‘मुझे अपनी पहचान बनाने का मौका मिला’
यह साक्षात्कार COVID-19 रिसर्च फ़ंडिंग प्रोग्राम 2020 के तहत अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा वित्त पोषित एक शोध अध्ययन के भाग के रूप में आयोजित किया गया था । यह अध्ययन COVID-19 महामारी के दौरान राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में फ्रंटलाइन श्रमिकों के अनुभवों को दर्शाता है ।
यह साक्षात्कार जयपुर, राजस्थान में 8 जनवरी 2021 को एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के साथ आयोजित किया गया था ।
प्रश्न: पिछले नौ महीनों के दौरान, आप COVID-19 से संबंधित कार्यों से जुड़े रहे हैं । कृपया अपने COVID-19 महामारी और गैर-महामारी से जुड़े कर्तव्यों का संक्षिप्त विवरण दें।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता: मुझे COVID-19 से संबंधित काम के लिए अपना गाँव आवंटित किया गया था, इसीलिए मुझे कभी भी कोई अतिरिक्त काम नहीं करना पड़ा ।
मेरी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी लोगों का सर्वेक्षण करना था । मुझे घर-घर जाना था, खासकर उन लोगों के यहाँ जो गाँव में बाहर से आये थे, लक्षणों की जांच करनी थी, दिशा निर्देश देने थे तथा उन्हें अलग रहने का प्रोटोकॉल समझाना था ।
मैंने बच्चों को पढ़ाने की अपनी ज़िम्मेदारी जारी रखी, लेकिन क्योंकि हम उन्हें केंद्र में इकट्ठा नहीं कर सकते थे, इसीलिए मैं उनके घरों में जाकर उन्हें पढ़ाती थी । टीकाकरण तथा लोगों को राशन देने का कार्य भी घर-घर जाकर ही हुआ। यह मेरा काम नहीं था लेकिन फिर भी मैंने लोगों को खाद्यान्न प्राप्त करने में मदद की । ‘खादी सुरक्षा योजना’ के तहत सभी के लिए गेहूं की उपलब्धता थी, लेकिन मेरे गांव में किसी को भी इसकी जानकारी नहीं थी । इसीलिए मैंने उनके आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज़ जमा करवा कर उन्हें इस योजना का लाभ दिलवाने में मदद की ।
मेरी एक बड़ी ज़िम्मेदारी – जन्म/मृत्यु, COVID-19 संबंधित संख्या, टेक होम राशन, टीकाकरण, और गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों की रिपोर्ट्स भेजते रहना भी थी ।
प्रश्न: आपके क्षेत्र में अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ आपका संबंध कैसा है ? आप आपस में किस तरह से समन्वय बिठाते हैं?
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता: मुझे लगता है कि जो फ्रंटलाइन वर्कर्स महामारी टास्कफोर्स का हिस्सा थे उनके बीच में समन्वय था | मैं इसका हिस्सा नहीं थी, इसीलिए मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है । उनके बीच समन्वय था क्योंकि उनके अधीन गाँवों की संख्या अधिक थी, जबकि मैं सिर्फ अपने गाँव की प्रभारी थी । एकमात्र समन्वय जो मुझे याद है, वह है आशा कार्यकर्ताओं के साथ, जिन्होंने टीकाकरण कराने में हमारी मदद की क्योंकि हमें बहुत सारे बच्चों का टीकाकरण करना था | हमने बच्चों को पाँच समूहों में बाँट दिया था ताकि टीकाकरण शिविर में अव्यवस्था न हो । आशा कार्यकर्ताओं ने इसमें हमारी मदद की ।
जो बच्चे शिविर में आने में असमर्थ थे, उनके लिए घर-घर जाकर टीकाकरण कराने में भी आशा कार्यकर्ताओं ने मदद की ।
प्रश्न: क्या इन गतिविधियों को करने के लिए आपको अपने सुपरवाइज़र से कोई समर्थन मिला?
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता: सुपरवाइज़र से कोई मदद नहीं मिलती थी, वे कहते थे कि ‘यह आपका अपना गाँव है, आप इसे संभालना जानते हैं’ ।’ उनके पास बहुत ज़्यादा काम था क्योंकि उन्हें महामारी टास्कफोर्स का ध्यान रखना था, वे सभी से रिपोर्ट लेते थे और अपडेट मांगते थे । इस कारण भी वे मेरे साथ फील्ड के काम में शामिल नहीं हो पाते थे ।
इन सबके बावजूद उन्होंने मेरा सहयोग किया । मैंने उन्हें रिपोर्ट भेजने में कभी देरी नहीं की, फिर भी उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि अगर कभी देरी होती है, तो उसमें कोई बड़ी समस्या नहीं होगी ।
उन्होंने सभी कार्यों के समन्वय के लिए पंचायत, पटवारी, चिकित्सा अधिकारी तथा फ्रंट लाइन वर्कर्स के साथ मासिक बैठकें भी की । यह बैठकें हमारे लिए COVID-19 प्रोटोकॉल का रिफ्रेशर सेशन भी थीं ।
प्रश्न: महामारी के दौरान आपको काम करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता: मेरी प्रेरणा का सबसे बड़ा कारण है कि यह नौकरी मेरी आय का एकमात्र स्रोत है, इसीलिए मेरे पास इसे अपने धार्मिक कर्तव्य के रूप में निभाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है ।
हालाँकि, महामारी के दौरान यह प्रेरणा काफी बदल गई क्योंकि लोगों ने मुझे और मेरे काम को बहुत सराहा । लोग मुझे आशीर्वाद देते हैं, यह आशीर्वाद मेरे लिए किसी भी वेतन या प्रोत्साहन से ऊपर है ।
फ्रंट लाइन वर्कर होने के नाते मुझे अपना खुद का नाम बनाने का मौका मिला । शादी के बाद महिलाओं को उनके पति की पहचान से ही जाना जाता है, लेकिन इस नौकरी के कारण मुझे अपनी पहचान बनाने का भी मौका मिला ।
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