प्रशासन के सितारे- अशोक राजौरिया

‘प्रशासन के सितारे’ सेक्शन में आईये आपको मध्य प्रदेश के अशोक राजौरिया जी से मिलवाते हैं जो शिक्षा में निरंतर नवाचार के माध्यम से बच्चों को बेहतर शिक्षा देने का प्रयास कर रहे हैं!

1) आप अभी किस विभाग में और किस पद पर काम कर रहे हैं? आपके मुख्य कार्य क्या हैं

मैं अशोक राजौरिया माध्यमिक शिक्षक तथा प्रभारी प्रधानाध्यापक के पद पर वर्ष 2007 से शासकीय माध्यमिक शाला मढपिपरिया, विकासखंड देवरी, जिला सागर, मध्यप्रदेश में पदस्थ हूँ। मेरा मुख्य कार्य, शाला में नामांकित बच्चों को पूर्ण लगन, ईमानदारी, सच्ची निष्ठा, मनोभाव तथा नवाचारी तरीके से शिक्षा प्रदान करना है, जिससे उनका चहुंमुखी विकास हो। मैं शाला का प्रभारी प्रधानाध्यापक हूँ इसलिए शाला का सफल संचालन करना भी मेरा परम दायित्व है। मैं पिछले 14 वर्षों से बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने का नियमित प्रयास कर रहा हूँ। मैंने अपने प्रबंधन तथा जनसहयोग से शाला को एक आदर्श शाला के रूप में विकसित करने का एक सफल प्रयास किया है।  

 2) अभी तक के सफर में सरकार से जुड़कर काम करने का अनुभव कैसा रहा है?           

सरकार के साथ मेरा अनुभव बहुत ही सुखद रहा है। मुझे जनशिक्षा केन्द्र, संकुल केन्द्र, जिला, संभाग एवं राज्य स्तर के सभी आदरणीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों का अति सराहनीय सहयोग मिला है। शाला के बच्चों को नवाचारी तरीके से गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने से बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त कर रहे हैं। मैंने हमेशा ही अपने कार्य को पूरी लग्न एवं ईमानदारी से किया है अतः मेरी सेवाओं से प्रभावित होकर सरकार द्वारा मुझे अनेकों सम्मान भी प्राप्त हुए हैं। 

3) करियर में अभी तक की क्या बड़ी सफलताएं रहीं हैं? एक या दो के बारे में बताईये?  

5 सितंबर 2018 को महामहिम राज्यपाल महोदया श्रीमति आनंदी बेन पटेल जी के कर कमलों द्वारा मुझे राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान एवं विज्ञान के क्षेत्र में बच्चों की उपलब्धियों एवं नवाचार के कारण राज्य स्तरीय विज्ञान शिक्षक नवाचारी का प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के द्वारा मुझे मार्गदर्शी शिक्षक प्रमाण पत्र तथा मेरी पदस्थ शाला को राज्य स्तरीय वॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया। मुझे भारत सरकार के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के द्वारा तथा राज्य विज्ञान केन्द्र भोपाल द्वारा भी पुरस्कृत किया गया। साथ ही मेरी शाला को विकासखंड, जिला,राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता के क्षेत्र में भी पुरस्कृत किया गया है।

इसी प्रकार से मुझे 24 जिला स्तरीय शिक्षक संगोष्ठी में माननीय कलेक्टर महोदय जी के द्वारा प्रशस्ति पत्र एवं पुरस्कार प्राप्त हुआ। इन सबके अलावा और भी बहुत सी उपलब्धियां रही हैं, जो मुझे मेरे काम में एक नई उर्जा एवं नये उत्साह के साथ शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करने की अभिप्रेरणा देते हैं।     

4) इन सफलताओं के रास्ते में क्या कुछ अनोखी मुश्किलें या परिस्तिथियाँ सामने आयीं? इनका समाधान कैसे हुआ? क्या आप अपने अनुभव से इसके उदाहरण दे सकते हैं?

मेरी जब 2007 में शासकीय माध्यमिक शाला मढपिपरिया में नियुक्ति हुई। उस समय शाला की नामांकन संख्या मात्र 12 थी तथा शिक्षा के प्रति गाँववासियों की रूचि ना के बराबर थी। मैंने लगातार शाला के बच्चों के साथ परिश्रम करते हुए उनके शैक्षिक स्तर को बढ़ाया। सतत जनसंपर्क करके शिक्षा के महत्व को समझाते हुए मैंने गाँववासियों को तथा पास के आदिवासी बहुल जनसंख्या वाले गाँववासियों का विश्वास प्राप्त किया।  प्राथमिक शाला भवन तथा जगह के अभाव में बच्चों को पेड़ के नीचे या किसी के घर पर जाकर पढ़ाया। कुछ समय के बाद शासन से शाला भवन प्राप्त हुआ लेकिन बावजूद इसके फिर भी बहुत सी सुविधाओं का अभी भी अभाव था। 

अतः मेरे लगातार संपर्क एवं अनुरोध पर जनसहयोग से विद्यालय में दो एकड़ परिसर में लोहे के गेट सहित तार फेसिंग हुई, जिससे शाला परिसर सुरक्षित हुआ। मेरी माँग पर आदरणीय श्री राहुल पांडे जी मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा स्वयं के वेतन से एल ई डी टी.वी. शाला को प्राप्त हुआ, जिससे बच्चों को डिजीटल शिक्षा प्राप्त हो रही है। जनसहयोग से शाला में पानी की अच्छी व्यवस्था उपलब्ध कराई गयी। मैंने बच्चों को विज्ञान शिक्षा हेतु राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान से प्राप्त पच्चीस हजार रुपये की राशि से विद्यालय में एक आधुनिक प्रयोगशाला बनवाई, जिससे बच्चे प्रयोगशाला के माध्यम से विज्ञान शिक्षा ग्रहण कर राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त कर रहे हैं। 

