प्रारभिक शिक्षा की भयावह स्थिति
वर्तमान दौर में हमारे समाज के आंगनवाडी और सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति तो काफी बढ़ी है | लेकिन अभी भी बच्चे लगातार स्कूल नही जाते है | बच्चों के नामांकन हो जाने के बाद भी बच्चे क्यों स्कूल नही जाते है | यह बहुत ही बड़ा सवाल है | मेरा मानना है कि इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण है | पहला यह है कि आंगनवाडी केंद्र एवं स्कूलों में बच्चों के बाल केन्द्रित पाठ्यक्रमअर्थात आनंददायी माहौल निर्माण की बहुत बड़ी समस्या है साथ ही दूसरा महत्वपूर्ण कारण बच्चों के अभिभावको का निरक्षर, और शिक्षा के प्रति जागरूक कम होना यह महत्वपूर्ण कारण है | क्यूंकि बेहतर विधालय व बेहतर शिक्षा में तीन महत्वपूर्ण घटक है | पहला सरकारी तंत्र दूसरा विधालय प्रबंधन और तीसरा अभिभावक, मेरा अनुभव ऐसा है कि जिस गाँव में अभिभावक शिक्षा के प्रति जागरूक है वहां के विधालय का सही संचालन दिखता है साथ ही बच्चे हर दिन विद्यालय भी जाते है और सीखते भी है | आजादी के इतने वर्षों के बाद भी साक्षरता रिपोर्ट के अनुसार 30% ग्रामीण निरक्षर है | और यह निरक्षरता प्राथमिक शिक्षा का भी बहुत बड़ा कारण है क्यूंकि निरक्षर ग्रामीण अभिभावकों का शिक्षा के प्रति रुझान नही है | उनके बच्चे स्कूल हर दिन जाते है या नही और जाते भी है तो क्या सीखते है उनको खुद पता नही है | शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद ग्रामीण स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षकों की भर्ती, बच्चों के नामांकन इत्यादि सुविधायें तो बढ़ी है लेकिन गुणवता पूर्ण शिक्षा की घोर कमी है | ग्रामीण निरक्षरता का विकास पर भी असर होता है | सरकार को भी इन लोगों तक अपना जनसंदेश या जनहित वाली सूचनाए पहुचाने के लिए ऐसे संचार माध्यम का उपयोग करना चाहिए जिससे वे आसानी से समझ सके, साथ ही लिखित संदेशों के बजाय, आडियों, विडियो, चित्रों इत्यादि के जरिये सूचनाये भेजनी चाहिए | अगर हम बच्चों की शैक्षणिक स्तर की बात करे तो असर रिपोर्ट 2017 के मुताबिक़ अभी भी देश में हमारे ग्रामीण स्कूलों में पढने वाले बच्चों में कहानी पढने व सामान्य जोड़ घटाव सीखने का स्तर बहुत नीचे है|
साथ ही देश के कई राज्यों में राज्य सरकारे एवं कई संस्थाये बच्चों के साथ शैक्षणिक गतिविधियों में प्रगति करने एवं अच्छी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का कार्य कर रही है | लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य पूरा नही हुआ है और इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के साथ स्थानीय सरकार को भी गंभीरता से विचार-विमर्श करना होगा | और शिक्षा के लक्ष्यों का फिर से निर्धारण करना जरूरी है क्यूंकि समस्या होना बड़ी बात नही है | समस्या लगातार कई सालों तक बने रहना ये सबसे बड़ी दिक्कते है |
शिक्षा के फिर से निर्धारण का तात्पर्य ये है कि सरकार को पहले देश की बड़ी–बड़ी सँस्थाए एव सरकारी तंत्रों के साथ समस्या पर विश्लेष्ण करना चाहिए और यथाशीग्र प्रभावी तरीके ढूढने चाहिए, सरकार को यह भी सुनश्चित करना चाहिए कि पहली से पाँचवी और छठी से आठवी के कक्षा पास करने वाले बच्चे को क्या क्या करने योग्य और कितनी जानकारी होनी चाहिए ,और साथ ही इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्कूलों की भी जवाबदेही तय करनी होगी | शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था “प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन” के रीड इण्डिया प्रोग्राम के तहत भारत के लगभग राज्यों के सरकारी स्कूलों के बच्चों के साथ “कमाल” गतिविधियों के माध्यम से तीन महीनों में बच्चों को कहानी पढना व साधारण घटाव भाग करना आ जाता है | इसी तर्ज पर कई राज्यों में राज्य सरकार प्रथम संस्था के साथ मिलकर कार्य कर रह ई है | बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, एव अन्य कई राज्यों में बच्चों के शैक्षणिक स्थिति मजबूत करने के लिए राज्य सरकारे प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन एव अन्य कई नामचीन संस्था के साथ करार किये है | यह अच्छी पहल है | लेकिन सरकारे बाद में अपनी जिम्मेवारी कार्यक्रम, योजना के बीच में ही ढीला छोड़ देते है | जिस कारण परिणाम प्रभावी तरीके से देखने को नही मिलते, खासतौर पर सरकारी पदाधिकारियों को इन कार्यक्रम को प्रभावी तरीके से लागू करना चाहिए , बिहार में जिला पदाधिकारी के द्वारा प्रथम के सहयोग से पदों जहानाबाद, व पढो पूर्वी चम्पारण कार्यक्रम के बेहतर परिणाम के फलस्वरूप राज्य सरकार ने मिशन गुणवत्ता कार्यकम की शुरुआत की जिसका अच्छा परिणाम मिल रहा है |
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