आख़िर हम वोट क्यों करते हैं?

बिहार में अभी हाल ही में पंचायती राज चुनाव सम्पन्न हुए हैं। ये चुनाव बिहार निर्वाचन आयोग के द्वारा 11 चरणों में सम्पन्न किये गए, जिनके नतीजे भी सबके सामने आ चुके हैं। इस बार रोचक बात यह रही कि पंचायत चुनाव के नतीजे काफ़ी चौकाने वाले देखने को मिले हैं। देखा गया की जनता ने  इस बार लगभग 80% नये चेहरों के रूप में प्रतिनिधियों को तवज्जो दी है। यानी जितने भी पूर्व प्रतिनिधि थे, उनमें से अधिकांश लोग दुबारा चुनकर पंचायत में नहीं आ पाए जबकि ऐसा पहले देखने को नहीं मिलता था। इसके कई सारे कारण सामने आये हैं लेकिन मैं इन सभी कारणों में नहीं जाऊंगा लेकिन मैं अपना एक व्यक्तिगत अनुभव ज़रूर आपसे साझा करना चाहूँगा। 

नमस्कार! मेरा नाम उदय है और मैं बिहार के गया जिला के रहने वाला हूँ। मेरी पंचायत में 24 नवम्बर 2021 को चुनाव सम्पन्न हुआ। इस बार हमारी पंचायत का परिणाम काफी अलग देखने को मिला। अलग से मेरा अभिप्राय यह है कि हमारे पंचायत के ज्यादातर मतदाता जिस परिणाम की उम्मीद कर रहे थे, उसमें सभी का पूर्वानुमान पूरी तरह से गलत साबित हुआ। इस बार ऐसे जनप्रतिनिधि ने चुनाव में बाजी मारी, जिसका अंदाजा कोई दूर-दूर तक नहीं लगा रहा था। इसका कारण यह था कि जो महिला प्रतिनिधि इस बार चुनाव में विजयी हुईं, वह हमारी पंचायत में नियमित रूप से नहीं रहती तथा अपना ज्यादातर समय शहर में ही व्यतीत करती हैं। यहाँ तक की हमारे कई लोग ऐसे भी थे जो इन्हें पहली बार देख रहे थे। तो इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पंचायत तथा लोगों के साथ उनकी भागीदारी कैसी रहती होगी!   

बहरहाल, इन सभी बातों के बावजूद इन्होने चुनाव जीता और अपने प्रतिद्वंदी जो पूर्व में मुखिया रहे थे, उन्हें काफी वोटो के अंतर से चुनाव हराया। 

इनके चुनाव जीत जाने के बाद पंचायत में यही चर्चा का विषय बना रहा कि आख़िर जो व्यक्ति पंचायत में रहता भी नहीं और न ही जिसका लोगों के साथ किसी तरह का जुड़ाव रहा, तो कैसे कोई अनजान व्यक्ति चुनाव के दौरान आता है और चुनाव जीत ले जाता है। इन सभी बातों पर पंचायत में चर्चा शुरू हो गयी तथा सभी अपने-अपने स्तर पर उनकी जीत के कारण का पता करने लगे। 

हालांकि मेरे सामने अब तस्वीर काफी स्पष्ट हो चुकी थी और यही बात मेरे जैसे कई लोगों के सामने आ चुकी थी। हालांकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है लेकिन इस पर मुझे लगता है कि एक सक्रीय नागरिक होने के नाते हमें बात करना बहुत ज़रूरी है।

 

थोड़ा जांच पड़ताल से मालुम चला कि विजेता महिला प्रतिनिधि एक धनाड्य परिवार से सम्बन्ध रखती हैं। कहा जाता है कि इन्होने एक-एक वोट के लिए हज़ारों रूपये खर्च किये ताकि किसी भी तरह से चुनाव जीता जा सके।

लेकिन मुझे लगता है कि जब ऐसे लोग सत्ता में आ रहे हैं तो फिर हमें खुद से ये सवाल करना बहुत ज़रूरी है कि आख़िर हम वोट करते ही क्यों हैं? अगर चंद रुपयों या किसी के दबाव के कारण हम किसी गलत व्यक्ति को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनते हैं तो इसका अर्थ तो यही है कि जितना गलत वह व्यक्ति है उतनी ही गलती फिर हमारी भी बनती है।

मेरा आपके साथ यह अनुभव साझा करने का मकसद यही था कि ताकि हम यह विश्लेषण कर पाएं कि क्या वोट करते समय हमें ये ध्यान नहीं रखना चाहिए कि हमारा प्रतिनिधि कितना साक्षर हो, मेरे तथा पंचायत के साथ हर सुख-दुःख में कितना खड़ा होगा, मेरी पंचायत में कितना विकास करवा सकता है? क्योंकि वह व्यक्ति हम लोगों में से ही तो होता है और ऐसे व्यक्ति को तो हम व्यक्तिगत रूप से नियमित रूप से मिलते भी रहते ही हैं, तो क्यों न इस तरह के लोगों को आगे आने का मौका दिया जाए। आप शायद इस बात का एहसास कर पाएं कि जो इस तरह के लोग गलत तरीके से सत्ता हासिल करते हैं तो वे निश्चित तौर उसका दुरुपयोग करने में भी पीछे नहीं हटेंगे!

हम नागरिक सिर्फ सरकार को दोषी ठहराते हैं कि सरकार सेवाएँ सही नहीं देती या फिर वह समय पर नहीं मिलती बल्कि यहाँ तक की हम सरकार को भ्रष्ट भी कह देने में पीछे नहीं हटते। लेकिन क्या सिर्फ सरकार ही इसके लिए पूरी तरह से दोषी है? अब आप ही सोचिये कि जब हम अपने वोट के माध्यम से किन्हीं प्रलोभनों में आकर गलत लोगों का चयन करेंगे तो उसका प्रभाव कैसा दिखेगा? 

इसलिए अब हमें पहले खुद से ये सब सवाल करने चाहिए, तब जाकर हम किसी दूसरे को दोष दे सकते हैं। जब हम खुद सही दिशा में बढ़कर नियमों का पालन करेंगे, तब जाकर एक अच्छे समाज का निर्माण होगा और तभी ज़रुरतमंद लोगों को उनका वास्तविक हक़ मिल पायेगा।