बिहार में ग्राम स्वच्छता एवं पोषण समिति का एक पहलू यह भी
साफ-सफाई का मूल सिद्धांत है कि अगर ‘एक भी गाँव छूटेगा, तो सुरक्षा चक्र टूटेगा’। इसका अर्थ है कि यदि हम प्रत्येक गाँव की साफ–सफाई का ध्यान नही रखेंगे तो महामारी तथा संक्रमण से निजात पाना बहुत मुश्किल है। एक गाँव से दूसरे गाँव तक संक्रमण फ़ैलता ही रहेगा। किसी भी गाँव को स्वच्छ रखने में स्वच्छता समिति के साथ-साथ आम जनता की भी अहम् भूमिका होती है।
साफ-सफाई तथा स्वच्छ वातावरण स्वस्थ्य रहने के लिए अत्याधिक महत्त्वपूर्ण है। आज जब पूरा विश्व कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है तो स्वच्छता का महत्व और भी बढ़ गया है। नियमित हाथ की सफ़ाई के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए तरह-तरह की मुहिम चलायी जा रही है।
ग्रामीण स्तर पर जन स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण एवं पर्यावरण के रख रखाव को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत में ‘ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण समिति’ होती है। इस समिति में अधिकतम सदस्यों की संख्या पांच होती है तथा स्वास्थ्य विभाग की स्थानीय ए.एन.एम. इसमें सचिव के रूप में कार्यरत होती हैं।
ग्राम स्वच्छता के अलग-अलग सूचक हैं। बिहार के गाँव में हर घर में शौचालय का निर्माण स्वच्छ भारत मिशन और लोहिया स्वच्छता मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत कराया जा रहा है। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले 2020-21 में 20 प्रतिशत अधिक बजट आवंटन किया गया है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए 8,338 करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे, वही वित्त वर्ष 2020-21 के लिए कुल 9,994 करोड़ आवंटित किये गए हैं (स्वच्छ भारत मिशन – बजट ब्रीफ)।
हमने ग्राम स्वच्छता समिति की ज़मीनी हकीकत को समझने के लिए नालंदा जिले की कुछ ए.एन.एम. तथा जनप्रतिनिधियों से बात की। ए.एन.एम. सुनैना (बदला हुआ नाम) से बात करने पर पता चला कि पिछले कई वर्षों से ग्राम स्वच्छता समिति की बैठक नियमित रूप से नहीं हो रही है। यदि बैठक बुलाई भी जाती है तो सदस्यों की उपस्थिति नहीं होती है जिसके कारण स्वच्छता समिति के अंतर्गत प्राप्त राशि का खर्च नहीं हो पा रहा है।
ए.एन.एम. विभा (बदला हुआ नाम) से किये गए साक्षात्कार में पता चला कि स्वच्छता समिति की बैठक और काम न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण पैसा है। उन्होंने कहा कि –
‘स्वच्छता समिति के खाते में जो राशि विकास के लिए आती है उसे खर्च करना मेरे लिए मुश्किल है क्योंकि अध्यक्ष तथा अन्य सदस्य कहते हैं कि उसमें से कुछ राशि पहले मैं उन्हें दूँ तब वे निकासी वाले पर हस्ताक्षर करेंगे। इस कारण मैं अनुदान की राशि खर्च नहीं कर पाती हूँ।’
एक ग्राम प्रधान से बात करने पर पता चला कि उनके गाँव में स्वच्छता समिति सक्रिय ही नहीं है तथा समिति की बैठक बहुत कम होती है। उन्होंने बताया कि वे साफ सफाई के लिए समिति पर निर्भर नहीं हैं तथा खुद आगे बढ़कर अपनी पंचायत में सड़क, नल-जल, आंगनबाड़ी केंद्र की साफ-सफाई और छिड़काव का काम करवाते हैं। इसके लिए वे 15वें वित्त आयोग की राशि तथा सात निश्चय जैसी योजनाओं का सहयोग लेते हैं। इस तरह इन तीन साक्षात्कारों से ग्राम स्वच्छता एवं पोषण समिति के कार्य में आने वाली चुनौतियों के बारे में जानने को मिला।
दिनेश कुमार एकाउंटेबिलिटी इनिशिटिव में सीनियर पैसा एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं।