क्या डिजिटल शिक्षा के लिए हम तैयार हैं?
शिक्षा एक संवेदनशील विषय है इसलिए बच्चे के जन्म से लेकर आगे तक की शिक्षा के लिए उसका परिवार, समाज, आंगनवाड़ी, स्कूल आदि अपनी अहम भूमिका निभाते हैं| भारतीय संविधान में शिक्षा का अधिकार कानून के अनुसार, छ: वर्ष से चौदह वर्ष के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है|
पिछले वर्ष कोरोना महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार द्वारा पूरे देश में सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया तथा बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने के लिए ऑनलाइन शिक्षा की पहल शुरू की गई| अगर महाराष्ट्र राज्य की बात की जाए तो यहाँ पर भी बच्चों की शिक्षा के लिए अलग-अलग कार्यक्रम शुरू किये गए| कोरोना महामारी व लॉकडाउन की वजह से राज्य सरकार ने बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई हेतु टी.वी, रेडियो प्रोग्राम, वाट्सएप्प, एस.एम.एस., ई-पाठशाला, दीक्षा वेब पोर्टल इत्यादि माध्यमों से करने के आदेश दिए गए ताकि बच्चों की पढ़ाई किसी भी वजह से बाधित न हो| लेकिन सवाल यह था कि कितने अभिभावक इस ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार रहे हैं? और क्या उनके पास अपने बच्चों की शिक्षा के लिए वे सभी संसाधन उपलब्ध हैं, जो ऑनलाइन शिक्षा के लिए जरुरी होते हैं? क्या कक्षा-कक्ष में पढ़ने वाले बच्चे ऑनलाइन शिक्षा के इस बड़े बदलाव के लिए तैयार थे, बल्कि अध्यापक खुद भी इस ऑनलाईन शिक्षा के लिए कितने प्रशिक्षित एवं तैयार थे?
प्रथम संस्था की ओर से किये जाने वाले असर 2020 वेव -1 सर्वेक्षण के तहत महाराष्ट्र के ग्रामीण जिलों के घरों में टेलीफोन का सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिक पढ़े-लिखे माता-पिता की तुलना में कम शिक्षित माता-पिता के पास स्मार्टफोन की उपलब्धता कम थी| अब सवाल यह उठता है कि जिन बच्चों के पास किन्हीं कारणों से भी ऑनलाइन शिक्षा के लिए जरुरी संसाधन नहीं थे, उनकी शिक्षा की भरपाई आखिर कैसे हो?
अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव रिसर्च ग्रुप के वार्षिक बजट ब्रीफ संस्करण समग्र शिक्षा ब्रीफ के अनुसार महाराष्ट्र ने 2020-21 में कुल समग्र शिक्षा बजट में से क्वालिटी इंटरवेंशन के लिए 22 प्रतिशत बजट और आई.सी.टी. और डिजिटल घटकों के लिए मात्र 8 प्रतिशत बजट रखा| अधिकांश राज्यों में महामारी से पहले सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में आई.सी.टी बुनियादी ढांचे की उपलब्धता काफी खराब थी| शैक्षणिक वर्ष 2018-19 में भारत के कुल सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में केवल 28 प्रतिशत के पास कम्प्यूटर और केवल 12 प्रतिशत स्कूलों के पास ही इन्टरनेट कनेक्शन था| वहीं महाराष्ट्र के स्कूलों में 66 प्रतिशत स्कूलों के पास कम्प्यूटर और केवल 24 प्रतिशत स्कूल के पास ही इन्टरनेट कनेक्शन था| इससे मालुम चलता है कि ऑनलाइन शिक्षा की राह अभी इतनी भी आसान नहीं है|
कोरोना काल में ज़मीनी स्तर के प्रयासों को समझने के लिए इनसाइड डिस्ट्रिक्स सीरीज़ के अंतर्गत अकाउंटबिलिटी इनिशिएटिव ग्रुप ने अलग–अलग फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं एवं सरकारी अधिकारियों के साथ फ़ोन के माध्यम से इंटरव्यू किये| इस श्रृंखला में जिला शिक्षा अधिकारी, ब्लॉक अधिकारी व अध्यापकों के साथ भी साक्षात्कार किये गए| इन साक्षात्कारों से निकलकर आया की बच्चों तक ऑनलाइन शिक्षा तो दी जा रही है, लेकिन इसका प्रभाव ऑफलाईन शिक्षा की तरह ठोस कारगर नहीं हो पा रहा है| अधिकारीयों के मुताबिक़ उनकी अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिल रहे हैं तथा यह सुनिश्चित करना काफी कठिन होता है कि बच्चे ध्यानपूर्वक कक्षा में सुन रहे हैं या नहीं, विशेष रूप से प्राईमरी कक्षा के बच्चों के लिए जहाँ अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है|
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस महामारी के दौर में सभी बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने के लिए अलग-अलग प्रयास किये जा रहे हैं| लेकिन संसाधनों का अभाव, अध्यापकों को डिजिटल उपकरणों के माध्यम से पढ़ाने का प्रशिक्षण न मिलना, बच्चों की निगरानी में कमी, ये कुछ ऐसे कारण हैं जो डिजिटल शिक्षा को पहुँचाने में अभी चुनौतीपूर्ण हैं| अतः अभी तक हुए विभिन्न शोध अध्ययनों के माध्यम से यह प्रतीत होता है कि डिजिटल शिक्षा को हर स्तर तक पहुँचाने के लिए अभी लम्बा सफर तय करना बाकी है|