महामारी के दौर में संघर्ष और प्रयास की एक अविस्मरणीय यात्रा

मेरा नाम उम्मेद सिंह हैं और मैं मंथन संस्था कोटड़ी, जिला अजमेर (राजस्थान) में शिक्षा समन्वयक के रूप में काम कर रहा हूँ| मैं अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव ग्रुप के ‘हम और हमारी सरकार’ कोर्स का पूर्व प्रतिभागी रहा हूँ तथा आज भी ‘हमारी सरकार’ हिंदी वेबसाइट के माध्यम से जुड़ा हुआ हूँ|

मैं कोविड-19 में लोगों के लिए अपनी संस्था द्वारा किये गए विभिन्न प्रयासों को आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ| मंथन के कार्य क्षेत्र में ऐसी बहुत छोटी-छोटी ढाणीयां हैं जो मुख्य गांव से एक दो किलोमीटर दूर हैं जिनके साथ हम पिछले काफी समय से काम कर रहे हैं| इन बस्तियों से हमारा वर्षों का रिश्ता रहा हैं इसलिए हमने इन लोगों को कोरोना संकट में हर तरह से बचाने की ज़िम्मेदारी उठायी तथा लॉकडॉउन के समय तत्काल इनसे मिलने निकल पड़े| हमारी संस्था के कुछ प्रयास रहे हैं जो इस प्रकार से हैं:

समुदाय के साथ:
बहुत साल पहले जब वर्षा अच्छी होती थी, जंगल एवं जानवर थे, तब बस्ती के ये लोग आराम से रहते थे| पिछले 10-15 वर्षों से एक जगह रहने लगे हैं| कई समुदायों के पास अपनी जमीन भी नहीं हैं तथा सरकारी जमीन पर ही रह रहे हैं| आज भी इन लोगों की आजीविका के दो ही साधन हैं मज़दूरी या मांगकर गुज़ारा चलाना| अतः हमने स्वयं इन लोगों के बीच जाकर उनको महामारी में संघर्ष व बचाव के लिए तैयार किया| ऐसे संकट में उनकी ज़िन्दगी को बचाने के लिए राशन उपलब्ध करवाया तथा साथ-साथ इनके बच्चों को भी विभिन्न तरीकों से पढ़ाई से जोड़कर रखा|

काफी मुश्किल समय रहा:
लॉकडाउन की वजह से मज़दूरी करने के लिए लोगों के पास कोई काम ही नहीं बचा| अगर कहीं काम मांगने जाते तो यह कहकर भगा दिए जाते कि आप कोरोना फेला दोगे, वैसे ही आप लोग गंदे रहते हो| अब इनके पास चुनौती यह रहती थी कि 5-6 सदस्यों के परिवार के लिए ठेकेदार से 5 लीटर पानी मांगकर लाते थे, उसको अब ये लोग पीयें या फिर हाथ धोएं क्योंकि बाहर जो लोग कमाने गये हुए थे, वो भी घर पर ही आ गये थे| इस वजह से इनका जीवन काफी संकट में आ चुका था |

हमारी तरफ से पहल:
कुछ दिन तक तो इनके साथ सब ठीक रहा और इनके साथ बातों और जानकारियों से हमारा काम चल गया| लेकिन कब तक? कुछ दिनों के बाद ही इनके सामने अनाज का संकट पैदा हो गया, जो थोड़ा बहुत घर में था, वो सब ख़त्म हो गया| हम भी ऐसे में काफी सहज हो गए क्योंकि ऐसी स्थिति का हमने भी कभी सामना नहीं किया था| अब हमारे सामने भी यही सवाल था कि इन्हें अब जानकारी देना ही काफी नहीं हैं और इनके पास केवल खाली हाथ जाने से काम नहीं चलेगा|

खैर, हमने निर्णय लिया की अब लोगों का जीवन तो बचाना ही होगा| इसके लिए हमने अपने दोस्तों के साथ मिलकर बस्ती के लोगों तक 233 राशन किट उपलब्ध कराये जिसमें गेंहू, दाल, चावल, खाद्य तेल, हल्दी पाउडर, नमक समते सभी आवश्यक सामग्रियां उपलब्ध थीं|

