मनरेगा के अहम पहलु
बिहार विधान सभा चुनाव अब बस होने को है। इसी सन्दर्भ में चलिए जानते हैं मनरेगा योजना के कुछ अहम् पहलु और ज़मीनी तस्वीर जानने के लिए बात करते हैं कहुआ पंचायत (जिला दरभंगा) के मुखिया से।
मनरेगा कार्यक्रम का मुख्य उदेश्य क्या है?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा/MNREGA) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 7 सितंबर 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया। योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है|
मनरेगा के तहत, केन्द्र सरकार मजदूरी की लागत, माल की लागत का ¾ हिस्सा और प्रशासनिक लागत का कुछ प्रतिशत हिस्सा वहन करती है। राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता, माल की लागत का ¼ हिस्सा और राज्य परिषद की प्रशासनिक लागत को वहन करती है। राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता देती हैं, इसलिए उन्हें श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने के लिए भारी प्रोत्साहन दिया जाता है।
हालांकि, बेरोजगारी भत्ते की राशि को निश्चित करना राज्य सरकार पर निर्भर है, जो इस शर्त के अधीन है कि यह पहले 30 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी के 1/4 भाग से कम ना हो और उसके बाद न्यूनतम मजदूरी का 1/2 से कम ना हो। प्रति परिवार 100 दिनों का रोजगार (या बेरोजगारी भत्ता) सक्षम और इच्छुक श्रमिकों को हर वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाना चाहिए|
पंचायत में मनरेगा के काम के बारे में जानकारी कैसे मिलती है?
पंचायत सदस्यों के माध्यम से और पंचायत रोजगार सेवक के द्वारा सुचना प्राप्त होती है|गाँव में किसी निश्चित दिन को ग्राम सभा कि जाती है और इसमें सरकार के कर्मचारी होते हैं जिन्हें हम-पंचायत रोजगार सेवक कहते हैं और वही बताते है की मनरेगा के अंतर्गत किस तरह के काम आय है और जो इच्छुक व्यक्ति होते है उन्हें कार्य दिया जाते हैं|
मनरेगा कार्यक्रम के तहत किन किन व्यक्तियों को काम मिल सकता है?
ग्रामीण परिवेश के ऐसे सदस्य जिन्होंने 18 वर्ष की उम्र पूरी करी हो और अकुशल मजदुर के रूप में काम करना चाहते हो | ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्य, ग्राम पंचायत के पास एक तस्वीर के साथ अपना नाम, उम्र और पता जमा करते हैं। जांच के बाद पंचायत, घरों को पंजीकृत करता है और एक जॉब कार्ड प्रदान करता है। जॉब कार्ड में, पंजीकृत वयस्क सदस्य का ब्यौरा और उसकी फोटो शामिल होती है।
मनरेगा में मजदूरी कितनी दी जा रही है? मजदुर को पैसे देना की प्रक्रिया क्या है?
मनरेगा के तहत अभी बिहार में 192 रूपये दिए जा रहे है| मुखिया जी के अनुसार यह काफी कम मजदूरी है और इतने कम मजदूरी में कोई भी व्यक्ति काम करना नहीं चाहता है|
अगर मनरेगा के अंतर्गत काम नही दिया जाता है तो क्या मजदूरी भत्ता दिया जाता है?
मुखिया जी की माने तोउनके क्षेत्र में कभी ऐसा नहीं हुआ है कि काम नहीं दिया गया हो, जब लोग काम के लिए अप्लाई करते है तो मस्टररोल तहत उनको काम दिया जाता है|”सच बात तो यह की मनरेगा के तहत इतनें कम मजदूरी में कोई काम ही नहीं करना चाहता है|अभी तक हमारे पंचायत में इस तरह की समस्या नहीं आई है”,मुखिया जी|
मनरेगा के तहत सबसे अधिक काम किस तरह का लिया जाता है?
मुखिया जी का कहना है: मनरेगा के तहत ज्यादातर कार्य-वृक्षारोपण, नया तालाब -पोखर, बाढ़ से जो कुछ क्षति हुई है उसकी मरमत का कार्य हो रहा है|बिहार सरकार की योजना जल-जीवन हरियाली के तहत वृक्षारोपण,जीर्णोद्धार का कार्य चल हा हैं|
जॉब-कार्ड बनाने की प्रक्रिया क्या है?
जॉब-कार्ड बनाने के लिए, 2 पासपोर्ट साइज फोटो, आधारकार्ड और खाता संख्या चाहिए|
क्या कोरोना महामारी के दौरान मनरेगा मजदूरो को काम दिया गया था?
मुखिया जी बताते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान जो प्रवासी मजदुर आए थे उनको मनरेगा के तहत कार्य दिया गया और इसके लिए कार्य स्थल के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्देश निकाले गए है| (dd.bih.nic.in/Circulars/461113.PDF)
जो प्रवासी मजदुर आये थे, उनमे से किसी ने 1 महीने, तो किसी ने 42 दिन ही कार्य किया है|अगर मजदूरी भत्ते की बात करे तो मार्च से जून 2020 तक ही सरकार पैसा दे पाई है|अभी तक जितने भी प्रवासी मजदुर बिहार आये थे वो लगभग वापस चले गए|