओं को हम वहां पर रहकर नहीं समझ पायेंगे। इसके लिए यह जरुरी है कि फील्ड में स्वयं से उतरकर हर विषय को समझा जाए, तभी हम जमीनी वास्तविकता को समझ पायेंगे और बेहतर शासन प्रणाली को व्यवस्थित करने में सफल हो पायंगे।
6) अपने काम के किस पहलू से आपको ख़ुशी मिलती है?
जवाब: मैं प्रमुख रूप से कहूँ तो मुझे बच्चों के साथ संवाद करना सर्वाधिक अच्छा लगता है। शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा अन्य विषयों पर बच्चों से उनके विचारों को सुनना, नैतिक मूल्यों, परिश्रम, शिष्टाचार और समय सदुपयोग पर उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करना काफी ख़ुशी देता है। दूसरा, स्कूल का वातावरण सुखद होना जैसे कि स्कूल भवन, शिक्षा का अधिकार मानकों पर स्कूल का शत प्रतिशत होना मुझे बहुत खुशी देता है। विभाग की प्राथमिकता इस समय यही है कि बच्चों के लिए शैक्षणिक वातावरण, भौगौलिक बाधाओं को दूर करने का हर सम्भव प्रयास किया जाए। तीसरा, जिन बच्चों को शिक्षित किया है उन्हें उच्च पदों जैसे शिक्षक, डाक्टर, जज, प्रशानिक सेवाओं में आसीन होना बहुत खुशी देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सही मायनों में हमने गुरु (शिक्षक) का फर्ज निभाया है।
7) i) अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी गुण
उत्तर: मैं यह समझता हूँ, जब आपको किसी प्रकार की जिम्मेदारी सौंपी जाती है तो इसका सरल शब्दों में यह अर्थ होता है कि हम उस पद एवं कार्यभार के प्रति जवाबदेह हैं। उसी तरह से अपने अधीनस्थ अधिकारी वर्ग जो उन्हें कार्य सौंपा गया है उसका निरीक्षण करे, शत-प्रतिशत निर्वहन करें, तभी उस पद की गरिमा सही मायनों में सफल होती है।
ii) काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी जिसमें आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो?
जवाब: मैं हर दिन हर व्यक्ति से सीखने में विश्वास रखता हूँ, यही लालसा और इच्छा शक्ति मुझे हमेशा प्रसन्नचित और उत्साहित रखती है।
iii) अपने क्षेत्र में कोई ऐसा काम जो आप करना चाहते हो, मगर संरचनात्मक या संसाधन की सीमाएँ आपको रोक देती हैं–
जवाब: यह पहलु सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के लिए है कि एक स्तर पर हमें सीमा को निर्धारित करना होता है, पर मेरा मानना यह भी है कि अगर आपके प्रपोजल में नवाचार की विविधता है तो आपके विचारों को सुना जाता है और उसके लिए आपको स्वतंत्रता दी जाती है।
iv ) कोई ऐसी बातें जो आपको लगता है कि होनी चहिये –
जवाब: मेरा मानना है कि समय के साथ अध्यापक के कार्यक्षेत्र में विस्तार हुआ है। अध्यापक का कार्य के प्रति समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी ऐसे गुण हैं जिस वजह से सरकार विभिन्न कार्य क्षेत्र में उनकी सेवाएँ लेती है। शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा अतिरिक्त कार्यभार होने से कहीं न कहीं शिक्षक का अध्यापन कार्य प्रभावित होता है जिसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ता है। अगर शिक्षक को गैर शैक्षणिक कार्यों में कम शामिल किया जाए तो वे बच्चों को अधिक समय देने में सफल होंगे और बेहतर परिणाम हासिल होंगे।