इसी तरह से हमने न केवल दो महीने तक 186 परिवारों के एक हजार से भी ज़्यादा लोगों को खाना पहुँचाया बल्कि उनके आत्म सम्मान को ज़िंदा रखते हुए महामारी से लड़ने के लिए भी समर्थ बनाया| यही कारण रहा की बस्ती में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई| दोस्तों की इस मदद से हमें बहुत ताकत और हौसला मिला| अनाज के अलावा हमने 150 गरीब परिवारों को गर्म कपड़े भी वितरित किये और 63 परिवारों के लिए पीने के पानी के लिए टंकियां बना रहे हैं|

मास्क वितरण:
इस मुश्किल दौर के दौरान एक कंपनी से हमें 5500 मास्क निशुल्क मिले, जिन्हें हमने पंचायत व स्थानीय पुलिस साथियों के सहयोग से लोगों को वितरित किये|

पढ़ाई की निरंतरता के लिए नियमित प्रयास:
कोरोना की वजह से दिमाग में शुरू से ही ये बात रहती थी की इन समुदायों के बच्चे अगर पढ़ाई से दूर हो गए तो उन्हें वापिस पढ़ाई से जोड़ना बहुत ही मुश्किल होगा| हम 6 समुदायों में स्कूल चला रहे हैं जहाँ 168 बच्चे पढ़ रहे हैं| साथ ही हमने अन्य समुदायों के लिए चलाई जा रही दिनशाला के माध्यम से 85 बच्चों को भी पढ़ाई से निरंतर जोड़े रखा| हमारे द्वारा बागरिया, बंजारा, हरिजन, रेगर, गुर्जर व अन्य समुदायों के गरीब व वंचित बच्चों के लिए 6 रात्रि शालाएं चलाई, जिनमें 11 अध्यापक इस कठिन दौर में बच्चों के साथ जुड़े रहे| प्रत्येक अध्यापक अपने-अपने विषय की आगामी 15 दिनों की वर्कशीट बनाते तथा समुदाय में जाकर बच्चों को देकर उन्हें गतिविधियाँ समझाकर कार्य पूर्ण करवाते और फिर अगले 15 दिनों की वर्कशीट तैयार करते तथा पिछ्ले कार्य की वर्कशीट का मूल्यांकन करते| जिन बच्चों के घर में कीपेड फ़ोन थे उनके नंबर पर समय पर बच्चों के लिए काल आता जिसमे किसी विषय पर लगभग 10 मिनिट की गतिविधि बिलकुल सरल भाषा में होती थी जिसे अध्यापक रिकॉर्ड करते और बच्चों को सुनाते, साथ ही बच्चों को गतिविधि के माध्यम से होमवर्क भी दिया जाता| धीरे-धीरे जब स्थितियां थोड़ी सामान्य होने लगीं तब अध्यापक बच्चों के घर, मोहल्ले में जाकर छोटे समूह में शिक्षण करवाने लगे|

बच्चों की स्वास्थ्य जाँच :
अभी जनवरी महीने के प्रारम्भ में समुदायों में जाकर बेयरफुट कॉलेज, तिलोनिया की स्वास्थ्य विभाग टीम के साथ मिलकर प्रत्येक बच्चे की स्वास्थ्य जाँच की गई और पोषाहार भी दिया गया|

अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि यह समय हर किसी के लिए काफी मुश्किलों भरा रहा हैं लेकिन ये भी हैं कि इस समय ने हम सभी को अलग तरीके से जीना भी सीखा दिया हैं| इसलिए मुझे लगता हैं कि हम सभी को हर स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिये क्योंकि ये बिलकुल भी ज़रूरी नहीं हैं कि स्थितियां हमेशा हमारे ही पक्ष में रहें|

मैं अपनी मंथन संस्था के सभी साथियों का धन्यवाद करना चाहूँगा जिन्होंने हर स्थिति में खुद को आगे ही रखा तथा अपने उत्साह और प्रयासों को कभी भी कम नहीं होने दिया|