पंचायत में होने वाले कार्य एवं उनकी चुनौतियां

भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है तथा हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने भी कहा था कि “सच्ची लोकशाही केंद्र में बैठे 20 आदमी नहीं चला सकते, वह तो ज़मीनी स्तर से गाँव के लोगों द्वारा चलाई जानी चाहिए”। उनका यह कथन आज भी सार्थक होते हुए दिखाई पड़ता है।
देश में 73वें संवैधानिक संशोधन के पश्चात त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए 27 वर्ष हो चुके हैं लेकिन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी पंचायती राज व्यवस्था में कई तरह की चुनौतियां देखने को मिलती हैं।
संवैधानिक तौर पर बिहार, असम और मध्यप्रदेश में वर्ष में 4 बार तथा गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्य में 2 बार ग्राम सभा आयोजित करने का प्रावधान है। मध्यप्रदेश में ग्राम सभा, पंचायत सचिव द्वारा बुलाई जाती है, वहीं बिहार में ग्राम सभा की सूचना 15 दिन पहले नोटिस चिपकाकर, डुगडुगी बजाकर, व्यक्तिगत सम्पर्क के आधार पर दिए जाने का प्रावधान है। इसके साथ ही विकेंद्रीकरण सूचकांक के आंकड़ों/रिपोर्ट के अनुसार बिहार में केवल 0.7% ग्राम पंचायतें ही कर वसूलती हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में 18.4% और उड़ीसा में 54.5% पंचायतें कर वसूलती हैं| ऐसा नहीं है कि बिहार के पास कर वसूलने का अधिकार नहीं हैं, बिहार में सिर्फ 9.5% ग्राम पंचायतें कर लगाने के बारे में जानती हैं और इसका कारण यह भी है कि प्रधानों और ग्राम पंचायत सदस्यों में इच्छाशक्ति और पहल की कमी होती है। चलिए आगे पंचायत में होने वाले कार्यों एवं चुनौतियों पर विस्तार से बात करते हैं:

पंचायतों में विभिन्न स्रोतों से पैसा आता है जिसमें से कुछ पैसा बंधे हुए एवं कुछ खुले रूप में खर्च किये जाने का प्रवाधान किया गया है। यह पैसा केन्द्रीय वित्त आयोग, राज्य वित्त आयोग अनुदान, मनरेगा योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना, प्रधानमंत्री सड़क योजना, पेंशन योजना आदि स्रोतों के माध्यम से पंचायतों के पास आता है। यह योजनाएं लगभग सभी राज्यों में चलती हैं। इसके अलावा बिहार में 2015 में मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना की शुरूआत हुई – हर घर नल जल योजना, पक्की नाली–गली योजना, विद्युतीकरण योजना, हर घर शौचालय, हर गाँव तक सड़क और महिला रोजगार योजना के तहत राशि पंचायतों को उपलब्ध कराई जाती है। कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य महिला बाल विकास तथा सामाजिक अधिकारिता विभाग की योजनाओं की राशि से पंचायत में एकीकृत विकास करने का प्रावधान है जिसके लिए पंचायत ही जवाबदेह होती है, परन्तु अभी के समय में ग्राम पंचायत की योजनाओं के क्रियान्वयन में काफी समस्याएं और चुनौतियाँ हैं जो इस प्रकार से हैं:

विकास गतिविधि–योजना और बजट- ज़्यादातर निर्माण सम्बंधित गतिविधियां ग्राम पंचायत द्वारा ही की जाती हैं लेकिन देखने को मिलता है कि इनमें आम लोगों की भागीदारी के लिए बढ़ावा नहीं दिया जाता है। आमतौर पर ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्यों में इच्छाशक्ति और पहल की कमी देखने को मिलती है जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका जैसे अन्य आवश्यक विकासात्मक गतिविधियों से निपटने के लिए कोई योजना नहीं बनाते हैं, बल्कि सड़क, वाटरशेड से सम्बन्धित कार्यक्रमों पर ही अधिक ज़ोर देते हैं।

कर्मचारियों का अभाव– पंचायतें, संवैधानिक तौर पर सरकार के रूप में अपने क्षेत्र के लोगों के लिए जवाबदेह होती हैं। ऐसे में जरुरी है कि उनके पास अपने कार्यो के निष्पादन हेतु पर्याप्त संख्या में कर्मचारी हों। कर्मचारियों का अभाव एक बड़ी समस्या रही है। ग्राम पंचायत के लिए कर्मचारियों की आदर्श व्यवस्था किस तरह की हो, इसका निदान पंचायती राज मंत्रालय के अखिल भारतीय सन्दर्भ में तैयार किये गए रोडमैप में सुझाया गया है। लेकिन आमतौर पर बिहार एंव झारखंड में पंचायत सचिवों की घोर कमी है जिससे पंचायतों का काम समय से संपादित नहीं हो पाता।

