प्रशासन के सितारे- आलोक कुमार
आईये इस माह ‘प्रशासन के सितारे’ सेक्शन में आपको नालंदा, बिहार के आलोक कुमार जी से मिलवाते हैं और जानते हैं कि वे किस तरह से बेहतर सेवा के लिए अपने प्रयास कर रहे हैं।
1) आप अभी किस विभाग में तथा किस पद पर काम कर रहे हैं? आपके मुख्य कार्य क्या हैं?
मैं आलोक कुमार, बिहार लोक सेवा आयोग से परीक्षा पास कर 1994 में सहायक शिक्षक के तौर पर नियुक्त हुआ था। मैं वर्तमान में शिक्षा विभाग के उत्क्रमित मध्य विद्यालय पोखरपुर में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हूँ। मैं नालंदा जिला के विभिन्न विद्यालयों में अपनी सेवाएं दे चूका हूँ।
मेरा मुख्य कार्य विद्यालय से सम्बन्धित जो अभिलेख है उनका संधारण करना, प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रखना, समय से विद्यालय खुलना सुनिश्चित करना, शिक्षकों की शैक्षणिक गतिविधियों का अवलोकन करते हुए उनके द्वारा पढ़ाये जाने वाले पाठ्यक्रमों का अनुश्रवन करना है। इसके साथ शिक्षकों को सहयोग करते हुए उनकी समस्याओं को हल करना होता है। शिक्षा को बेहतर करने के लिए समुदाय से जुड़कर कार्य करते हैं तथा विद्यालय शिक्षा समिति के साथ नियमित बैठकें करते हुए यह सुनिश्चित करता हूँ कि सभी सदस्यों की उपस्थिति अवश्य बनी रहे। अतः हम सभी के संयुक्त प्रयासों से बच्चे आगे बढ़ रहे हैं।
2) अभी तक के सफर में सरकार से जुड़कर काम करने का अनुभव कैसा रहा है?
सरकार के साथ काम करने के मिले-जुले अनुभव हैं। शिक्षण से सम्बन्धित कार्यों में बेहद आनंद आता है लेकिन जब सरकार शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्यों में लगाती है, तो इससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। मेरे अनुसार जनगणना और चुनाव ये दो ऐसे कार्य हैं जिनको शिक्षकों से करवाना कोई परेशानी या समस्या की बात नहीं है। लेकिन जब प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) बिना कोई पत्र के मौखिक रूप से बुला लेते हैं और शिक्षकों को Booth level officer (BLO) के कार्य में लगा देते हैं तो इससे सरकार की नीति पर गुस्सा आता है। इनसे बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है।
पिछले वर्ष राष्ट्रीय राजमार्ग-20 का उद्घाटन मेरे ही विद्यालय से ऑनलाइन माध्यम से होना था, जिसे यहाँ के कलेक्टर द्वारा करना था। जब वो मेरे विद्यालय में आये तो उन्होंने विद्यालय का पूरा अनुश्रवन भी किया। अनुश्रवण करने के बाद उन्होंने कहा कि मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि आपने विद्यालय को काफी व्यवस्थित और अनुशासित बनाकर रखा है। जब अपने कार्य पर इस तरह की प्रशंसा मिलती है तो आगे के लिए और भी बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है।
मेरे विद्यालय का रैम्प काफी जर्जर हो गया था, लेकिन इसके लिए कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली, मैंने स्वयं से 10 हजार रूपये खर्च करके इसकी मुरम्मत करवाई। इसलिए कुल मिलाकर सरकार के साथ काम करने के मिले-जुले अनुभव रहे हैं।
3) करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रहीं हैं? एक या दो के बारे में बताईये?
वर्ष 2008 से 2009 में जिला सर्व शिक्षा अभियान के तहत योजना और बजट बनाने का कार्य किया। इसके अलावा 2009 में प्रारंभिक शिक्षा में लड़कियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPEGEL) के तहत एक संभाग (जीवन कौशल) में मार्शल आर्ट सिखाया जाता था। उस समय नालंदा जिले के सरकारी विद्यालयों और निजी विद्यालयों में कक्षा 1-8 वर्ग में पहला विद्यालय मेरा ही था। इसी स्कूल की 2 छात्राएं इंडोनेशिया, सिंगापुर और कोलोम्बों विदेश यात्रा करके आयीं, यह मार्शल आर्ट के तहत खेलने वाला पहला विद्यालय था। मेरे एक छात्र ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान दुर्गापुर से इंजीनियरिंग किया है। इसके अलावा वर्ष 2012 में 70 बच्चे राष्ट्रीय आयसह मेधा के तहत पास हुए।
बेहतर शैक्षणिक वातावरण बनाये रखने के लिए 2010 में 26 जनवरी एवं शिक्षक दिवस के दिन मुझे तीन बार कलेक्टर द्वारा सम्मानित किया गया, उस समय मैं एक सहायक शिक्षक ही था। इसके बाद भारत की तरफ से वर्ष 2010 के आस–पास मुझे शिक्षाविद के तौर पर सम्मानित किया गया।
4) इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्तिथियाँ सामने आयी? इनका समाधान कैसे हुआ ? क्या आप अपने अनुभव से इसके उदाहरण दे सकते हैं?
