कहीं शिक्षा, प्रयोग का विषय न बनकर रह जाए….

शिक्षा समाज के लिए हमेशा ही किसी न किसी रूप में चर्चा का संजीदा विषय रहा है| हर कोई चाहता है कि परिवार, समाज शिक्षित हो ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने विवेक से आसपास हो रही गतिविधियों पर मूल्यांकन करते हुए ठोस चर्चा कर पाए| 

शिक्षा सप्ताह के अंतर्गत विश्व साक्षरता दिवस के बारे में चर्चा करना बेहद ज़रूरी है जबकि हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने हम सभी के जीवन को हर तरह से प्रभावित कर दिया है| जैसा की हम सभी जानते हैं कि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है तो इस नाते शिक्षा सुनिश्चित करना तथा उसमें समय-समय पर सुधार करना केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी में भी शामिल होता है| 

लेकिन क्या वास्तव में शिक्षा के परिणाम अपेक्षाकृत सकारात्मक हैं? 

अभी हाल ही में राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे (एनएसओ) कार्यालय की ओर से 75वीं दौर की रिपोर्ट ‘हाउसहोल्ड सोशल कंजम्पशन: एजुकेशन इन इंडिया’ जारी की गयी। जुलाई 2017 से जून 2018 के आंकड़ों के आधार पर पेश यह रिपोर्ट सात या सात वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के मध्य राज्यवार साक्षरता दर के बारे में बताती है। सर्वेक्षण के अनुसार देश की साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है। देश के ग्रामीण इलाकों की साक्षरता दर जहाँ 73.5 प्रतिशत है वहीं शहरी इलाकों में यह दर 87.7 प्रतिशत है।

इस अध्ययन के अनुसार केरल की साक्षरता दर 96.2 प्रतिशत के साथ पहले पायदान पर रही है जबकि आंध्र प्रदेश 66.4 प्रतिशत के साथ सबसे निचले स्थान पर रहा है। 

महिला साक्षरता अभी भी एक बड़ी चुनौती

रिपोर्ट बताती है कि देश में पुरुष साक्षरता दर महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा बेहतर है जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 प्रतिशत जबकि वहीं महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 प्रतिशत ही है। केरल में 97.4% पुरुष और 95.2% महिलाएं साक्षर हैं। वहीं दिल्ली में 93.7% पुरुष और 82.4% महिलाएं साक्षर हैं। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर बड़ा कारण है। आंध्र में पुरुष साक्षरता दर 73.5%, महिलाओं की साक्षरता दर 59.5% है। बिहार में पुरुषों की साक्षरता दर 79.7% और महिलाओं का आंकड़ा 60.5% है। राजस्थान में महिलाओं की साक्षरता दर पूरे देश में सबसे न्यूनतम स्थान पर है, यहाँ पुरुषों की साक्षरता दर जहां 80. 8 प्रतिशत है, जबकि वहीं महिलाओं की साक्षरता दर केवल 57.6 प्रतिशत है। 

तो ऐसे में सवाल उठता है कि आबादी का यह एक बड़ा शेष हिस्सा आखिर कब और कैसे साक्षर हो पायेगा?

बच्चों की बुनियादी शिक्षा भी कमज़ोर है

देश की शिक्षा व्यवस्था का आधार स्कूली शिक्षा मानी जाती है। बच्चों के प्रारंभिक ज्ञान की नींव स्कूली शिक्षा होती है। हमारे स्कूलों में हो रही पढ़ाई और उसमें पढ़ने आने वाले बच्चों की स्थिति क्या है? वो कितनी कारगार है और इसमें कितनी सुधार की गुंजाइश है। इसको लेकर शिक्षा की स्थिति पर सर्वे करने वाली संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ की वार्षिक रिपोर्ट ‘असर’ यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा 3 से 5 तक के छात्रों की स्थिति तो कुछ बेहतर है लेकिन कक्षा 8 तक आते-आते उनके प्रदर्शन में गिरावट आनी शुरू हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार आठवीं कक्षा के 56 प्रतिशत बच्चे गणित में काफी पीछे हैं। 14 साल की उम्र के करीब 47 प्रतिशत बच्चे अंग्रेजी के साधारण वाक्य भी नहीं पढ़ सकते हैं। इस आयु वर्ग के 25 फीसदी छात्र ऐसे हैं जो बिना रुके अपनी भाषा भी नहीं पढ़ सकते हैं।

तो आप कल्पना कर सकते हो कि जब बच्चों की बुनियाद ही इस तरह की कच्ची होगी तो आने वाले समय में उन्हें किस तरह की विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा! 

ऑनलाइन शिक्षा की राह भी आसान नहीं है

कोरोना संकट के दौर में बच्चों की सिर्फ़ ऑनलाईन पढ़ाई हो रही है जिनमें बच्चों को समझने से लेकर संसाधनों तक की दिक़्क़तें पेश आ रही हैं। बच्चों के लिए नॉर्मल कक्षाओं की जगह ले रही ऑनलाईन कक्षाओं पर एनसीईआरटी ने एक बड़ा सर्वे कराया जिसमें देश भर से कुल 34,000 स्कूल प्रिंसिपल, टीचर, छात्र और अभिभावकों को जोड़ा गया। इस सर्वे में कई ऐसी बातें सामने आईं हैं जिसमें सरकारी स्तर पर तुरंत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। सर्वे में सामने आया है कि ऑनलाइन कक्षा के लिए कम से कम 27 प्रतिशत छात्रों की स्मार्टफोन या लैपटॉप तक पहुंच ही नहीं है जबकि 28 प्रतिशत छात्र और अभिभावक बिजली की समस्या को एक प्रमुख रूकावट मानते हैं। 

तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि ऑनलाइन शिक्षा में इस तरह की मूलभूत सुविधाओं के अभाव में सभी बच्चों को एक समान शिक्षा कैसे मिल पाएगी? ये जो बच्चे इस दौरान पीछे छूट रहे हैं, उनके नुकसान की भरपाई कैसे हो पाएगी?

नई शिक्षा निति 2020 में सरकार द्वारा विश्वास जताया जा रहा है कि आने वाले वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेंगे| इस सबके लिए बेहद जरुरी है कि शिक्षा को एक नए आयाम पर ले जाने के लिए केंद्र के साथ-साथ राज्यों का बेहतर तालमेल देखने को मिले| उम्मीद करते हैं कि सरकार शिक्षा को एडवांस स्तर पर ले जाने से पहले बच्चों के लिए ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षा के लिए जरुरी मूलभूत संसाधनों को सुनिश्चित कर ले|