क्षमता एवं प्रशिक्षण का अभाव– धनप्रवाह में देरी, भूमिकाओं की समझ का अभाव और निर्वाचित प्रतिनिधियों की जिम्मेदारियां अधिकारीयों पर भारी पड़ती हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रशिक्षण की कमी, अशिक्षा जैसे कई कारणों से पंचायत की योजना एवं कार्य सही तरीके से नहीं चल पाते हैं। दृष्टि फाउंडेशन के एक अध्ययन में बताया गया है कि बिहार में 72.2 % पंचायत प्रतिनिधियों को किसी तरह का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है और जिन लोगों को यह प्रशिक्षण मिला भी है, उन्हें भी सिर्फ केन्द्रीय योजनाओं पर ही दिया गया है। 86.3% पंचायतों ने कहा की उन्हें भविष्य में प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इन सब के अभावों के कारण पंचायत के कार्यों और योजनाओं में ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन में चुनौतियां पेश आती हैं तथा इससे लाभार्थियों को योजना का लाभ समय से नहीं मिल पाता।

लोगों की भागीदारी का अभाव– महिलाओं, एससी/ एसटी जैसे पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व, केवल कागज़ों पर ही देखने को मिलता है। विभिन्न जातियों समूहों एवं गुटबाजी के कारण पंचायतों के कामकाज में बाधा रहती है। आज भी महिलाओं को प्रधान या पंचायत सदस्य के रूप में भले ही चुना जाता है लेकिन उनके फैसले आमतौर पर पुरुष ही लेते हैं। इन सब चुनौतियों के कारण योजनाओं के कार्य और क्रियान्वयन में दिक्कतें पेश आती हैं। इन सब चुनौतियों और समस्याओं को दूर करने के लिए पंचायतों के हितधारकों की क्षमता निर्माण की ज़रुरत है। इसके लिए पंचायत स्तर पर बौटम टू –अप अप्रोच होनी चाहिए जिसके तहत पंचायत के सदस्यों के कौशल और ज्ञान निर्माण के लिए पार्टनरशिप, सामुदायिक आयोजन किये जाने चाहिए जिसमें सदस्यों की अधिक से अधिक भागीदारी हो।
कुछ ऐसे समाधान हैं जिनके द्वारा पंचायतें बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं:
– स्थानीय शासन व विकास नियोजन में जन भागीदारी बढ़ाने व ग्राम सभाओं को सक्रिय बनाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
– नागरिक सेवाओं की बेहतर उपलब्धता हेतू पंचायतों की जवाबदेही को अधिक बढ़ाना आवश्यक है।
– विभिन्न स्तरों से धन आवंटन और व्यय में जरूरत के अनुसार उपयोग हेतु सुधार किया जाना चाहिए।
– समुदाय/ग्राम सभा के प्रति पंचायतें अधिक पारदर्शी व् जवाबदेह बनें, इसके लिए समय-समय पर सामाजिक अंकेक्षण एवं पंचायत लेखांकन के संदर्भ में नियमित रूप से बल दिया जाना चाहिए और साथ में सूचना के अधिकार अधिनियम के बारे में भी जानकारी होना आवश्यक है।
– समय-समय पर ग्राम पंचायतों के लोगों की क्षमता व विकास हो ताकि एक सक्षम वातावरण बने।
– निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में आम लोगों की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी होनी चाहिए।

देश की 70% आबादी गांवों में रहती है इसलिए पंचायती राज व्यवस्था को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। पंचायती राज व ग्राम सभा की वास्तविक संभावना का उपयोग अभी तक सही से नहीं हो पा रहा है। अतः ग्राम सभा को मज़बूत बनाए बिना गांधी जी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार नहीं किया जा सकता है। पंचायती राज व्यवस्था में संवैधानिक तब्दीलियों के साथ–साथ आम लोगों को भी जागरूक होने की बेहद ज़रुरत है, तभी पंचायतों में कार्यों और योजनाओं को सही तरह से क्रियान्वयन करके गाँव के हर एक व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ मिल पाएगा।