कोविड-19 में जन वितरण प्रणाली की भूमिका

जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) सरकार द्वारा संचालित योजना है, जिसके माध्यम से गरीब वर्ग के परिवारों को बाज़ार से कम कीमत पर खाद्य पदार्थ जैसे गेहूं, चावल, दाल आदि उपलब्ध कराया जाता है। इसका संचालन केंद्रीय सरकार व राज्य सरकार द्वारा मिलकर किया जाता है, जहाँ केंद्र सरकार राशन मुहैया कराती है, वहीं राज्य सरकार राशन का वितरण सरकारी दुकान द्वारा सुनिश्चित करती है। 

यह योजना 1960 के  दशक से शुरू की गयी थी, सबसे पहले इस योजना को सरकार द्वारा भारत के ग्रामीण  क्षेत्र में जहां खाद्य पदार्थ की आपूर्ति बहुत कम थी, वहां कुछ दुकानें खोली गयी जिसे 1992 में  सरकार द्वारा भारत के सभी ग्रामीण व शहरी क्षेत्रो में बड़े पैमाने पर खोला गया। आज भारत के लगभग हर क्षेत्र में यह दुकान आसानी से उपलब्ध है। इन दुकानों को सरकारी दुकान या उचित मूल्य की दूकान भी कहते हैं।

राशन कार्ड:

उपभोक्ताओं को खाद्य सामग्री की आपूर्ति राशन कार्ड द्वारा की जाती है जिसे परिवारों की आर्थिक स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले परिवारों के लिए लाल कार्ड, अन्त्योदय अन्न योजना के परिवारों को पीला कार्ड, अन्नपूर्णा योजना के अंतर्गत आने वाले परिवारों को उजला कार्ड तथा गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को हरा कार्ड उपलब्ध कराया जाता है। 

जन वितरण प्रणाली कैसे काम करती है? 

सरकार द्वारा पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी प्राइस पर किसानों से अनाज, धान, गेंहू व अन्य फसलें खरीदी जाती हैं, जिसे सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा बाज़ार में अपने माध्यम से नागरिकों को उपलब्ध कराती है। अनाज की खरीद, देखभाल व ट्रांसपोर्ट कार्य केंद्रीय सरकार द्वारा किया जाता है, जिसके आगे का काम राज्य सरकारों द्वारा अपने क्षेत्र के अनुरूप क्या जाता है । अब राज्य सरकार लाइसेंस विधि से कोटेदार को चयनित किया जाता है जोकि उस सरकारी दूकान को संचालित करता है तथा उसी क्षेत्र का होना चाहिए, कोटेदार के सारे मानक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाते है जिसमें शिकायत निवारण भी समाहित है।

बिहार में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के कार्यान्वयन की व्यवस्था 

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत खाद्यान्नों का वितरण जन वितरण प्रणाली के दुकानों के नेटवर्क के ज़रिये किया जाता है। 2011 की जनसंख्या के आधार पर बिहार में जन वितरण प्रणाली के कुल 56,921 दुकानों की आवश्यकता मानी गई है। राज्य सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2018 तक लगभग 42,520 डीलर कार्यरत थे, यानी आज की तारीख में जन वितरण प्रणाली के एक औसत वितरक के पास हर माह लगभग 2000 लाभुकों तक खाद्य सुरक्षा योजनाओं का लाभ पहुँचाने की ज़िम्मेदारी है।  राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के नियमित प्रावधानों के अतिरिक्त हर लाभुक को तीन महीनों के लिए प्रति व्यक्ति 5 किलाग्राम मुफ्त खाद्यान्न तथा प्रति परिवार 1 किलाग्राम मुफ्त दाल दिये जाने की घोषणा की गई।  

चुनौतियाँ: यूँ तो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत चिह्नित प्राथमिकता-प्राप्त परिवारों तथा अन्त्योदय अन्न योजना के लाभुकों के नाम पर निर्धारित आवंटन हर महीने उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन लगभग हर विक्रेता के वितरण क्षेत्र में ऐसे कई लाभुक परिवार होते हैं जिन्हें यह जानकारी नहीं होती कि उनका कार्ड बना हुआ है और उनके नाम से नियमित आवंटन भी आता है। इसके अलावा कभी-कभी डीलरों के पास भी सभी लाभुक परिवारों की पहचान न होना, एक ही नाम कई बार दर्ज़ होना, बिना आधार सीडिंग वाले राशन कार्डों का होना तथा साथ ही कई लाभुकों की आँखों की पुतलियों या उंगलियों के निशानों का प्रणाली में दर्ज़ डाटा से मिलान नहीं हो पाने आदि समस्याओं की वजह से लाभार्थी अपने कोटे के राशन का उठाव नहीं कर पाते। 

महामारी में जन वितरण प्रणाली की भूमिका : 

कोविड-19 संकट के बीच प्रवासी मजदूरों का पलायन बड़े स्तर पर देखने को मिला। हालांकि ऐसे संकट में सरकार की दो प्रमुख नीतियों का विशेष योगदान रहा पहला ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ और दूसरा ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ सार्वजनिक वितरण प्रणाली ने हर गांव-हर घर तक अनाज की उपलब्धता को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है भारत का सार्वजनिक वितरण प्रणाली नेटवर्क दुनिया में सबसे बड़ा है और देश के हर गांव तक मौजूद है

कोविड के समय पीडीएस योजना नागरिकों के लिए इतनी महत्वपूर्ण कैसे हुई है, इसे समझने के लिए हमने कुछ लाभार्थियों से बात की:

श्री दुखा पासवान जी, ऐसे प्रवासी हैं जो वर्षो बाद लॉकडाउन के समय बिहार लौटे थे, उस समय इनके पास राशन कार्ड नहीं था। इनके अनुसार, जब ये अनाज के लिए पास के पीडीएस की दूकान पर गए तो इन्हें अनाज नहीं दिया गया। हालांकि सरकार ने घोषणा की थी कि इस आपदा के समय में ऐसे परिवारों को भी अनाज उपलब्ध कराया जाएगा, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। 

वहीं वीरेंदर साव जी, गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवार के सदस्य हैं। इनके परिवार में 7 सदस्य हैं जिन्हें पीडीएस से अनाज मिलता आ रहा है। जैसा की कोरोना के समय बिहार सरकार ने यह घोषणा की थी की परिवार के सभी सदस्यों को 5 किलो अनाज मुफ्त में दो माह मई और जून में दिया जायेगा परन्तु इनके कथानुसार सिर्फ मई महीने का अनाज ही मुफ्त मिला। 

इसमें कोई संदेह नहीं की जन वितरण प्रणाली कोविड के इस संकट में भी लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई है। वहीं इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि सरकार को इसकी चयन प्रक्रिया एवं लाभार्थियों तक इसकी पहुँच को सरल बनाया जाना चाहिए ताकि नागरिक इसका लाभ आसानी से उठा पाएं।