कोरोना काल में आदिवासी अंचल के बच्चों को पढ़ाई हेतु मोहल्ला कक्षा में एल ई डी टी.वी. के माध्यम से शिक्षा उपलब्ध कराई तथा जिन बच्चों के पास मोबाइल नहीं थे, उनके घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाया गया। गाँव के नवयुवकों को अभिप्रेरणा देकर उनको मोहल्ला प्रमुख बनाकर उनके माध्यम से बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़कर रखा तथा आनलाईन कक्षा एवं चलित पुस्तकालय व मोटरसाईकिल पर बोर्ड के माध्यम से बच्चों को लगातार शिक्षा प्रदान की है।  

 5) बेहतर शासन और सेवा वितरण में आप अपना योगदान किस प्रकार देखते हैं?         

एक शिक्षक का कर्तव्य होता है कि वह अपने शिष्यों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा देकर बच्चों का चहुंमुखी विकास कर उन्हें एक प्रतिभावान नागरिक बनाये। मैं अपनी सच्ची लगन एवं ईमानदारी से एक शिक्षक के कर्तव्य को पूरा करते हुए, बच्चों को गुणवत्तायुक्त तथा संस्कारी शिक्षा देने का सफल प्रयास कर रहा हूँ। जिसके फलस्वरूप, मेरे बच्चे हर क्षेत्र में राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचकर मुझे गौरवान्वित कर रहे हैं तथा मुझे एक सुखद अनुभूति प्रदान कर रहे हैं। मेरा ये प्रयास आगे भी निरंतर ऐसे ही जारी रहेगा।

6) अपने काम के किस पहलु से आपको ज्यादा ख़ुशी मिलती है                               

शिक्षक का आईना उसके विद्यार्थी होते हैं तथा उसकी सबसे बड़ी पूंजी विद्यार्थियों की सफलता होती है। मुझे सबसे ज्यादा खुशी तब होती है, जब मेरे विद्यार्थी सफलता प्राप्त करते हैं। मेरे विद्यार्थी विज्ञान, चित्रकला, निबंध एवं कहानी प्रतियोगिता, खेल संस्कृति एवं ज्ञान प्रतियोगिता, आदि क्षेत्रों में राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त कर मुझे गौरवान्वित कर रहे हैं। मुझे शिक्षा के क्षेत्र से बहुत लगाव है तथा मैं एक अबोध विद्यार्थी को जब एक सफल प्रतिभावान संस्कारित इंसान के रूप में बनते देखता हूँ तो मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है। 

 7) i) अच्छे अधिकारी के 3 ज़रूरी गुण                                                                

  • जिस पद पर कायर्रत हो, उस कार्य को पूर्ण निष्ठा ईमानदारी, लग्न मनोभाव, मेहनत से पूरा करे।
  • अपने कार्य के प्रति पूर्ण अनुशासन रखे।  
  • अपने पद के अनुरूप लोगों से सरल, सहज, मिलनसार, सहयोगी भाव रखे एवं मधुर वाणी का प्रयोग करें। मैं एक शिक्षक हूँ, अतः इस नाते मेरा परम कर्तव्य बच्चों को बिना भय के आनंददायक अधिगम प्रदान कराना है।

ii) काम से सम्बंधित वह ज़िम्मेदारी जिसमें आपको सबसे ज़्यादा मज़ा आता हो?

बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा को सरल तरीके तथा खेल-खेल के माध्यम से पढ़ाने में मुझे सबसे ज्यादा मजा आता है। जो बच्चे ज्यादा कमज़ोर होते हैं, मैं उनसे दोस्ती कर अति सरल सहज भाव से आनंददायी तरीके से शिक्षा देता हूँ। जिससे वो बिना डर के बाकी बच्चों के साथ सीखना शुरू करें। मैं प्रभारी प्रधानाध्यापक हूँ, इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि शाला के बच्चों को हर सुविधा दे सकूँ जिससे वो शिक्षा के हर क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त कर सकें। शाला में सभी प्रकार की शैक्षिक गतिविधियों का आयोजन करने में मुझे बहुत ज्यादा मज़ा आता है।

 iii) अपने क्षेत्र में कोई ऐसा काम जो आप करना चाहते हो मगर संरचनात्मक या संसाधन की सीमाएँ आपको रोक देती हैं

मेरे पदस्थ विद्यालय में मैने स्वयं तथा जनसहयोग व शासन के सहयोग से सारी सुविधायें बच्चों को प्रदान करने की सफल कोशिश की है। मगर अभी भी शाला के बच्चों को कप्यूटर शिक्षा प्रदान करने में असमर्थ हूँ। शासन के द्वारा कंप्यूटर क्रय हेतु राशि का अभाव होने से मेरी शाला के बच्चे कंप्यूटर शिक्षा से वंचित हैं। बच्चों को बैठने हेतु फर्नीचर का अभाव है। मेरे विद्यालय में मैं अकेला शिक्षक हूँ, शासन को हर विद्यालय में नामांकित बच्चों की संख्या के अनुरूप शिक्षकों की पूर्ति करनी चाहिए तथा हर विद्यालय में एक चपरासी का पद जरूर स्वीकृत करना चाहिए। शिक्षक को केवल शैक्षिक कार्य करना चाहिए, अन्य विभाग के कार्यों में संलग्न नहीं करना चाहिए। हर विद्यालय में सभी सुविधायें निजी विद्यालयों जैसी विकसित की जानी चाहिए।