जिस समय मैं इस विद्यालय में आया था, उस समय विद्यालय में चारदिवारी पूरी नहीं थी। शिक्षकों की कमी एक बड़ी चुनौती थी। हम सभी शिक्षक रूटीन के अनुसार अनुशासन बना कर कक्ष वर्ग चलाते थे। अध्यापक गाँव में जाकर समुदाय से मिलकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रचार–प्रसार करते थे, ताकि बच्चों की नियमित उपस्थिति बनी रहे। जब शाम को विद्यालय बंद हो जाता था तो गाँव के कुछ शरारती तत्व विद्यालय की दीवार पर अनाप–शनाप लिख देते थे। गाँव के बड़े–बुजुर्ग ताश खेलने लगते थे बल्कि और तो और लंच के समय नहाना, कपड़ा धोना इत्यादि कार्य भी वहीं करते थे। यह सब देखकर मुझे बहुत गुस्सा आता था और लोगों को अपनी तरफ से समझाने की कोशिश करता था। तब मैंने विद्यालय प्रबंधन समिति के सहयोग से इन सभी चीजों पर नियंत्रण करने की कोशिश की तथा साथ ही स्कूल की चारदीवारी का कार्य भी पूरा करवा दिया। इसके बाद स्कूल में शरारती तत्वों का दखल बंद हुआ।
5) बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं?
2001 से 2011 के बीच स्पीड कार्यक्रम और सर्व शिक्षा अभियान के तहत मैंने जिला में “योजना और बजट” बनाने का काम किया है। वर्ष 2008 से 2010 के समय नालंदा जिले में उन्नयन केंद्र खुला, जिसमें अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों को पढ़ाया जाता था जिसके लिए बजट अलग से आता था। लेकिन मेरे विद्यालय में जितना नामांकन था, उसके 50 प्रतिशत बच्चे भी उपस्थित नहीं होते थे। जिला के पदाधिकारी दबाव डालते थे कि आप शत-प्रतिशत उपस्थिति बनाये रखें ताकि नामांकन के अनुसार पूरी राशि मिल सके। केंद्र में बच्चों की जितनी उपस्थिति रहती थी, मैं उसी अनुसार हाज़िरी बनाता था। केंद्र मेरे यहाँ चलता था, अत: जो वास्तविक आंकड़े होते थे मैं उन्हें ही प्रस्तुत करता था। इस वजह से मेरे ऊपर शिकायत की गई, मुझे सुनवाई के लिए लोक शिकायत केंद्र जाना पड़ा। इससे भी उनका मन नहीं माना तो लोगों से कह कर अनुसूचित थाने में मेरा शिकायत किया गया कि यह अनुसूचित जाति के बच्चों को प्रताड़ित करते हैं जिस वजह से मुझे थाने में जाकर पेश होना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद भी मैंने जिला पदाधिकारी के कहने के अनुसार कुछ भी नहीं किया। जब उन्नयन केंद्र बंद हुआ पहला और आखरी केंद्र मेरा विद्यालय ही था, मेरे विद्यालय से 95,000 हजार रुपए जिला को वापस किये गए। मैं 4 कक्षायें लेता हूँ इसलिए हमेशा यही कोशिश रहती है कि गैर शिक्षण कार्यों की वजह से बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो।
6) अपने काम के किस पहलू से आपको अधिक ख़ुशी मिलती है?
बच्चों के बीच रहकर शिक्षण कार्य करना मुझे अच्छा लगता है। पिछले साल से कोरोना महामारी के कारण विद्यालय बंद होने की वजह से प्रतिदिन 50-50 सेट के गणित तथा विज्ञान के सवाल बनाते थे । अगर बच्चों को कहीं भी दिक्कत आई हमने उन्हें सरल तरीके से समझाने की कोशिश करते हैं। यही व्यवस्था इस वर्ष भी हमने जारी रखी है ताकि बच्चे अधिक से अधिक सीख पाएं। बच्चों के साथ रहने, उनके साथ बात करने तथा पढ़ाने में जो ख़ुशी मिलती है, वह कहीं नहीं मिलती।
7) i) आपके अनुसार अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी गुण
अधिकारी संवेदनशील, कर्तव्यपरायण, और दूरदर्शी होना चाहिए।
ii) काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी जिसमें आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो
शिक्षण, सीखने और सिखाने में सबसे अधिक आनंद आता है।
iii) अपने क्षेत्र में कोई ऐसा काम जो आप करना चाहते हो मगर संरचनात्मक या संसाधन की सीमाएँ आपको रोक देती हैं-
ऐसा कोई कार्य नहीं जो मुझे रोकता है। विभाग की ओर से जो संसाधन मिले हैं, उसी दायरे में रहकर कार्य करता हूँ। मुझे जो चीज़ बच्चों की भलाई के लिए ज़रूरी लगती है, वह मैं ज़रूर कर लेता हूँ। समस्या देखेंगे तो बहुत हैं लेकिन बस कोशिश यही रहती है कि उनका समाधान खोजा जाये।