राष्ट्रीय बालिका दिवस
देश में हर वर्ष 24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस के तौर पर मनाया जाता हैं | महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2008 में इसकी शुरुआत की थी | इस दिन का मकसद बालिकाओं को हर मामले में अधिक से अधिक सहयोग और सुविधा प्रदान करना हैं, एवं एक लम्बे समय से उनके साथ होने वाले भेदभाव के प्रति लोगों को जागरूक करना हैं, इसके अलावा प्रमुख रूप से बालिकाओं के मौलिक अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण समेत कई अहम विषयों के प्रति समाज की सोच में परिवर्तन लाना हैं |
हमारे समाज में लैंगिक असमानता लम्बे समय से एक बड़ी समस्या रही हैं | बालिका के जन्म से पहले ही भेदभाव की शुरुआत हो जाती हैं | कभी-कभी लड़की को एक भ्रूण के रूप में मार दिया जाता हैं, यदि वह अपने मां के गर्भ से बाहर आने में भाग्यशाली हो गई, तो नर शिशु की चाह में उसका जीवन समाप्त कर दिया जाता हैं | यू.एन.एफ.पी.ए. की विश्व जनसंख्या 2020 के अनुसार– विश्व स्तर पर लिंग चयन के कारण हर तीन लड़कियों में से एक का, प्रसव पूर्व या प्रसव के बाद जीवन समाप्त कर दिया जाता हैं जो कि कुल 142 मिलियन है, जिसमे 46 मिलियन केवल भारत में हैं |
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के कुछ राज्यों में लिंगानुपात की स्थिति इतनी गंभीर हैं, जिसे नज़र अंदाज नही किया जा सकता, जैसे कि हरियाणा में 879 लड़कियों पर 1000 लड़के और वही जम्मू कश्मीर में 889 लड़कियों पर 1000 लड़के हैं | यदि हम इन्ही राज्यों कि साक्षरता दर की ओर देखें तो हरियाणा में यह लगभग 75.55 प्रतिशत हैं और जम्मू कश्मीर में यह 67.16 प्रतिशत हैं | दूसरी ओर केरल राज्य जहाँ लिंग अनुपात 1084 लड़कियों पर 1000 लड़के और साक्षरता दर 94.00 प्रतिशत हैं , इसी तरह से मिज़ोराम
में लिंग अनुपात 976 लड़कियों पर 1000 लडकें और साक्षरता दर 91.33 प्रतिशत हैं, जो कि सीधे तौर पर यह साबित करता हैं कि साक्षरता और लिंग अनुपात का सकारात्मक सम्बन्ध हैं | 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में महिला साक्षरता दर लगभग 65.05 प्रतिशत हैं जबकि पुरुष साक्षरता दर 82.01 प्रतिशत हैं, जो कि स्पष्ट रूप से लिंग असमानता की ओर इशारा करता हैं | इस बात से यह कहना गलत नहीं होगा, कि जिस देश कि जितनी अधिक साक्षरता दर होगी उसका लिंग अनुपात भी उतना ही बेहतर होगा |
निरक्षरता के साथ-साथ भारत में बाल विवाह भी एक जटिल मुद्दा हैं | युनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार– सम्पूर्ण भारत में विश्व के 40 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं, जिसका 40 प्रतिशत केवल बिहार, राजस्थान और बंगाल राज्यों में देखा जा सकता हैं, और यदि बात कि जाए इन राज्यों की साक्षरता दर की तो वह भी काफी चिंतनीय हैं | बाल विवाह न केवल बालिकाओं से उनका बचपन छीन लेता हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक वृद्धि में भी बाधा डालता हैं |
सरकार ने इस भेदभाव को कम करने के लिए कई योजनायें शुरू की हैं, जैसे बेटी बचाओं बेटी पढाओं, सुकन्या समृधि योजना, लाडली कन्या कोष योजना आदि | बालिका सशक्तिकरण के लिए मुफ्त शिक्षा, कालेज और यूनिवर्सिटी में बालिकाओं के लिए आरक्षण प्रदान किया हैं | किन्तु इसी के साथ-साथ देश में समाजिक सुधार और सख्त कानूनों की बेहद आवश्यकता हैं, जिससे बेटी सशक्तिकरण केवल राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन के न रह जाए, बल्कि वास्तव में बालिकाओं को सुविधाएं प्रदान करने में सक्ष्म हो |
सभी उपक्रमों को जानने के बाद, हम कह सकते हैं कि सरकार बालिकाओं के उन्नयन के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही हैं | लड़कियां हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं, बस उन्हें शिक्षित करने, उनका सम्मान करने और उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता हैं |
सरकार की ओर से निश्चित रूप से प्रयास जारी हैं किन्तु अब आवश्यकता हैं कि समाज अपनी रुढ़िवादी सोच को त्याग दे और बालिकाओं को समान अवसर प्रदान कर के उदाहरण प्रस्तुत करें | लिंग आधारित भेदभाव को जड़ से खत्म करने का एक मात्र मूल मन्त्र हैं – साक्षरता और सोच में परिवर्तन | अंत में, हम सभी के लिए एक सवाल, “क्या वास्तव में वर्ष का केवल एक दिन बालिका शिशु के लिए होना चाहिए? या इस दिवस को हमे दैनिक रूप से मानना चाहिए ?