प्रशासन के सितारे: प्रतिभा भराड़े

सवाल: आप अपने बारे में कुछ बताएं?

जवाब:  मेरा नाम प्रतिभा भराड़े है तथा मेरा जन्म 1966 में हुआ। शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने शिक्षा विभाग में एक शिक्षक के रूप में 1986 से कार्य करना शुरू किया। वर्ष 1994 के बाद मैंने शिक्षण विस्तार अधिकारी (Education Extension Officer) के रूप में खटाव ब्लॉक, जिला सतारा, महाराष्ट्र में कार्य करना शुरू किया, जो अभी तक चल रहा है।  

सवाल: आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर कार्य कर रहे हैं? 

जवाब: मैं अभी शिक्षा विभाग में कार्यरत हूँ, मेरा पद शिक्षण विस्तार अधिकारी का है वर्तमान में मैं खंड शिक्षा अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सम्भाल रही हूँ, जिसके अंतर्गत मैं खटाव के पूरे ब्लॉक को देख रही हूँ।

सवाल: अपने मुख्य कार्यों को बताते हुए ये बतायें की आपके ऐसे कौन से प्रमुख कार्य हैं, जो सीधे तौर पर नागरिकों से जुड़े हुए हैं?

जवाब: मैं अगर बात करूँ तो हमारे मुख्य कार्य स्कूल का निरीक्षण करना, प्रशासनिक कार्य, शिक्षा की बेहतरी के लिए शिक्षकों का मार्गदर्शन देना, जिला व ब्लॉक से मिले दिशानिर्देशों को स्कूलों तक पहुंचाना होता है। इसके अलावा कुछ कार्य नागरिकों के साथ जुड़े हैं, जैसे स्कूल प्रबंधन समिति की बैठकें, पलक भेटी करना मुख्य कार्य है। बच्चों की वर्दी, गरम पका हुआ भोजन व बच्चों की किताबों के वितरण कार्यो के संदर्भ में सीधे नागरिकों के साथ जुड़ते हैं। इन विषयों को लेकर हम अभिभावकों के साथ चर्चा करते हैं साथ ही किसी स्कूल में इन विषयों को लेकर कुछ समस्या होती है, तो सीधे नागरिक भी हमसे आकर मिलते हैं। इसके अलावा हम जो इनोवेशन प्रोग्राम करते हैं, उसके कारण भी हम सभी को एक साथ जुड़ने का अवसर मिलता है जैसे ग्रीष्मकालीन शिविर-सतारा जिले के खाटव ब्लॉक में 50 छात्रों के लिए एक ग्रीष्मकालीन शिविर का आयोजन किया गया। इसमें छात्रों को राइफल शूटिंग, सिरेमिक पेंटिंग, अभिव्यक्ति और मल्लखंबा में प्रशिक्षित किया गया। 2004 से छात्रों के स्वास्थ्य और मस्तिष्क को मजबूत करने के लिए माता-पिता की बैठकें और छात्र मार्गदर्शन कार्यशालाएं आयोजित की हैं, जिसका समाज के विकास में बड़ा योगदान रहा है।

सवाल: एक अधिकारी के तौर पर आपकी अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रही हैं? क्या आप एक या दो सफलताओं के बारे में बता सकते हैं?      

जवाब: मैं पहले कुमठे बिट में काम कर रही थी, जहाँ वर्तमान में हर बच्चा अब पढ़-लिख सकता है जिसे हमने रचनावाद के माध्यम से करके दिखाया है। मैंने इस प्रक्रिया को अपने स्कूल के बच्चों के साथ आरम्भ किया था, जहाँ ब्लॉक और फिर जिला तथा अब राज्य स्तर पर मेरे द्वारा मॉस्टर ट्रेनर के रूप में अध्यापकों को रचनात्मक शैली से प्रशिक्षित करने के बाद इस कार्यक्रम को सभी स्कूलों में इसको क्रियान्वित किया गया है। महाराष्ट्र प्राथमिक शिक्षण परिषद्, मुंबई ने इस प्रोजेक्ट को पुरे राज्य में आरम्भ कर दिया है जिसको लेकर मुझे अधिकारीयों व अध्यापक वर्ग सभी से प्रशंसा मिली है। इस पहल के तहत 16 विभिन्न अभिनव कार्यक्रम शुरू किए गए, जिससे स्कूलों में छात्रों की नियमितता बनाए रखने में बेहद मदद मिली। शिक्षण के तरीके और अन्य क्रियान्वित पद्धतियों का अध्ययन करने के लिए केरल व चेन्नई के स्कूलों का दौरा किया और यह जानने का प्रयास किया कि कैसे दैनिक शिक्षण में ‘एक्टिविटी बेस लर्निंग’ को लागू किया जा सकता है। इसके अलावा रचनावाद शिक्षा प्रणाली से प्रभावित होते हुए ब्रिटिश काउंसिल और यूके सरकार के निमंत्रण पर लंदन में एजुकेशन वर्ल्ड फोरम में भाग लिया था। समाजिक क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए 2017 में मुझे ‘सिविल सर्विस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

सवाल: आपके अभी तक के सफ़र में क्या प्रमुख चुनौतियाँ रही हैं? क्या आप एक या दो उदाहरण दे सकते हैं? आपने इनका समाधान कैसे किया?

