परिवारों में शिक्षा खर्च के मामलों में लड़कों को प्राथमिकता

स्कूली शिक्षा में लैंगिक अंतर को दूर करने के लिए भारत ने एक लम्बा सफर तय किया है| लड़के और लड़कियाँ दोनों अब पहले की तुलना में अधिक स्कूल जाते है (2017-18 में प्राथमिक स्कूल में भाग लेने वाले बच्चों की हिस्सेदारी – लड़कों के लिए 87 प्रतिशत और लड़कियों के लिए 85 प्रतिशत थी)| हालांकि नामांकन के अलावा भी एक बच्चे की शिक्षा से संबंधित कई निर्णय हैं जो उनके परिवारों द्वारा लिए जाते हैं, और यहीं शिक्षा पर खर्च करने का पैटर्न निराशाजनक है| आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, लड़कों को आज भी लड़कियों की तुलना में प्राथमिकता दी जाती है|

नवीनतम NSS सर्वेक्षण के विश्लेषण से पता चलता है कि – शिक्षा पर औसत वार्षिक निवेश और स्कूल के प्रकार दोनों के ही संदर्भ में – परिवारों के खर्च के फैसले इस प्राथमिकता को दर्शाते हैं| एक बच्चे की शिक्षा पर परिवार द्वारा किया गया औसत व्यय स्कूली शिक्षा के हर स्तर पर (प्राथमिक से लेकर उच्च-माध्यमिक ग्रेड तक) लड़कों के लिए अधिक था| उदाहरण के लिए, वार्षिक खर्च में लड़के-लड़कियों का अंतर प्राथमिक स्तर पर लगभग रु 770 था, जबकि उच्च माध्यमिक में यह बढ़कर रू 2,860 हो गया, जिसका अर्थ है कि यह असमानता शिक्षा के उच्च स्तर के साथ बढ़ती जाती है|

शिक्षा खर्च को लेकर लैंगिक असमानता परिवारों द्वारा किए गये स्कूल के चयन में भी स्पष्ट दिखाई देती है| प्राथमिक और माध्यमिक दोनों स्तरों में, लड़कों की हिस्सेदारी निजी स्कूलों/संस्थानों में अपेक्षाकृत अधिक है| प्राथमिक स्तर पर निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 30 प्रतिशत लड़कों की तुलना में लड़कियों की हिस्सेदारी 27 प्रतिशत है| उच्च माध्यमिक स्तर पर, निजी स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत है जबकि लड़कों की 28 प्रतिशत|

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परिवारों द्वारा निजी स्कूलों को बहुत से कारणों की वजह से अधिक पसंद किया जाता है, जैसा कि NSS सर्वेक्षण द्वारा भी पता चला है| इन कारणों में उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा की धारणा, सरकारी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता पर असंतोष, निजी संस्थानों में विभिन्न सुविधाओं की उपलब्धता और अंग्रेजी पढ़ाने और सीखने का अवसर शामिल हैं| इसीलिए यह लैंगिक अंतर, लड़कियों की तुलना में लड़कों को बेहतर गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध कराने की परिवारों की इच्छा को दर्शाता है | इसके अलावा, एक ही प्रकार के संस्थान (सार्वजनिक या निजी स्कूल) के भीतर भी, कई बार घरों में लड़के के लिए ज़्यादा धनराशि रखते हैं|

ध्यान देने पर विभिन्न समूहों में लैंगिक असमानता की सीमा का भी पता चलता है| ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में और आर्थिक रूप से बेहतर परिवारों में लिंग असमानता कम है| एक अध्ययन के अनुसार भारत के सभी प्रमुख राज्यों में स्कूली शिक्षा के खर्च में भेदभाव प्रचलित है| भेदभावपूर्ण व्यवहार परिवार के आकार और बच्चे के बढ़ने के साथ बढ़ता है| माता-पिता जितना अधिक शिक्षित होते हैं, भेदभाव की संभावना उतनी ही कम होती है| लड़कों को शिक्षित करने के लिए दी गई प्राथमिकता का अर्थ है कि अन्य बच्चों के लिए अवसर सीमित रहें| लिंग और पहचान का ख्याल किये बिना सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के महत्व पर लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है|