मनरेगा कार्यक्रम की अहमियत
भारत में बेरोजगारी हमेशा से एक बहुत बड़ी समस्या रही है। ख़ास तौर से कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन की वजह से बेरोज़गारी और भी अधिक बढ़ गयी है। इस महामारी की वजह से बड़े-बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का अपने गाँवों की तरफ बहुत अधिक संख्या में पलायन हुआ है।
ऐसे में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा कार्यक्रम, लोगों को ग्रामीण स्तर पर रोजगार मुहैया करवाने में अपनी एक अहम भूमिका निभा रहा है। कोरोना काल में दूसरे शहरों से आने वाले और अपने ही गाँव में बेरोज़गार हो चुके लोगों को मनरेगा योजना से बड़ी राहत मिली है। जो भी लोग दूसरे शहरों से अपने गाँव आए हैं, उन्हे जॉब कार्ड बनाकर काम दिया जा रहा है। इससे इन लोगों की रोजी-रोटी चल रही है तथा साथ ही योजना का काम भी तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना महामारी के बीच दूसरे शहरों से लोगों के लौटने की वजह से जॉब कार्ड धारकों की संख्या में काफी इज़ाफा हुआ है।
बिहार राज्य की बात की जाए तो मनरेगा के तहत लोगों को काम देने में दरभंगा जिला सबसे पहले पायदान (93414 मजदूर) पर है, वहीं इसी सूची में गया जिला दूसरे पायदान (72466 मजदूर) पर तथा सारण जिला तीसरे पायदान (57783 मजदूर) पर पहुंचा है। उदाहरण के लिए मनरेगा के तहत कुछ काम कर रहे प्रवासी मजदूरों का कहना है कि “हम लोग जब दूसरे शहरों से वापस अपने गांव आए तो यहाँ मनरेगा के तहत तालाब की खुदाई चल रही थी, जिसमें हमें काम करने का अवसर मिला। अभी मछली पालन का काम रहे हैं और जब भी मनरेगा के तहत काम मिलता है तब काम करते हैं।” (हिंदुस्तान अखबार के अनुसार)
मनरेगा के तहत अभी जल जीवन हरियाली, जल शक्ति अभियान, आहर –पाइन, पोखर तालाब आदि का निर्माण, पौधा-रोपण, शेड निर्माण, ग्रामीण संपर्क मार्ग निर्माण आदि चल रहा है। मनरेगा के तहत अभी बिहार में 194 रुपए दैनिक भत्ता के रूप में मजदूरों को दिया जा रहा है।
जमीनी स्तर पर जाएँ तो योजना के दुसरे पहलु भी देखने-सुनने को मिलते हैं। हमने मई -2021 में दरभंगा जिला के बिरौल प्रखंड के एक मुखिया से बात की थी जिसमें उनका कहना था कि:-
“अभी हमारे कहुया पंचायत में बहुत सारे प्रवासी मज़दूर आये हैं, लगभग 30 से 40 परिवार आए होंगे और उन्हें काम की जरूरत भी है। लेकिन मनरेगा के प्रखण्ड अधिकारी की तरफ से किसी तरह के काम का कोई आदेश नहीं आया है और न ही किसी को कोई काम अभी तक मिला है। हमारे यहाँ धरातल की स्थिति बहुत ही ख़राब है। मनरेगा के तहत किसी भी प्रकार के रोज़गार का प्रबंध नहीं किया गया है और न ही किसी को रोज़गार भत्ता दिया जा रहा है। अभी पंचायत में रोज़गार पूरी तरह से बंद है। जो लोग बाहर से आये हैं वे चाहते हैं कि मनरेगा के तहत किसी भी प्रकार का कोई काम मिले परंतु अभी तक किसी भी व्यक्ति को काम नहीं मिला है।”
इस कोरोना महामारी के दौर में हमारा देश बेरोज़गारी से जूझ रहा है। लोग अपने गाँव में ही काम तलाश कर रहे हैं परंतु काम नहीं मिल रहा है। यह बहुत ही चिंता वाली बात है क्योंकि लोग जीवन-यापन के लिए काम तो करना चाह रहे हैं परंतु उन्हे काम ही नहीं मिल पा रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग्रामीण स्तर पर मनरेगा जैसी योजना इस महामारी में लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाने का एक प्रमुख जरिया बनी है। लेकिन ऐसी भी वास्तविकताएं सामने आ रही हैं, जिनकी वजह से लोगों को काम मिलने में बहुत सी परेशानियां हुई हैं। ऐसे में काम पाने के जो अधिकार नागरिकों के पास हैं, फिर उन अधिकारों के क्या मायने रह जाते हैं? आखिर उनके रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्ति कैसे हो पायेगी?