जवाब: आरम्भ जरुर चुनौतीपूर्ण था, शुरूआत में सभी को आत्मविश्वास में लेने के लिए कठिनाई जरुर हुई थी। अध्यापकों को भी इस रचनावाद के अनुसार काम करने के लिए तैयार करना चुनौतीपूर्ण था। शुरू में केवल 40 स्कूलों में कार्य करना शुरू किया था, जिस कारण ज्यादा समस्या देखने के लिए नहीं मिली। इसके लिए हमने स्कूल प्रबंधन समिति के साथ और फिर साथ ही अध्यापकों के साथ कई सारी बैठकें कीं। शुरुआत में रिस्पोंस कम था लेकिन धीरे-धीरे बहुत अच्छे से हो गया है, और अभी कार्य काफी बढ़ गया है।

सवाल: आप जिस क्षेत्र में काम करते हैं, उसमें ऐसी कौन सी एक या दो प्रमुख चीजें हैं जिनका अनुसरण करते हुए लाभार्थी आसानी से लाभान्वित हो सकते हैं?

जवाब: इस सवाल का जवाब देना थोड़ा मुश्किल है! लाभार्थियों को लाभ मिलने की बात की जाए तो अंतिम स्तर पर हमारा लाभार्थी है जो स्कूल में पढ़ाई करने वाला बच्चा है। अब उस लाभ को देखें तो उसको मुख्य रूप से मिलने वाली शिक्षा, किताबें, वर्दी, गरम ताजा आहार यही सभी लाभ हैं, जिन्हें मुहैया कराने के लिए हम सभी कार्य कर रहे हैं। नए-नए कार्यक्रम चलाये जाते हैं जैसे हम स्कूल विजिट के लिए जाते हैं, तो गरम पोषण आहार को चेक करते हैं और उन्हें देखते हैं कि बच्चों को किस गुणवता से युक्त खाना मिल रहा है।  

सवाल: कई बार देखने को मिलता है कि सरकार की बेहतर योजनाओं के बावजूद भी लाभार्थियों को उनका लाभ समय पर नहीं मिल पाता, आपके अनुसार इसके क्या प्रमुख कारण हो सकते हैं?

जवाब: इस संदर्भ में बताना चाहूँगी कि लाभार्थियों को उनका लाभ मिल तो रहा है, परन्तु जिस प्रकार से मिलना चाहिए उसमें काफी दिक्कतें हैं। अभी लगभग सभी कार्य ऑनलाइन हैं, जो पैसा बच्चों के पास जा रहा है, वह सीधे लाभार्थी के खाते में डीबीटी के माध्यम से जा रहा है। परन्तु इसमें भी कुछ देरी होती है तथा विभाग में विभिन्न प्रकार की समस्या देखने को मिलती हैं – जैसे प्रशासनिक कठिनाइयाँ, सरकार द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों का पालन करने में देरी, साथ ही विभागों में रिक्त पदों की समस्या भी एक बड़ी समस्या है। हमारे कई सारे खंड शिक्षा अधिकारी के पद रिक्त हैं जिस वजह से अन्य अधिकारीयों के पास अतिरिक्त जो कार्यभार दिया जाता है। इससे अधिकारीयों पर अपने कार्य के अलावा दुसरे कार्यों का भी कार्यभार बढ़ जाता है, जिस वजह से भी कार्य समय पर नहीं होते हैं।

सवाल: अपने काम से जुड़ा ऐसा कौन सा पहलु है जिसको करने में आपको गर्व महसूस होता है?

जवाब: मैं बताना चाहूंगी कि मैने जो कार्य शुरू किया था, उसको अब अध्यापक खुद से नए-नए तरीके अपनाते हुए बच्चों को पढ़ा रहे हैं। साथ ही यह रचनावाद केवल हमरे बिट या जिले में नहीं बल्कि पुरे राज्य में इसका विस्तार हो गया है। इसको देखने व समझने के लिए अप्रैल 2015 से मई 2016 की अवधि में लगभग 80,000 लोगों (शिक्षक, अधिकारी, माता-पिता) ने रचनावाद सीखने के लिए कुम्थे बीट के स्कूलों का दौरा किया तथा वहां पर अलग-अलग नवाचारों के माध्यम से अध्यापकों से प्रशिक्षित किया गया। इसी प्रशिक्षण को कोविड के दौर में अध्यापकों ने माता-पिता का ट्रेनिंग दिया और उन्होंने इस नवाचार माध्यम से बच्चों को पढ़ाया, जिसका सकारात्मक असर बच्चों की शिक्षा में दिखाई दे रहा है।

सवाल: यदि आपको अपना काम करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्रता मिले, तो ऐसा एक कौन सा कार्य है जो आप ज़रूर करना चाहेंगे?

जवाब:  मैं यह समझती हूँ कि हम सभी यह सम्भव करके दिखा सकते हैं कि हर कक्षा का हर बच्चा कम समय में अपनी कक्षा का पूरा पाठ्यक्रम खेल-खेल के माध्यम से अच्छे से पढ़ सकता है। बच्चों को उनकी कक्षा का बेसिक आना चाहिए साथ ही बच्चों को स्कूल में आने में आनंद आये। अध्यापकों को यह समझना जरुरी है कि बच्चों को क्या आता है क्या नहीं आता है, उसको समझना जरुरी है, न कि पाठ्यक्रम को पूरा करना उद्देश्य होना चाहिए ।